8 साल पुरानी कर्ज वसूली से किसानों में हड़कंप: लाखों रुपये जमा करने का दबाव
उज्जैन के 7 गांवों में किसानों को भेजे गए वसूली नोटिस ने हड़कंप मचा दिया है। आठ साल पुराने कर्ज मामले में किसानों पर लाखों रुपये की वसूली का दबाव डाला जा रहा है, जबकि कुछ के पास एक बीघा जमीन भी नहीं है।

मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के कुछ ग्रामीण इलाकों में इन दिनों एक विवाद तेजी से फैलता जा रहा है, जिससे किसानों में गुस्सा और चिंता का माहौल बना हुआ है। यह मामला करीब आठ साल पहले एक सोसाइटी द्वारा किसानों को दिए गए ऋण से जुड़ा हुआ है, लेकिन अब यह 7 गांवों में लगभग 500 किसानों के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है। दरअसल, इन किसानों को वसूली नोटिस भेजे गए हैं, जिनमें उन्हें लाखों रुपये चुकाने के लिए कहा गया है।
सत्तर के दशक में की गई ऋण योजनाओं का असर
करीब आठ साल पहले, अंबोदिया क्षेत्र में स्थित एक कृषि सहकारी सोसाइटी के पदाधिकारी द्वारा किसानों को खाद, बीज और अन्य कृषि-related ऋण दिए गए थे। यह सोसाइटी किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, लेकिन कुछ समय बाद इसके पदाधिकारियों की लापरवाही और गड़बड़ियों के चलते वह सोसाइटी बंद हो गई। इससे किसानों को ना केवल कृषि सुविधाओं की कमी हुई, बल्कि उनकी कर्ज की समस्या भी लगातार बढ़ती रही।
किसानों ने वर्षों तक इस समस्या को लेकर अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं मिल सका। अब करीब आठ साल बाद जब उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही थी, तो अचानक वसूली नोटिस किसानों के दरवाजे तक पहुंच गए।
लाखों रुपये की वसूली का नोटिस
यह नोटिस किसानों को बकायादार बताते हुए लाखों रुपये वसूलने की मांग कर रहे हैं। खास बात यह है कि इन नोटिसों में 7 दिनों के भीतर पैसे जमा करने की बात की गई है, जो कई किसानों के लिए असंभव है। जब किसानों ने इस पर सवाल उठाए तो अधिकारियों का कहना था कि यह नोटिस पुराने रिकॉर्ड के आधार पर भेजे गए हैं, जिनमें संबंधित कर्ज़ों का ब्याज भी जोड़ा गया है।
गड़बड़ी से परेशान किसान
किसान संतोष की हालत तो और भी खराब है। उन्होंने अपनी शिकायत में कहा कि उनके पास कोई जमीन नहीं है, फिर भी उन्हें 3,37,000 रुपये का वसूली नोटिस भेजा गया है। संतोष ने बैंक में जाकर अपनी समस्या बताई, लेकिन बैंक अधिकारियों का कहना था कि वे पहले से मौजूद रिकॉर्ड के आधार पर कार्रवाई कर रहे हैं। इसके बावजूद संतोष के पास न तो इस राशि का भुगतान करने के लिए कोई पैसे हैं और न ही वह इतनी बड़ी रकम जुटाने की स्थिति में हैं।
किसानों के लिए और भी कठिन परिस्थितियाँ
किसानों की स्थिति और भी खराब है, क्योंकि इस साल उनकी सोयाबीन की फसल पूरी तरह से खराब हो चुकी है। किसानों ने बहुत मेहनत की थी, लेकिन मौसम की मार और अन्य समस्याओं के कारण वे अपनी लागत भी वसूल नहीं कर पाए। अब अगर इस तरह की कठोर वसूली प्रक्रिया जारी रहती है तो उनकी स्थिति और भी खराब हो जाएगी। यह निश्चित रूप से मध्य प्रदेश सरकार की योजनाओं और उनके द्वारा दिए गए लाभों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।
किसान अशोक जाट ने कहा, "सरकार हमें जीरो प्रतिशत ब्याज पर ऋण देने की बात करती है, लेकिन दूसरी तरफ हमें वसूली नोटिस भेजकर आर्थिक संकट में डाल दिया जाता है। इस तरह की कार्यवाही से न केवल किसानों का मनोबल टूटता है, बल्कि सरकार की छवि भी धूमिल होती है।"
किसानों की ओर से उठाए गए कदम
इस मामले में किसानों ने अपनी आवाज उठानी शुरू कर दी है। वे कृषि उपज मंडी स्थित जिला सहकारी बैंक की चिमनगंज शाखा पहुंचे और बैंक अधिकारियों से शिकायत की। उनका कहना है कि इतनी बड़ी राशि जमा करने के लिए उनका पास कोई साधन नहीं है, और यह प्रक्रिया पूरी तरह से गलत है। कई किसानों ने यह भी कहा कि अगर उनकी समस्या का हल जल्द नहीं निकाला गया, तो वे और भी कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर होंगे।
बैंक अधिकारियों ने कहा कि वे रिकॉर्ड की जांच कर रहे हैं और सभी संबंधित जानकारी इकट्ठा की जा रही है। चिमनगंज शाखा के सहायक प्रबंधक एम के माथुर ने किसानों से वादा किया है कि दोनों रिकॉर्ड मिलाकर सही कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, यह आश्वासन किसानों को संतुष्ट नहीं कर पा रहा है, क्योंकि उनका आरोप है कि यह केवल एक समय की देरी करने वाला कदम है, जबकि उनका संकट गंभीर है।
समस्या का समाधान या और बढ़ता विवाद?
अब सवाल यह उठता है कि क्या इस मामले का कोई समाधान निकलेगा या फिर यह केवल किसानों के लिए एक और कागजी कार्यवाही का हिस्सा बनकर रह जाएगा? मध्य प्रदेश सरकार के लिए यह एक अहम मौका है कि वह किसानों की मदद करने के लिए त्वरित कार्रवाई करे और इस विवाद का हल निकाले। अगर सरकार ने जल्दी कदम नहीं उठाए, तो यह मामला और भी बड़ा रूप ले सकता है, और इससे न केवल किसानों की स्थिति पर असर पड़ेगा, बल्कि सरकार की नीति और उसकी किसान मित्र छवि भी खराब हो सकती है।
किसानों की समस्याओं को सही तरीके से समझने और समाधान प्रदान करने के लिए अधिकारियों को अधिक संवेदनशीलता के साथ काम करना होगा। किसानों की कठिनाइयों को नजरअंदाज करने से स्थिति केवल और जटिल हो सकती है, और इसका प्रभाव समाज के विभिन्न वर्गों पर पड़ेगा।
किसानों ने प्रशासन से लगाई गुहार
यह मामला उज्जैन जिले के किसानों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन चुका है, और उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिरकार यह वसूली नोटिस किस आधार पर जारी किए गए हैं। वे अपनी आवाज उठाते हुए इसे लेकर प्रशासन से समाधान की उम्मीद लगाए हुए हैं। अब देखना यह होगा कि इस गंभीर मुद्दे का प्रशासन किस तरह समाधान करता है।