लाठीपाडा मध्यम प्रकल्प: 50 साल बाद आदिवासियों को मिली न्याय की उम्मीद

धुले के लाठीपाडा मध्यम प्रकल्प के प्रभावित आदिवासी ग्रामीणों को 50 साल बाद न्याय की किरण। जागरूकता शिविर में जिला पुनर्वास अधिकारी संजय बागडे ने मार्गदर्शन किया। डॉ. विशाल वलवी की समाजसेवा से बदली तस्वीर।

लाठीपाडा मध्यम प्रकल्प: 50 साल बाद आदिवासियों को मिली न्याय की उम्मीद
लाठीपाडा मध्यम प्रकल्प

धुले जिले के पिंपलनेर तहसील में लाठीपाडा मध्यम प्रकल्प के प्रभावित आदिवासी ग्रामीणों के लिए 50 साल बाद न्याय की किरण जगी है। परियोजना प्रभावित प्रमाणपत्र (प्रकल्पित प्रमाणपत्र) प्रदान करने के लिए पिंपलनेर तहसील कार्यालय द्वारा एक जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। यह शिविर जिला कलेक्टर कार्यालय और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की पुनर्वास शाखा के निर्देशानुसार ईगगाह गांव के जिला परिषद स्कूल, लाठीपाडा में आयोजित हुआ। इस शिविर में जिला पुनर्वास अधिकारी संजय बागडे ने आदिवासी ग्रामीणों को मार्गदर्शन प्रदान किया, जिससे प्रभावित परिवारों में उम्मीद की नई लहर दौड़ी।

50 साल पुराना अन्याय और आदिवासियों की पीड़ा

लाठीपाडा मध्यम प्रकल्प के तहत 50 साल पहले आदिवासी किसानों की जमीनें जलमग्न हो गई थीं। इस परियोजना के लिए लाठीपाडा गांव को नीचे ले जाया गया, लेकिन प्रभावित आदिवासी ग्रामीणों को आज तक न तो उचित पुनर्वास मिला और न ही उनकी जमीनों का मुआवजा या वैकल्पिक जमीन दी गई। प्रभावित परिवारों को परियोजना प्रभावित प्रमाणपत्र प्राप्त करने में भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन परिवारों ने लंबे समय तक उपेक्षा और अन्याय सहा, लेकिन अब उनकी आवाज दिल्ली तक पहुंची है।

डॉ. विशाल वलवी की समाजसेवा और आयोग का हस्तक्षेप

इस मामले में समाजसेवी डॉ. विशाल वलवी की भूमिका अहम रही। उन्होंने गांव से लेकर दिल्ली के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तक प्रभावित आदिवासियों की समस्याओं को उठाया। डॉ. वलवी ने ग्रामीणों की शिकायतें और आवश्यक दस्तावेज आयोग के समक्ष प्रस्तुत किए। आयोग ने मामले की गंभीरता को समझते हुए प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया और तत्काल न्याय प्रदान करने के निर्देश जारी किए। प्रभावित किसानों की प्रमुख मांगों में परियोजना प्रभावित प्रमाणपत्र, जमीन का मुआवजा, वैकल्पिक जमीन और नए गांव का निर्माण शामिल है।

जागरूकता शिविर: एक नई शुरुआत

आयोग के निर्देशों के बाद, जिला कलेक्टर कार्यालय और पिंपलनेर तहसील कार्यालय ने संयुक्त रूप से यह जागरूकता शिविर आयोजित किया। शिविर की अध्यक्षता जिला पुनर्वास अधिकारी संजय बागडे ने की। इसमें अपर तहसीलदार दत्तात्रेय शेजुल, नायब तहसीलदार अरुण जोशी, बापू बहिराम, महेश पाटिल, अर्चना कोल, योगेश जिरे, कामिनी महाले, अजय पाइकराव और सर्कल अधिकारी पी.एन. गावित सहित कई अधिकारी मौजूद थे। शिविर में प्रभावित ग्रामीणों को प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए आवश्यक दस्तावेजों और प्रक्रियाओं की विस्तृत जानकारी दी गई।

इस अवसर पर डॉ. विशाल वलवी, पोपट गांगुर्डे, तनाजी बाहिराम, दासभाऊ पवार, देवराम पवार, मधुकर गांगुर्डे, संजय धुमाल और सैकड़ों आदिवासी ग्रामीण व महिलाएं उपस्थित थीं। ग्रामीणों ने इस शिविर को 50 साल के अन्याय के बाद एक नई शुरुआत के रूप में देखा।

आदिवासियों की उम्मीदें और भविष्य

यह शिविर न केवल प्रमाणपत्र वितरण के लिए था, बल्कि यह आदिवासी ग्रामीणों के लिए एक मंच भी बना, जहां उन्होंने अपनी पीड़ा और मांगों को खुलकर व्यक्त किया। प्रभावित परिवारों को अब उम्मीद है कि उन्हें जल्द ही मुआवजा, वैकल्पिक जमीन और पुनर्वास की सुविधा मिलेगी। डॉ. विशाल वलवी ने कहा, “यह शिविर आदिवासियों के लिए न्याय की दिशा में पहला कदम है। हमारी लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक सभी प्रभावित परिवारों को उनका हक नहीं मिल जाता।”

नई उम्मीद की शुरुआत

लाठीपाडा मध्यम प्रकल्प के प्रभावित आदिवासी ग्रामीणों के लिए यह शिविर एक ऐतिहासिक कदम है। 50 साल बाद भी न्याय की आस लिए बैठे इन ग्रामीणों को अब सरकार और समाजसेवियों के सहयोग से नई उम्मीद मिली है। यह पहल न केवल प्रभावित परिवारों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक बदलाव का संदेश देती है।