कृषि भूमि का राजनीतिक शिकार: इंदौर और बुरहानपुर में कृषि संबंधी सरकारी संपत्तियों का आवंटन
मध्य प्रदेश के इंदौर और बुरहानपुर में कृषि योग्य भूमि का नगर निगम को आवंटन होने से किसानों के लिए चिंता बढ़ी है। कृषि भूमि का उपयोग सरकारी दफ्तरों के लिए करने से किसानों की आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जानें इस लेख में।

जहां एक ओर सरकार कृषि को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय बढ़ाने पर जोर दे रही है, वहीं दूसरी ओर कृषि योग्य उपजाऊ भूमि, जहां बीज निगम, कृषि कॉलेज या फिर खेती-किसानी से संबंधित सरकारी दफ्तर स्थित थे, अब राजनीति की भेंट चढ़ती जा रही हैं। ताजा मामला मध्य प्रदेश के इंदौर और बुरहानपुर में सामने आ रहा है, जहां एक ओर इंदौर में कृषि कॉलेज की भूमि को किसी अन्य कार्य के लिए देने की स्वीकृति हो चुकी है, वहीं बुरहानपुर में भी बीज निगम की आधी जमीन नगर निगम को आवंटित की जा रही है, जिसकी लगभग सारी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं। अब बीज निगम को दूसरी जगह जमीन देने की बात भी सामने आ रही है। लेकिन आपको बता दें कि केवल मध्य प्रदेश के जबलपुर और बुरहानपुर में जैविक बीज उत्पादन हो रहा था, लेकिन अब बुरहानपुर से जैविक बीज उत्पादन लगभग बंद हो जाएगा।
बुरहानपुर में बीज निगम की भूमि का नगर निगम को आवंटन
बुरहानपुर के बीज निगम के प्रक्षेप्ट प्रबंधक एवं प्रक्रिया प्रभारी ने बताया कि यहां पर लगभग 110 क्विंटल बीज का उत्पादन होता था और किसानों से लगभग 1,000 क्विंटल बीज उत्पादन करवाया जाता था। ऐसे में अगर बीज निगम की जमीन नगर निगम को आवंटित कर दी जाती है और वहां नगर निगम का भवन बना दिया जाता है, तो निश्चित तौर पर आने वाले समय में इसका नुकसान होने की संभावना है। लेकिन इसके लिए हमने दूसरी जगह कृषि योग्य उपजाऊ जमीन और अन्य सुविधाएं जुटाने के लिए 55 लाख 80 हजार की मांग की है। यहां का भवन भी अब पुराने समय का होने के चलते जर्जर हो चुका है और स्टाफ की भी कमी है। शासन को अपने स्तर पर पत्राचार के माध्यम से अवगत कराते रहे हैं, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।
निगम के प्रस्ताव को बीज निगम ने स्वीकार किया
निगम के इस प्रस्ताव को बीज निगम ने स्वीकार कर लिया है। 15 जनवरी को मध्य प्रदेश राज्य बीज एवं फार्म विकास निगम के प्रबंध संचालक की ओर से एक पत्र कलेक्टर को भेजा गया, जिसमें भूमि को लेकर सहमति जताई गई। पत्र में कहा गया कि निगम की कुल 3.900 हेक्टेयर भूमि के बदले नगर निगम के स्वामित्व की प्रस्तावित कुल भूमि क्षेत्र 7.830 हेक्टेयर यानी दोगुनी भूमि स्वीकार करने पर एनओसी चाही गई थी। इसकी सहमति दी जाती है। नवीन भूमि का कृषि योग्य बनाए जाने के लिए राशि 0.80 लाख है। नवीन प्रक्षेत्र पर ट्यूबवेल, बाउंड्रीवॉल, फेंसिंग, कार्यालयीन भवन के लिए लागत राशि 55 लाख इस प्रकार 55.80 लाख निगम को आवंटन करने का अनुरोध है।
किसान संजय चौकसे की चिंता
इस पूरे मामले पर वरिष्ठ किसान संजय चौकसे ने बताया कि शहर के पास बीज निगम की उपजाऊ जमीन पहले भी जा चुकी है और वहां पर कलेक्टर कार्यालय, जिला पंचायत और अन्य सरकारी दफ्तर बन चुके हैं, जो कि बहुत गलत है। यहां पर किसान लोग सुगमता से पहुंच पाते थे, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। सरकार और जनप्रतिनिधियों को चाहिए था कि यहां कृषि के लिए रिसर्च सेंटर खोला जाता। बुरहानपुर में केला फसल अधिक होती है, लेकिन हर साल किले पर तरह-तरह की बीमारी और वायरस आते हैं, जिससे किसान काफी परेशान हैं और उन्हें आर्थिक नुकसान का सामना भी करना पड़ता है। कई बार जनप्रतिनिधि और प्रशासन से अनुरोध करने पर आश्वासन के अलावा आज तक कुछ नहीं मिला। अब सुनने में आ रहा है कि बीज निगम की आधी जमीन नगर निगम को आवंटित हो जाएगी और वहां पर नगर निगम का नया भवन बनने वाला है, जो कि सरासर गलत है। नगर निगम दूसरी जगह भी बन सकता था, लेकिन खेती योग्य जमीन पर सरकारी दफ्तर बनाना कहां तक उचित है?
कृषि रिसर्च सेंटर की आवश्यकता
किसान संजय चौकसे ने यह भी कहा कि किसान और वैज्ञानिक जब तक एक ही टेबल पर बैठकर अपने विचारों का आदान-प्रदान नहीं कर पाते, तब तक नए रिसर्च किसान हित में नहीं हो पाएंगे। उनका मानना है कि बुरहानपुर में एक कृषि कॉलेज और एक रिसर्च सेंटर का होना बहुत जरूरी है।
प्रगतिशील किसान संगठन का दृष्टिकोण
इस पूरे मामले पर प्रगतिशील किसान संगठन के अध्यक्ष रघुनाथ पाटिल ने फैक्ट फाइंडिंग से चर्चा करते हुए बताया कि सरकार की मंशा खेती को लाभ का धंधा बनाना और किसानों की आय बढ़ाना जरूर है, लेकिन पर्दे के पीछे कुछ और ही खेल चल रहा है। बीज निगम की उपजाऊ जमीन, जहां पहले बीज उत्पादन होता था और किसानों को बीज उत्पादन के प्लांट दिए जाते थे, अब यह जमीन नगर निगम को दी जा रही है। इससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होती थी और आने वाले समय में बीज संकट से भी बचाव होता था। लेकिन अब ऐसा लगता है कि आने वाले समय में किसानों के लिए आगे की राह संकट से भरी होगी और खेती लाभ का धंधा न रहकर घाटे का सौदा बन जाएगी।
भविष्य की दिशा पर सवाल
अब इस पूरे मामले पर देखना यह होगा कि नगर निगम का नया भवन कितना भव्य होगा और बीज निगम को आवंटित होने वाली जमीन पर भविष्य में व्यवस्थाएं जुटाई जा पाती हैं या नहीं। यह तो आने वाला समय ही बताएगा, और क्या खेती लाभ का धंधा बनकर किसानों की आय दुगनी हो पाएगी या नहीं, यह भी आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा।