मंडलेश्वर में नर्मदा जयंती पर निर्झरणी महोत्सव का भव्य आयोजन
मंडलेश्वर में नर्मदा जयंती के अवसर पर निर्झरणी महोत्सव का आयोजन हुआ। मां नर्मदा की आरती, मालवी लोक गीत और नृत्य नाटिका ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
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मध्य प्रदेश: मां नर्मदा के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मध्य प्रदेश के खरगौन जिले के मंडलेश्वर में नर्मदा जयंती के पावन अवसर पर एक दिवसीय "निर्झरणी महोत्सव" का आयोजन किया गया। यह आयोजन मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा किया गया, जिसमें मां नर्मदा की आरती, सांस्कृतिक कार्यक्रम और लोक गीतों की प्रस्तुतियों ने लोगों के दिलों को छू लिया।
महोत्सव की शुरुआत
मंगलवार शाम को नर्मदा तट पर स्थित राम घाट पर मां नर्मदा की भव्य आरती हुई। इस दौरान विधायक राजकुमार मेव, खरगौन नगर पालिका अध्यक्ष छाया जोशी, जिला पंचायत अध्यक्ष अनुबाई तंवर और मंडलेश्वर नगर परिषद अध्यक्ष विश्वदीप मोयदे ने दीप प्रज्वलित कर महोत्सव का शुभारंभ किया। यह आयोजन नर्मदा नदी के प्रति लोगों की आस्था और समर्पण को दर्शाता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम
निर्झरणी महोत्सव में मालवी लोक गायन, नृत्य नाटिका और भक्ति गीतों की प्रस्तुतियों ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उज्जैन की प्रसिद्ध गायिका हीरामणि वर्मा और उनके साथी कलाकारों ने मालवी लोक गीतों की मधुर प्रस्तुति दी। भोपाल की सुमन कोठारी और उनके साथियों ने "मोक्षदायिनी" नामक नृत्य नाटिका के माध्यम से मां नर्मदा की महिमा को प्रस्तुत किया।
इसके अलावा, सागर के यश गोपाल श्रीवास्तव और उनके साथियों ने भक्ति गीतों की प्रस्तुति दी। इंदौर के किशन भगत ने भी भक्ति गीतों के माध्यम से लोगों के दिलों को छू लिया। यह सांस्कृतिक कार्यक्रम न केवल मनोरंजन का स्रोत था, बल्कि यह मां नर्मदा के प्रति लोगों की आस्था को और गहरा कर गया।
नर्मदा जयंती का महत्व
नर्मदा जयंती हर साल माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। यह दिन मां नर्मदा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। नर्मदा नदी को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। यह नदी न केवल जल का स्रोत है, बल्कि यह सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का भी प्रतीक है।
मंडलेश्वर में आयोजित निर्झरणी महोत्सव ने नर्मदा जयंती के इस पावन अवसर को और भी खास बना दिया। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है।
नर्मदा नदी का सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व
नर्मदा नदी को भारत की जीवनरेखा कहा जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर बहती है और लाखों लोगों के जीवन का आधार है। नर्मदा नदी न केवल जल का स्रोत है, बल्कि यह सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का भी प्रतीक है।
नर्मदा नदी के किनारे कई प्राचीन मंदिर और धार्मिक स्थल स्थित हैं, जो इसके धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं। नर्मदा जयंती के अवसर पर आयोजित निर्झरणी महोत्सव ने नर्मदा नदी के प्रति लोगों की आस्था और समर्पण को प्रदर्शित किया।
महोत्सव का सामाजिक प्रभाव
निर्झरणी महोत्सव ने न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया, बल्कि यह सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। इस आयोजन में विभिन्न समुदायों के लोगों ने भाग लिया और मां नर्मदा के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की।
महोत्सव के दौरान आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने लोगों को एक साथ लाने का काम किया। यह आयोजन न केवल मनोरंजन का स्रोत था, बल्कि यह लोगों को मां नर्मदा के प्रति जागरूक भी करता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक एकता की मिसाल
मंडलेश्वर में आयोजित निर्झरणी महोत्सव ने नर्मदा जयंती के पावन अवसर को और भी खास बना दिया। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है। मां नर्मदा के प्रति लोगों की आस्था और समर्पण इस महोत्सव में साफ देखा जा सकता है।