उज्जैन: चेक बाउंस मामले में बैंक को उपभोक्ता फोरम का झटका, ग्राहक को मिला 10,000 का मुआवजा

उज्जैन में उपभोक्ता फोरम ने बैंक ऑफ इंडिया को चेक बाउंस मामले में दोषी ठहराया। खाते में पर्याप्त राशि होने के बावजूद चेक बाउंस करने पर बैंक को 10,000 रुपये मुआवजा, 327 रुपये 9% ब्याज के साथ और 2,000 रुपये मुकदमे के खर्च के रूप में देने का आदेश।

उज्जैन: चेक बाउंस मामले में बैंक को उपभोक्ता फोरम का झटका, ग्राहक को मिला 10,000 का मुआवजा
सांकेतिक तस्वीर

हाइलाइट्स
  • उपभोक्ता फोरम ने बैंक ऑफ इंडिया को चेक बाउंस मामले में दोषी ठहराया
  • बैंक को 10,000 रुपये मुआवजा और 327 रुपये 9% ब्याज के साथ लौटाने का आदेश
  • उज्जैन फोरम का फैसला बैंकों के लिए लापरवाही के खिलाफ चेतावनी

उज्जैन में एक चौंकाने वाले मामले में उपभोक्ता फोरम ने बैंक ऑफ इंडिया के खिलाफ बड़ा फैसला सुनाया है। खाते में पर्याप्त राशि होने के बावजूद बैंक ने गलती से चेक बाउंस कर दिया और ग्राहक के खाते से 327 रुपये की राशि भी काट ली। इस मामले में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने बैंक को दोषी ठहराते हुए ग्राहक को 10,000 रुपये का मुआवजा, 327 रुपये की काटी गई राशि 9% ब्याज के साथ और 2,000 रुपये मुकदमे के खर्च के रूप में देने का आदेश दिया है। यह फैसला उपभोक्ता अधिकारों की जीत के रूप में देखा जा रहा है।

क्या है पूरा मामला?

उज्जैन के इंदिरा नगर निवासी जगत बहादुर सिंह का बैंक ऑफ इंडिया की अरविंद नगर हीरा मिल चौराहा शाखा में खाता है। 27 मई 2022 को उन्होंने 6,000 रुपये का चेक (क्रमांक 069837) भुगतान के लिए जारी किया था। लेकिन 30 मई 2022 को उन्हें पता चला कि बैंक ने उनका चेक बाउंस कर दिया, जबकि उनके खाते में उस समय 61,853 रुपये की राशि मौजूद थी। इतना ही नहीं, बैंक ने चेक बाउंस की फीस के रूप में उनके खाते से 327 रुपये भी काट लिए। 

जगत बहादुर ने इस गलती की शिकायत बैंक प्रबंधक से की, लेकिन प्रबंधक ने अपनी गलती मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद जगत बहादुर ने बैंक को नोटिस भेजा, लेकिन वहां से भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। आखिरकार, उन्होंने 2022 में इस मामले को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, उज्जैन में ले गए। 

उपभोक्ता फोरम का ऐतिहासिक फैसला

लगभग दो साल तक चले इस मामले में उपभोक्ता फोरम ने बैंक की लापरवाही को गंभीरता से लिया। फोरम ने पाया कि खाते में पर्याप्त राशि होने के बावजूद चेक बाउंस करना बैंक की ओर से सेवा में कमी थी। आयोग ने अपने फैसले में बैंक को निम्नलिखित आदेश दिए:

  1. काटी गई राशि का भुगतान: बैंक को 45 दिनों के भीतर 327 रुपये की काटी गई राशि 9% वार्षिक ब्याज के साथ लौटाने का आदेश।
  2. मानसिक त्रास का मुआवजा: ग्राहक को हुई मानसिक परेशानी के लिए 10,000 रुपये का मुआवजा।
  3. मुकदमे का खर्च: उपभोक्ता फोरम में केस दायर करने के लिए 2,000 रुपये का अतिरिक्त भुगतान।

इस फैसले को उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। जगत बहादुर सिंह के वकील वीरेंद्र सिंह परिहार ने बताया कि यह फैसला उन सभी ग्राहकों के लिए एक मिसाल है जो बैंकों की मनमानी का शिकार होते हैं।

बैंक की लापरवाही का खामियाजा

जगत बहादुर सिंह के मामले में बैंक ऑफ इंडिया की गलती साफ थी। उनके खाते में 6,000 रुपये के चेक के लिए पर्याप्त राशि (61,853 रुपये) मौजूद थी, फिर भी बैंक ने चेक बाउंस कर दिया। यह न केवल तकनीकी गलती थी, बल्कि बैंक प्रबंधक की ओर से गलती स्वीकार न करना भी उनकी सेवा में कमी को दर्शाता है। 

उपभोक्ता फोरम की भूमिका

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने इस मामले में तेजी से कार्रवाई की और ग्राहक के हक में फैसला सुनाया। यह फैसला उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो बैंकों की गलतियों के खिलाफ आवाज उठाने से हिचकते हैं। उपभोक्ता फोरम उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मजबूत मंच है, जहां छोटे से छोटा मामला भी गंभीरता से सुना जाता है।

उपभोक्ताओं के लिए सीख

यह मामला उपभोक्ताओं को यह संदेश देता है कि अगर वे अपनी शिकायत को सही ढंग से उठाते हैं, तो उन्हें न्याय जरूर मिलेगा। अगर आप भी बैंक की किसी गलती का शिकार हुए हैं, तो पहले बैंक प्रबंधक से शिकायत करें। अगर वहां से समाधान न मिले, तो उपभोक्ता फोरम में अपनी शिकायत दर्ज करें। 

उपभोक्ता अधिकारों की जीत

उज्जैन के इस मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उपभोक्ता फोरम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। बैंक ऑफ इंडिया को अपनी गलती की सजा के रूप में न केवल काटी गई राशि लौटानी होगी, बल्कि ग्राहक को मुआवजा और ब्याज भी देना होगा। यह फैसला बैंकों के लिए एक चेतावनी है कि वे अपनी सेवाओं में लापरवाही न बरतें।