असीरगढ़ का रहस्यमयी शिव मंदिर: जहां रोज आते हैं अश्वत्थामा
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में स्थित असीरगढ़ किले के प्राचीन शिव मंदिर का पौराणिक महत्व जानिए, जहां महाभारत काल से अश्वत्थामा रोज पूजा करने आते हैं। महाशिवरात्रि और सावन में विशेष आयोजन।
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हमारे प्राचीन भारत में कई ऐसे स्थल हैं जो अपने आध्यात्मिक महत्व और रहस्यों के कारण आज भी आस्था के केंद्र बने हुए हैं। ऐसा ही एक स्थल है मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित असीरगढ़ किले का प्राचीन शिव मंदिर, जिसे महाभारत काल से जोड़कर देखा जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा प्रतिदिन पूजा करने आते हैं - ऐसा स्थानीय लोगों का विश्वास है।
महाभारत से जुड़ा है असीरगढ़ का इतिहास
असीरगढ़ का किला न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां स्थित शिव मंदिर पौराणिक महत्व का केंद्र भी है। इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर की आस्था महाभारत काल से जुड़ी है। मान्यता है कि कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद अश्वत्थामा को शाप मिला था और वे अमर हो गए थे। तब से वे भटकते हुए कई स्थानों पर पूजा-अर्चना करते हैं, जिनमें असीरगढ़ का यह शिव मंदिर भी शामिल है।
अश्वत्थामा के आगमन का रहस्य
स्थानीय पुजारियों और भक्तों का कहना है कि प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में, जब मंदिर के पट बंद होते हैं, अश्वत्थामा शिवलिंग का अभिषेक करने आते हैं। सुबह जब मंदिर खोला जाता है, तो पुजारियों को शिवलिंग पर जलाभिषेक किया हुआ मिलता है और एक ताजा फूल चढ़ा हुआ दिखाई देता है। क्या यह केवल एक लोकगाथा है या वास्तविकता, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों की आस्था इस विश्वास पर अटूट है।
"हर सुबह जब हम मंदिर के पट खोलते हैं, तो शिवलिंग पर जल चढ़ा हुआ और ताजे फूल रखे मिलते हैं। यह कोई साधारण बात नहीं है, यहां कोई आ-जा नहीं सकता, फिर भी यह नियमित रूप से होता है," बताते हैं मंदिर के एक वरिष्ठ पुजारी।
गुप्त मार्ग की रहस्यमयी कथा
असीरगढ़ किले के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि यहां स्थित तालाब चारों ओर से खाइयों से घिरा है और गर्मियों में भी नहीं सूखता। किवदंतियों के अनुसार, इन खाइयों में से एक से होकर एक गुप्त मार्ग जाता है, जो खांडव वन से होते हुए सीधे मंदिर में पहुंचता है। माना जाता है कि अश्वत्थामा इसी गुप्त मार्ग से होकर मंदिर में प्रवेश करते हैं।
"हमारे बुजुर्गों से सुना है कि ये गुप्त मार्ग कई मील लंबा है और दूर-दूर तक फैला हुआ है। कहते हैं अश्वत्थामा जी इसी रास्ते से आते-जाते हैं," बताते हैं स्थानीय निवासी रामप्रसाद यादव।
महाशिवरात्रि का विशेष महत्व
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर इस मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और रात भर जागरण और पूजा-अर्चना का क्रम चलता रहता है।
"महाशिवरात्रि पर यहां भक्तों का जन सैलाब उमड़ता है। लोग दूर-दूर से आते हैं और शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन मंदिर में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं," बताते हैं मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्य।
सावन माह की कावड़ यात्रा
सावन के पवित्र महीने में बुरहानपुर से असीरगढ़ तक एक विशेष कावड़ यात्रा निकाली जाती है। श्रद्धालु ताप्ती नदी का जल लेकर किले के इस प्राचीन शिव मंदिर तक पैदल यात्रा करते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है और भक्तिभाव का प्रतीक है।
"हर साल सावन में हम ताप्ती नदी से जल लेकर असीरगढ़ तक पैदल जाते हैं। कई किलोमीटर की यह यात्रा भक्ति और श्रद्धा से भरी होती है। बाबा का अभिषेक करके मन को शांति मिलती है," बताते हैं नियमित रूप से कावड़ यात्रा में भाग लेने वाले श्याम सिंह।
मंदिर की वर्तमान स्थिति
हालांकि इस प्राचीन मंदिर में आधुनिक सुविधाओं का अभाव है, फिर भी यह अपनी प्राचीनता और आस्था के कारण श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। मंदिर के बाहर नंदी की मूर्ति विराजमान है, और अंदर शिवलिंग और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।
पर्यटक और इतिहासकार भी इस स्थल पर अपनी दिलचस्पी दिखाते हैं। "असीरगढ़ का किला और यहां का शिव मंदिर हमारी प्राचीन संस्कृति और इतिहास को दर्शाता है। इस स्थल का संरक्षण और प्रचार होना चाहिए," कहते हैं इतिहासविद् डॉ. राजेश शर्मा।
आस्था और विज्ञान का संगम
अश्वत्थामा के आगमन की कहानी को लेकर विज्ञान और आस्था के बीच विवाद हो सकता है, लेकिन यह स्थल भारतीय संस्कृति में आस्था के महत्व को दर्शाता है। चाहे वैज्ञानिक प्रमाण हो या न हो, लोगों का विश्वास इस मंदिर को जीवित रखे हुए है।
"मैं 40 वर्षों से इस मंदिर से जुड़ा हूं और हर रोज यही देखता आया हूं। रात को कोई नहीं आता, लेकिन सुबह शिवलिंग पर जल और फूल मिलते हैं। यह आस्था का विषय है," बताते हैं मंदिर के पुजारी।
असीरगढ़ तक पहुंचने का मार्ग
बुरहानपुर शहर से असीरगढ़ किला लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बुरहानपुर रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस द्वारा आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है। इंदौर और भोपाल जैसे बड़े शहरों से भी नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
शिव मंदिर: आस्था और इतिहास का संगम
असीरगढ़ का प्राचीन शिव मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अश्वत्थामा से जुड़ी कहानियां इस स्थल को और भी रहस्यमय बनाती हैं, जिससे यह आस्था और जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है। चाहे यह किवदंतियां हों या वास्तविकता, असीरगढ़ का शिव मंदिर हमारी प्राचीन परंपराओं और विश्वासों का जीवंत प्रमाण है।
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