उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती का अद्भुत नजारा, श्रद्धालुओं ने किया दर्शन
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि के बाद हुई भस्म आरती, जो हर साल एक बार दोपहर 12 बजे होती है। लाखों श्रद्धालु पहुंचे भस्म आरती के दर्शन करने। जानें इस दिव्य अवसर की पूरी जानकारी।
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महाशिवरात्रि का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया गया, लेकिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में इसकी भव्यता अब भी जारी है। महाशिवरात्रि के दूसरे दिन एक अद्भुत और दिव्य अवसर पर महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती का आयोजन हुआ, जो श्रद्धालुओं के लिए किसी विशेष आशीर्वाद से कम नहीं था। इस साल भी यह भस्म आरती साल में एक बार दोपहर के समय आयोजित की गई, और इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु मंदिर पहुंचे।
महाकालेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि का महापर्व
उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व पूरे हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व महाकाल के भक्तों के लिए खास होता है, क्योंकि इस दिन भगवान महाकाल को विशेष श्रृंगार किया जाता है। महाशिवरात्रि के महापर्व के दौरान मंदिर में भगवान महाकाल का सेहरा पहनाया जाता है, जो इस परंपरा का एक अहम हिस्सा है। पुजारी पं. महेश शर्मा के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन महाकाल का विशेष श्रृंगार करने के बाद, भस्म आरती का आयोजन किया जाता है, जिसे देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।
भस्म आरती का विशेष महत्व
महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती अन्य दिनों की तुलना में खास होती है। जबकि नियमित रूप से यह आरती तड़के चार बजे होती है, महाशिवरात्रि के बाद साल में एक दिन ऐसा आता है, जब इसका आयोजन दोपहर 12 बजे किया जाता है। इस दिन को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह रहता है, क्योंकि यह आयोजन एक बार ही होता है। इस साल भी महाशिवरात्रि के दूसरे दिन महाकाल की भस्म आरती का समय बदलकर दोपहर 12 बजे किया गया।
भस्म आरती के दौरान की गई पूजन विधि
महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती से पहले एक खास पूजा विधि का पालन किया गया। मंदिर के पुजारियों ने पंचामृत अभिषेक के माध्यम से भगवान महाकाल को स्नान कराया। इसमें दूध, दही, शहद, फल, पंचामृत और अन्य पूजा सामग्री का उपयोग किया गया। इसके बाद महाकाल को विशेष पगड़ी पहनाई गई, जिससे उनका श्रृंगार और भी आकर्षक दिखने लगा। फिर विधिपूर्वक महाकाल की भस्म आरती की गई। इस दौरान मंदिर में एक दिव्य वातावरण का निर्माण हुआ, जिससे भक्तगण मंत्रमुग्ध हो गए।
श्रद्धालु पहुंचे दूर-दूर से
महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती का यह खास अवसर हजारों श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत अनुभव था। उज्जैन सहित देशभर से लाखों लोग इस भव्य आरती को देखने के लिए पहुंचे। पुजारी पं. महेश शर्मा के अनुसार, यह परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है, और महाशिवरात्रि के दूसरे दिन इस आरती का आयोजन किया जाता है। महाकाल की भस्म आरती का यह दृश्य न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक दिव्य अनुभव प्रदान करता है।
महाशिवरात्रि के बाद का पर्व
महाशिवरात्रि के दिन भगवान महाकाल का सेहरा सजाकर उन्हें दूल्हा बनाया जाता है। इसके बाद महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती का आयोजन होता है, जो महाशिवरात्रि महोत्सव के समापन का प्रतीक है। इसके बाद शिव नवरात्रि का पारणा, भोग आरती, और सायं पूजन किया जाता है। शयन आरती के साथ भगवान महाकाल के पट मंगल के लिए खोले जाते हैं, और इस दिन की पूजा विधि पूरी होती है।
महाकालेश्वर मंदिर के पट और श्रद्धालु दर्शन
महाशिवरात्रि के दिन महाकालेश्वर मंदिर के पट लगभग 44 घंटे तक खुले रहते हैं। इस समय के दौरान भक्तगण महाकाल के दर्शन करते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। महाशिवरात्रि के बाद अगले दिन भी मंदिर में दर्शन की प्रक्रिया जारी रहती है।
भस्म आरती: एक दिव्य और अविस्मरणीय अनुभव
महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती का आयोजन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह श्रद्धालुओं के लिए एक अद्वितीय अनुभव होता है। महाशिवरात्रि के बाद आयोजित होने वाली इस भस्म आरती को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु मंदिर में आते हैं, और यह अवसर उनके लिए एक जीवनभर का यादगार अनुभव बन जाता है।
महाकालेश्वर मंदिर की यह अद्भुत परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उज्जैन की सांस्कृतिक धरोहर को भी उजागर करती है।