चैत्रामजी पवार: कर्मयोगी जिन्होंने बारीपाडा को बनाया आदर्श गाँव
पद्मश्री चैत्रामजी पवार, जिन्होंने धुळे के बारीपाडा गाँव को जल, जंगल और जमीन के समन्वय से आदर्श बनाया। जानिए उनके संघर्ष और प्रेरणादायक कहानी।

- चैत्रामजी पवार: पद्मश्री से सम्मानित कर्मयोगी, जिन्होंने बारीपाडा को आदर्श गाँव बनाया
- पर्यावरण और महिलाएँ: जल-जंगल संरक्षण और वन भाजी स्पर्धा से महिलाओं को सशक्त किया
- सादगी की मिसाल: एम.कॉम पास, फिर भी सादा जीवन और गाँव के लिए समर्पण
महाराष्ट्र: आज हम बात करेंगे एक ऐसे शख्स की, जिनका नाम शायद आपने कम सुना हो, लेकिन जिनके काम ने धुळे जिले के साक्री तालुका में बारीपाडा जैसे छोटे से आदिवासी गाँव को न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों तक मशहूर कर दिया। ये हैं पद्मश्री चैत्रामजी पवार, जिन्हें लोग प्यार से "भाऊ" कहते हैं। एक साधारण इंसान, जो साधा शर्ट-पायजमा और चप्पल पहनकर, अपने काम से दुनिया को प्रेरणा दे रहा है।
कौन हैं चैत्रामजी पवार?
चैत्राम भाऊ का जन्म साक्री तालुका के बारीपाडा गाँव में हुआ। एम.कॉम तक पढ़ाई करने के बावजूद, उन्होंने अपनी बोली-भाषा और सादगी को कभी नहीं छोड़ा। छोटे-बड़े, सभी उन्हें "भाऊ" कहकर बुलाते हैं। उनकी जिंदगी का मकसद है— जल, जंगल, जमीन और इंसान के बीच संतुलन बनाना। ये कोई किताबी बात नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी का असल मिशन है, जिसे उन्होंने बारीपाडा में हकीकत में बदला।
बारीपाडा: एक गाँव, जो बना मिसाल
धुळे जिले का बारीपाडा गाँव आज देश-विदेश में जाना जाता है। यहाँ हर साल सैकड़ों स्टूडेंट्स पीएचडी और पर्यावरण पर रिसर्च करने आते हैं। गाँव को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। लेकिन ये सब हुआ कैसे? चैत्राम भाऊ की मेहनत और दूरदृष्टि से। उन्होंने गाँव में पानी, जंगल और जमीन को सहेजने का काम शुरू किया। नतीजा? बारीपाडा आज एक आदर्श गाँव बन चुका है, जो ग्रामीण भारत के विकास का प्रतीक है।
वन भाजी स्पर्धा: स्थानीय महिलाओं का उत्साह
चैत्राम भाऊ ने गाँव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनोखा कदम उठाया। हर साल बारीपाडा में **वन भाजी स्पर्धा** का आयोजन होता है, जिसमें जंगल की 110 से ज्यादा सब्जियों को एक थाली में सजाया जाता है। ये न सिर्फ स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देता है, बल्कि महिलाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका भी देता है। इस पहल ने गाँव की महिलाओं में आत्मविश्वास भरा और पर्यावरण संरक्षण को भी प्रोत्साहन मिला।
सादगी और समर्पण की मिसाल
हाल ही में जळगाव बस स्टैंड पर चैत्राम भाऊ का एक फोटो वायरल हुआ, जिसमें वो सिर पर बोझा ढोते नजर आए। ये तस्वीर बताती है कि वो कितने जमीन से जुड़े इंसान हैं। भले ही उनकी मुलाकातें, इंटरव्यू और खबरें छपती हों, लेकिन वो अपने मूल को कभी नहीं भूले। सादा लिबास, सादी चप्पल और सरल व्यवहार—यही उनकी पहचान है। वो उन लोगों में से हैं, जो पुरस्कारों के पीछे नहीं भागते। फिर भी, सरकार ने उनके काम को पहचानते हुए पद्मश्री से सम्मानित किया, जो उनके लिए सच्चा हकदार है।
क्यों खास हैं चैत्राम भाऊ?
- पर्यावरण संरक्षण: उन्होंने जंगल और पानी को बचाने के लिए सालों तक मेहनत की।
- मेंमहिला सशक्तीकरण: वन भाजी स्पर्धा जैसे आयोजनों से महिलाओं को प्रोत्साहन दिया।
- मेंग्रामीण विकास: बारीपाडा को एक ऐसा गाँव बनाया, जो दुनिया के लिए मिसाल है।
- मेंसादगी: भले ही वो एम.कॉम पास हों, उनकी भाषा और रहन-सहन गाँव जैसी सादी है।
बारीपाडा: सिर्फ गाँव नहीं, एक प्रेरणा
चैत्राम भाऊ का मानना है कि बारीपाडा सिर्फ एक गाँव नहीं, बल्कि एक आदर्श है। ये गाँव बताता है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो छोटी जगह से भी बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। आज बारीपाडा में पर्यावरण, शिक्षा और आत्मनिर्भरता का ऐसा मॉडल तैयार हुआ है, जो हर गाँव के लिए प्रेरणा है।
आखिर में...
चैत्रामजी पवार जैसे लोग इस देश का असली गहना हैं। वो बिना किसी शोर-शराबे के, बिना पुरस्कारों की चाह के, अपने गाँव और समाज के लिए काम करते हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा कर्मयोगी वही है, जो अपने काम से दूसरों की जिंदगी बदले। अगर आप बारीपाडा जाएँ, तो चैत्राम भाऊ से जरूर मिलें। उनकी सादगी और समर्पण आपको जरूर प्रेरित करेगा।