उज्जैन में 12 ज्योतिर्लिंग और चारधाम महासंगम यात्रा: मंदिरों के सरकारीकरण से मुक्ति की अपील - जानें क्यों यह महत्वपूर्ण है!
उज्जैन में आयोजित 12 ज्योतिर्लिंग, चारधाम महासंगम यात्रा की शुरुआत, मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त करने की मांग। यात्रा में श्रद्धालुओं को संस्कृत के साथ-साथ इंग्लिश और फ्रेंच में भी मंत्र पाठ की सुविधा।
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उज्जैन। भारतीय सनातन परंपराओं के पुनः जागरण और मंदिरों के आधुनिकीकरण को जोड़ने के उद्देश्य से इन दिनों देशभर में एक महासंगम यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य न सिर्फ धार्मिक स्थलों की महिमा को पुनर्स्थापित करना है, बल्कि उन गुरुकुलों को पुनः स्थापित करना भी है जो अब बंद होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। इस यात्रा में देशभर के श्रद्धालु, साधु संत और धर्मप्रेमी हिस्सा ले रहे हैं, और इसका उद्देश्य है भारतीय संस्कृति और धार्मिक स्थलों को आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़ा जाए।
इस महासंगम यात्रा की शुरुआत 25 जनवरी को प्रयागराज से हुई थी। यात्रा का मार्ग 12 ज्योतिर्लिंगों, चार धामों, 37 नदियों और 20 शक्तिपीठों को कवर करता है। यात्रा का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय मंदिर प्रबंधक परिषद द्वारा किया जा रहा है, और इस यात्रा में सैकड़ों साधु संतों और महामंडलेश्वरों की भागीदारी देखी जा रही है। इस यात्रा के माध्यम से यह प्रयास किया जा रहा है कि धार्मिक स्थलों को न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से फिर से जीवित किया जाए, बल्कि आधुनिक सुविधाओं से भी जोड़ा जाए।
महासंगम यात्रा का उद्देश्य और यात्रा के महत्वपूर्ण पहलू
महासंगम यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारतीय धर्म और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहित करना है। इसके तहत मंदिरों का सौंदर्यीकरण, सफेदी, लाइटिंग, पानी, और वाई-फाई जैसी आधुनिक सुविधाओं को मंदिरों से जोड़ने का कार्य किया जाएगा। यात्रा में 108 त्रिशूलों के जलाभिषेक से शुरुआत की गई, जिन्हें बाद में 108 शिव मंदिरों में स्थापित किया जाएगा। यह यात्रा 12 ज्योतिर्लिंगों और 4 धामों में शिवलिंग और त्रिशूल की प्रतिष्ठा के साथ धार्मिक स्थलों को पुनः सुसज्जित करेगी।
संस्कृत, इंग्लिश और फ्रेंच में मंत्र पाठ की पहल
यात्रा का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस दौरान ब्राह्मणों को सिर्फ संस्कृत और हिंदी में मंत्रों का उच्चारण नहीं कराया जाएगा, बल्कि इंग्लिश और फ्रेंच जैसी भाषाओं में भी मंत्र पाठ की ट्रेनिंग दी जाएगी। इससे न केवल भारतीय भक्तों को लाभ मिलेगा, बल्कि विदेशों में स्थित मंदिरों में भी सनातन धर्म का अलख जागेगा। इस पहल से मंदिरों में पवित्र मंत्रों का अनुवाद विदेशों में बैठे श्रद्धालुओं की भाषा में किया जा सकेगा, जिससे सनातन धर्म का प्रचार और प्रसार हो सकेगा।
मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त करने की मांग
महासंगम यात्रा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मंदिर प्रबंधक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री राजेश यादव ने मंदिरों के सरकारीकरण को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि हिंदू मंदिरों को सरकारी तंत्र से मुक्त किया जाए। उनके अनुसार, इन मंदिरों का संचालन केवल हिंदू धर्मावलंबियों और साधु संतों के माध्यम से होना चाहिए, न कि सरकारी अधिकारियों के अधीन। उन्होंने यह भी कहा कि देशभर में कई धार्मिक स्थलों का सरकारीकरण हो चुका है, और यह स्थिति बदलनी चाहिए।
राजेश यादव ने उदाहरण देते हुए बताया कि भारतीय सरकार अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन और सब्सिडी देती है, जबकि हिंदू तीर्थ स्थलों पर इस तरह की सुविधाएं नहीं मिलती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 100 से अधिक प्रमुख तीर्थ स्थलों का सरकारीकरण हो चुका है, लेकिन वक्फ बोर्ड के तहत सरकारी तंत्र में आने वाले मुस्लिम धार्मिक स्थलों से किसी भी प्रकार की राशि नहीं ली जाती है। उनका कहना था कि यह दोहरे मानक की नीति है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए।
राजेश यादव ने अपनी मांग को लेकर पत्राचार किया है और जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की योजना बनाई है। उनका कहना है कि अगर प्रधानमंत्री से मुलाकात का समय नहीं मिलता, तो वे राष्ट्रपति से भी मिल सकते हैं। इसके अलावा, अगर उनकी मांगों का समाधान नहीं होता, तो वे हर जिले में कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन देने का भी विचार कर रहे हैं।
यात्रा का भविष्य और प्रभाव
महासंगम यात्रा को लेकर मंदिरों के प्रबंधकों और धर्माचार्यों में उत्साह है, और उम्मीद जताई जा रही है कि इससे भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान मिल सकती है। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के समग्र विकास की दिशा में भी एक कदम है।
साथ ही, मंदिरों के सरकारीकरण से मुक्ति की मांग को लेकर इस यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालु और साधु संत इसे एक बड़ा आंदोलन मान रहे हैं। यह यात्रा उन सभी धार्मिक स्थलों के लिए एक अवसर प्रदान कर सकती है जिनका प्रशासनिक नियंत्रण सरकारी तंत्र के पास है। इस यात्रा का संदेश स्पष्ट है – हिंदू धर्मावलंबी खुद अपने मंदिरों का संचालन करें और सरकार से इसे मुक्त किया जाए।
समाज और श्रद्धालुओं का जुड़ाव
महासंगम यात्रा में समाज और श्रद्धालुओं की भागीदारी न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस यात्रा में शामिल होने वाले लोग न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, बल्कि यह उन्हें भारतीय संस्कृति और परंपराओं के महत्व को समझने का भी अवसर प्रदान करता है। यात्रा के दौरान, सभी को अपने धर्म और संस्कृति के प्रति एक नई जागरूकता और समर्पण का अनुभव हो रहा है।
निष्कर्ष: महासंगम यात्रा का महत्व और भविष्यi
12 ज्योतिर्लिंगों और 4 धामों की महासंगम यात्रा का उद्देश्य न केवल भारतीय धर्म और संस्कृति को पुनः जागृत करना है, बल्कि मंदिरों के सरकारीकरण से मुक्त होने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। यह यात्रा न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। मंदिरों का सौंदर्यीकरण, ब्राह्मणों को विदेशी भाषाओं में मंत्र पाठ की शिक्षा, और सरकारीकरण से मुक्ति की मांग, इन सभी पहलुओं के माध्यम से भारतीय समाज को एक नई दिशा मिलेगी।