वन विभाग की दादागिरी: 5 दिन से भूखे प्यासे पड़े मजदूर

उमरिया जिले में वन विभाग के अधिकारियों द्वारा मजदूरों से किए गए अन्याय की कहानी। 5 दिन से भूखे प्यासे मजदूर कलेक्टर कार्यालय पहुंचे, लेकिन मदद नहीं मिली।

वन विभाग की दादागिरी: 5 दिन से भूखे प्यासे पड़े मजदूर
मजदूरों का संघर्ष

मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के मजदूरों के लिए यह समय बहुत ही कठिन और संघर्षपूर्ण साबित हो रहा है। वन विभाग के कर्मचारियों की दादागिरी के कारण, मजदूरों को अपने काम के बदले मेहनताना नहीं मिल पा रहा है। यह पूरी स्थिति तब और जटिल हो गई, जब इन मजदूरों ने कलेक्टर कार्यालय में अपना मुद्दा उठाया, लेकिन वहां भी उनकी कोई मदद नहीं की गई।

क्या है पूरा मामला?

चंदिया रेंज के वन विभाग के कर्मचारी इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में हैं। मीडिया में उनके खिलाफ लगातार शिकायते आ रही हैं, जिन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। अब यह मामला और गंभीर हो गया है, जब मजदूरों ने 5 दिन से भूखे प्यासे कलेक्टर कार्यालय के बाहर धरना दिया और अपनी मजदूरी की मांग की। इन मजदूरों का आरोप है कि उन्हें अब तक मजदूरी नहीं दी गई और वन विभाग के अधिकारी उनकी मदद करने के बजाय उन्हें अपमानित कर रहे हैं।

यह मामला चंदिया रेंज के घोघरी ग्राम का है। यहां मजदूरों को पौधे लगाने के लिए गड्डे खुदवाए गए थे और लेंटाना (एक तरह का झाड़) की सफाई करवाई गई थी। काम तो पूरा हो गया, लेकिन अब जब भुगतान का समय आया, तो वन विभाग ने हाथ खड़े कर दिए। इन मजदूरों को अब तक उनका मेहनताना नहीं मिला, जिससे वे परेशान हैं और भूख के मारे लाचार हो चुके हैं।

मजदूरों का दर्द

मजदूर महेन्द्र ने बताया, “हम लोग 13 दिन तक 32 लोगों की टीम के साथ घोघरी में काम करते रहे। हमें लेंटाना की सफाई का काम दिया गया था और गड्डे भी खुदवाए गए थे। हमारे साथ यह बात पहले से तय थी कि हमें नगद भुगतान मिलेगा। अब वन विभाग हमसे खाता नंबर मांग रहा है, जो पहले कभी नहीं कहा गया था।” महेन्द्र का कहना है कि जब उन्होंने अपनी मजदूरी के लिए बात की, तो बीट गार्ड राजेश यादव और डिप्टी रेंजर कालीचरण ने उन्हें गालियाँ दीं और धमकियाँ दीं।

महिला मजदूर निशु ने बताया, “हम लोग कलेक्टर कार्यालय में बैठे हैं, हमारे बच्चे भूखे हैं। हमें गालियाँ दी जा रही हैं और भगा दिया जा रहा है। हम लोग कहीं और नहीं जा सकते, इसलिए यहां पड़े हुए हैं। हमें हमारा हक चाहिए।”

विनोद नाम के एक अन्य मजदूर ने कहा, “हमने घोघरी में काम किया था, लेकिन अब तक कोई भुगतान नहीं हुआ। बीट गार्ड हमें गाली देकर भगा रहा है। हम कई दिन से भूखे हैं। जब हमने रेंजर साहब से शिकायत की, तो उन्होंने भी हमें भगा दिया और कहा कि यहां से भाग जाओ।”

वन विभाग की सफाई

इस मामले में वन विभाग के एसडीओ कुलदीप त्रिपाठी ने अपनी सफाई दी। उन्होंने कहा कि मजदूरों से उनकी बातचीत हुई थी और उन्हें बताया गया था कि वे नगद भुगतान चाहते हैं। एसडीओ ने यह भी कहा कि वर्तमान में शासन के नियमानुसार नगद भुगतान नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी दावा किया कि मजदूरों ने खाता नंबर उपलब्ध नहीं कराया, जिससे भुगतान में परेशानी हो रही है। एसडीओ ने यह भी कहा कि यह मजदूर लोनी समुदाय से हैं और हर साल यही शिकायत करते हैं, लेकिन उन्होंने किसी भी मजदूर को बदमाशी कहने से इनकार किया।

विभाग का तानाशाही रवैया

वन विभाग के इस रवैये से मजदूरों में गुस्सा है। जब वन विभाग ने शुरुआत में नगद भुगतान का वादा किया था, तो क्यों अब उन्हें खाता नंबर की आवश्यकता बताई जा रही है? मजदूरों का कहना है कि उन्हें विश्वास था कि जो वादा किया गया था, वह पूरा होगा। लेकिन जब उन्हें वादा पूरा नहीं हुआ और उन्हें गालियाँ दी जाने लगीं, तो वे कलेक्टर कार्यालय पहुंचे।

शुक्र है कि इस मामले में प्रशासन ने थोड़ी मदद की। एसडीएम बांधवगढ़ ने इन मजदूरों के लिए रैन बसेरा में रहने की व्यवस्था की, लेकिन जब तक वन विभाग की तानाशाही रवैया नहीं बदलता, मजदूरों का दर्द कम नहीं होगा।

वन विभाग की ओर से स्पष्टता की कमी

इस पूरे मामले में जिले की स्थिति यह है कि अगर वन विभाग के अधिकारी मजदूरों से नगद भुगतान करने की बजाय खाता नंबर की बात करते हैं, तो उन्हें पहले ही यह स्पष्ट करना चाहिए था। इससे मजदूरों को कोई आशंका नहीं होती और वे बिना किसी झंझट के काम करते। अगर वन विभाग के पास नगद भुगतान करने की व्यवस्था नहीं है, तो यह मजदूरों को पहले ही बताना चाहिए था।

यह सच है कि मजदूरों को उनके काम का भुगतान मिलना चाहिए, खासकर जब वे इतने दिन तक बिना किसी शिकायत के काम कर रहे थे। मजदूरों को उनके मेहनत का पूरा हक मिलना चाहिए और इस मामले में प्रशासन को भी जल्द से जल्द हस्तक्षेप करना चाहिए।

मजदूरों के अधिकारों की रक्षा जरूरी

इस मामले में स्पष्ट है कि वन विभाग का तानाशाही रवैया और मजदूरों से किया गया अन्याय पूरी तरह से अस्वीकार्य है। मजदूरों को उनका हक मिलना चाहिए और इस मामले में प्रशासन को तुरंत कदम उठाना चाहिए, ताकि मजदूरों का दर्द समाप्त हो सके और उन्हें उनका मेहनताना मिल सके।