जीवाजी विश्वविद्यालय में रैगिंग कांड: एमबीए छात्रों पर जूनियर को निर्वस्त्र डांस के लिए मजबूर करने का आरोप
ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय में एमबीए के सीनियर छात्रों द्वारा बीबीए जूनियर को अश्लील गाने पर निर्वस्त्र डांस करने के लिए प्रताड़ित करने का मामला सामने आया है। पुलिस जाँच कर रही है, जबकि रैगिंग रोकने वाले कानूनों पर सवाल उठ रहे हैं।
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भारतीय शिक्षण संस्थानों में रैगिंग को लेकर बने सख्त कानूनों और नियमों के बावजूद एक बार फिर इसकी काली छाया सामने आई है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित प्रतिष्ठित जीवाजी विश्वविद्यालय में एमबीए के सीनियर छात्रों पर बीबीए के एक जूनियर छात्र के साथ रैगिंग, शारीरिक प्रताड़ना और अश्लीलता का आरोप लगा है। पीड़ित छात्र ने विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस के समक्ष लिखित शिकायत दर्ज कराई है, जिसके बाद मामले में जाँच शुरू हो गई है।
क्या हुआ मामले में?
घटना की जानकारी पीड़ित छात्र हिमांशु भदौरिया (बीबीए छठवें सेमेस्टर) द्वारा विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष को लिखित शिकायत से मिली। शिकायत के अनुसार, एमबीए द्वितीय सेमेस्टर के छात्र प्रयांशु राजावत ने हिमांशु को बॉलीवुड फ़िल्म 'आज़ाद' के गाने "उई अम्मा..." पर निर्वस्त्र होकर डांस करने के लिए मजबूर किया। इस दौरान प्रयांशु के साथ तीन अन्य सीनियर छात्र भी मौजूद थे, जिन्होंने हिमांशु को धमकाया और उसके विरोध करने पर उसके साथ मारपीट की।
हिमांशु ने बताया कि सीनियर छात्रों ने उसे "रैगिंग की परंपरा" का हवाला देते हुए डराने की कोशिश की और कहा कि अगर उसने उनकी बात नहीं मानी, तो उसे और परेशान किया जाएगा। मारपीट की घटना के बाद हिमांशु ने विश्वविद्यालय प्रशासन से संपर्क किया और ग्वालियर के यूनिवर्सिटी थाना में एफआईआर दर्ज कराई।
पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्रवाई
मामले की गंभीरता को देखते हुए ग्वालियर पुलिस ने तत्काल जाँच शुरू कर दी है। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक कृष्ण लालचंदानी ने बताया कि पीड़ित छात्र की शिकायत और विश्वविद्यालय के अन्य छात्रों के बयानों के आधार पर केस की जाँच की जा रही है। उन्होंने कहा, "यह छात्रों के भविष्य से जुड़ा संवेदनशील मामला है। हम सभी पक्षों से बात कर रहे हैं और जल्द ही निष्पक्ष कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।"
विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी मामले को गंभीरता से लेते हुए आरोपी छात्रों के खिलाफ आंतरिक जाँच शुरू की है। हालाँकि, अभी तक किसी को निलंबित या दंडित नहीं किया गया है। विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि "रैगिंग के सभी आरोपों की पुष्टि होने पर यूजीसी के दिशा-निर्देशों के अनुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी।"
रैगिंग: कानून और जमीनी हकीकत
भारत में रैगिंग एक दंडात्मक अपराध है, जिसके लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 294 (अश्लीलता), 323 (मारपीट), 506 (धमकी) और रैगिंग निवारण अधिनियम, 2009 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। इसके बावजूद, देशभर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में रैगिंग के मामले लगातार सामने आते रहते हैं।
क्यों नहीं रुक पा रही रैगिंग?
- सीनियर-जूनियर की 'परंपरा' का बहाना: कई संस्थानों में रैगिंग को "बॉन्डिंग" या "परंपरा" का नाम देकर इसे सही ठहराया जाता है।
- छात्रों में जागरूकता की कमी: पीड़ित अक्सर डर या शर्म के कारण शिकायत दर्ज नहीं कराते।
- प्रशासन की ढिलाई: कई बार संस्थान प्रतिष्ठा बचाने के लिए मामलों को दबाने की कोशिश करते हैं।
पीड़ित की आवाज: "मैं सिर्फ न्याय चाहता हूँ"
हिमांशु भदौरिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे साथ ऐसा होगा। ये सीनियर मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ने पर आमादा थे। मैंने विरोध किया, तो उन्होंने मुझे थप्पड़ मारे और धक्का दिया। मैं चाहता हूँ कि ऐसा किसी और के साथ न हो, इसलिए मैंने शिकायत की।"
विशेषज्ञों की राय: "रैगिंग रोकने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी"
शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं, "रैगिंग को रोकने के लिए सिर्फ कानून काफी नहीं हैं। छात्रों, अभिभावकों और संस्थानों को मिलकर ऐसा माहौल बनाना होगा, जहाँ जूनियर खुद को सुरक्षित महसूस करें। साथ ही, ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए।"
आगे की राह: क्या हो सकते हैं समाधान?
- छात्रों को कानूनी अधिकारों की जानकारी: हर संस्थान में रैगिंग विरोधी वर्कशॉप आयोजित की जानी चाहिए।
- सख्त निगरानी: हॉस्टल और कैंपस में सीसीटीवी कैमरे और एंटी-रैगिंग सेल की सक्रियता।
- मनोवैज्ञानिक सहायता: पीड़ित छात्रों को काउंसलिंग और कानूनी सहायता प्रदान की जाए।
रैगिंग के खिलाफ सामूहिक जिम्मेदारी
जीवाजी विश्वविद्यालय का यह मामला एक बार फिर यह याद दिलाता है कि रैगिंग जैसी सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए सिस्टम और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा। पुलिस जाँच के नतीजे और विश्वविद्यालय की कार्रवाई इस मामले में न्याय की उम्मीद जगाते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारे शैक्षणिक संस्थान वाकई छात्रों के लिए सुरक्षित हैं?