खंडवा में अनोखा नजारा: पिता ने बेटी को घोड़ी पर बैठाकर किया विदा, समाज को दिया संदेश

खंडवा के सुरगाव जोशी गांव में एक पिता ने अपनी बेटी को घोड़ी पर बैठाकर विदा किया, समाज में बेटी और बेटे के बीच समानता का संदेश दिया। जानिए इस अनोखी शादी के बारे में।

मध्यप्रदेश: एक अनोखा और दिल छूने वाला दृश्य खंडवा जिले के सुरगाव जोशी गांव में देखने को मिला। आमतौर पर यह प्रथा रही है कि लड़का घोड़ी चढ़कर लड़की के घर पहुंचता है, लेकिन खंडवा के इस छोटे से गांव में कुछ अलग ही हुआ। यहां के किसान नानाजी चौधरी ने अपनी बेटी को बेटे की तरह पालते हुए, उसकी शादी के अवसर पर घोड़ी पर बैठाकर उसे विदा किया। यह नजारा देखते ही बनता था, जहां पिता ने अपनी बेटी का सपना पूरा किया और यह संदेश भी दिया कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होता।

नानाजी चौधरी का मानना था कि उनकी बेटी भाग्यश्री चौधरी के लिए भी वही सम्मान और आदर होना चाहिए जो एक बेटे को मिलता है। उन्होंने अपनी बेटी को घोड़ी पर बैठाकर विदा किया, और इसके साथ ही उन्होंने अपनी बेटी की शादी के दिन का सपना भी पूरा किया। इस अनोखे कदम से उन्होंने समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया कि बेटा-बेटी दोनों ही समान होते हैं और उनके साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए।

बेटी को घोड़ी पर बिठाकर किया विदा

परिवार के सदस्य बताते हैं कि नानाजी चौधरी की यह इच्छा थी कि उनकी बेटी को भी बेटे की तरह घोड़ी पर बैठाकर शादी के घर विदा किया जाए। यह वही परिवार था जहां बेटी को बेटे के समान मानकर पाला गया। भाग्यश्री चौधरी की शादी खंडवा के अजय जिराती से हुई है, जो एक निजी बैंक में क्रेडिट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं।

भाग्यश्री की शादी के दिन, जब वह अपने पिता के साथ घोड़ी पर बैठी, तो यह दृश्य देख कर हर कोई हैरान रह गया। कई लोग इस बदलाव को देखकर समाज में भेदभाव की जगह समानता का संदेश देने वाले कदम के रूप में देख रहे थे। भाग्यश्री के भाई रविंद्र चौधरी ने कहा, “हमने अपनी बहन को बेटा समझकर पाला और उसका सपना पूरा करने के लिए हम सबने मिलकर यह निर्णय लिया। हम चाहते थे कि हमारी बहन को भी वही इज्जत और सम्मान मिले जो किसी लड़के को मिलता है।”

समाज में बदलती सोच

यह घटना केवल एक पारिवारिक परंपरा का पालन नहीं थी, बल्कि यह समाज में बदलते विचारों और सोच का प्रतीक भी है। आज के समय में कई ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बेटों और बेटियों के बीच भेदभाव करते आए हैं, लेकिन अब यह सोच बदल रही है। अब लोग समझने लगे हैं कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता, दोनों ही समान हैं और दोनों को समान अधिकार मिलने चाहिए।

रविंद्र चौधरी, जो एक निजी बैंक में क्रेडिट मैनेजर हैं, ने कहा, “हमारे समाज में आमतौर पर यह देखा जाता है कि दूल्हा ही घोड़ी पर बैठता है, लेकिन हम ने अपनी बहन को वह सम्मान देने का निर्णय लिया, जो एक बेटे को मिलता है। हम यह मानते हैं कि बेटी को भी घोड़ी पर बैठाकर विदा किया जा सकता है। हमारे इस निर्णय से हम समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि बेटी और बेटे में कोई अंतर नहीं होना चाहिए।”

दुल्हन भाग्यश्री का अनुभव

दुल्हन भाग्यश्री चौधरी ने इस अनुभव के बारे में बात करते हुए कहा, “मेरे पापा का सपना था कि मैं घोड़ी पर बैठकर जाऊं और यह मेरा भी सपना था। मुझे अपने परिवार से पूरा सहयोग मिला और मैं करीब एक घंटे घोड़ी पर बैठी। यह अनुभव बहुत अच्छा था और मैं हमेशा इसे याद रखूंगी।”

भाग्यश्री के परिवार ने न केवल अपनी बेटी के सपनों को पूरा किया, बल्कि समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश भी दिया कि बेटा-बेटी में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। यह कदम निश्चित रूप से बदलाव की ओर एक बड़ा कदम था, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग बेटी को समान रूप से देखने की दिशा में सोचने लगे हैं।

समाज को एक सशक्त संदेश

यह घटना खंडवा जिले के सुरगाव जोशी गांव में समाज के लिए एक मजबूत संदेश लेकर आई है। नानाजी चौधरी ने अपनी बेटी को घोड़ी पर बैठाकर न केवल उसका सपना पूरा किया, बल्कि समाज को यह भी बताया कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता। इस कदम से यह भी साबित हुआ कि बेटियों के साथ भेदभाव की कोई आवश्यकता नहीं है और उन्हें भी बेटे जैसा सम्मान दिया जाना चाहिए।

आज के समय में यह बहुत जरूरी है कि हम बेटा-बेटी के बीच के भेदभाव को समाप्त करें और उन्हें समान अवसर प्रदान करें। जब एक पिता अपनी बेटी को घोड़ी पर बैठाकर विदा करता है, तो यह एक प्रेरणा बन जाती है, जो समाज में बदलाव की दिशा में एक मजबूत कदम है।

बेटा बेटी एक समान का दिया संदेश

खंडवा के सुरगाव जोशी गांव में घटित यह घटना निश्चित रूप से एक मिसाल बन चुकी है। नानाजी चौधरी ने यह दिखा दिया कि समाज में बदलाव लाने के लिए केवल सोच का परिवर्तन आवश्यक है। बेटी को घोड़ी पर बैठाकर विदा करने का उनका निर्णय न केवल उनके परिवार के लिए खुशी का कारण बना, बल्कि समाज में भी एक सकारात्मक संदेश दिया कि बेटा-बेटी दोनों ही समान होते हैं और उन्हें समान सम्मान मिलना चाहिए।