बुजुर्ग दंपति का संघर्ष: प्रयागराज महाकुंभ की भगदड़ से 4 दिन बाद 60 किमी पैदल चलकर घर पहुंचने की कहानी
सतना जिले के किचवरिया गांव के 70 वर्षीय बलिकरण सिंह और उनकी पत्नी गंगा देवी ने प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दौरान हुई भगदड़ के बाद 60 किमी पैदल चलकर अपने घर तक का सफर तय किया। जानिए उनकी जद्दोजहद, परिवार की चिंता, और आस्था की इस अनूठी गाथा के बारे में।
( मोहम्मद फारूक )यागराज का महाकुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, जहां करोड़ों श्रद्धालु संगम में पवित्र स्नान के लिए जुटते हैं। लेकिन इस साल मौनी अमावस्या (30 जनवरी) के अमृत स्नान के दौरान हुई भगदड़ ने कई लोगों के लिए यह अनुभव दुखद बना दिया। इनमें मध्य प्रदेश के सतना जिले के किचवरिया गांव के बुजुर्ग दंपति बलिकरण सिंह (70 वर्ष) और गंगा देवी (60 वर्ष) भी शामिल हैं। भीड़भाड़ में फंसे इस जोड़े ने अपना सामान खोया, रास्ते बंद होने के बावजूद 60 किलोमीटर पैदल चलकर सरकारी बस की मदद से घर पहुंचने तक का सफर तय किया। यह कहानी सिर्फ संघर्ष की नहीं, बल्कि आस्था, धैर्य और जीवटता की भी है।
मौनी अमावस्या का दिन: भगदड़ में फंसे बुजुर्ग
30 जनवरी की सुबह, बलिकरण सिंह और गंगा देवी महाकुंभ स्पेशल बस से प्रयागराज पहुंचे थे। संगम में स्नान करने का सपना लिए ये दोनों भीड़ में शामिल हो गए। लेकिन अचानक मची भगदड़ ने सबकुछ अस्त-व्यस्त कर दिया। बलिकरण बताते हैं, "हम दोनों हाथ पकड़कर आगे बढ़ रहे थे, लेकिन भीड़ इतनी थी कि हमारे साथ आए लोग और सामान सब अलग हो गए।" उनके पास रखा कपड़ा, पैसे और फोन सब गुम हो गए। हालांकि, वे खुद को सुरक्षित बचाने में कामयाब रहे।
रास्ते बंद, परेशानी बढ़ी: 60 किमी पैदल चलने का फैसला
भगदड़ के बाद दंपति ने सतना लौटने की कोशिश की, लेकिन सभी रास्ते बंद मिले। ट्रैफिक और सुरक्षा व्यवस्था के चलते कोई वाहन उपलब्ध नहीं था। बिना खाने-पीने के सामान और पैसों के, उन्होंने पैदल चलने का फैसला किया। गंगा देवी कहती हैं, "हमने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया और चल पड़े। डर था, लेकिन भगवान पर भरोसा था।" दोनों ने लगातार 12 घंटे चलकर फूलपुर तक का सफर तय किया, जो प्रयागराज से करीब 50-60 किमी दूर है।
सरकारी बस मिली, लेकिन चुनौतियां खत्म नहीं हुईं
फूलपुर में स्थानीय प्रशासन की बस से वे चाकघाट बार्डर पहुंचे। लेकिन बार्डर बंद होने के कारण वे वहीं एक ढाबे में रुके। 24 घंटे बाद बार्डर खुलने पर वे सेमरिया और टिकरी होते हुए अंततः किचवरिया गांव पहुंचे। यह पूरा सफर 4 दिनों तक चला। बलिकरण सिंह बताते हैं, "रास्ते में कई लोगों ने पानी और खाना दिया, नहीं तो शायद हम जिंदा नहीं बच पाते।"
परिवार की बेचैनी: "4 दिन तक कोई खबर नहीं थी"
जब तक दंपति घर नहीं पहुंचे, उनके परिजन और गांव वाले बेहद परेशान रहे। बलिकरण के बेटे रामसिंह ने बताया, "हमने प्रशासन से संपर्क किया, लेकिन भीड़ के कारण कोई जानकारी नहीं मिली। हर पल डर लगा रहा कि कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए।" गांव वालों ने भी सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें शेयर करके मदद मांगी थी। 4 दिन बाद जब दोनों सकुशल घर पहुंचे, तो पूरा गांव उनके चारों ओर जुट गया।
आखिरी पड़ाव: घर पहुंचने पर क्या हुआ?
गांव पहुंचते ही गंगा देवी ने आंगन में माथा टेका और बोलीं, "संगम में स्नान करके आए हैं, भगवान ने हमें बचा लिया।" हालांकि, इस पूरी घटना ने परिवार को सिखाया कि बड़े आयोजनों में बुजुर्गों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना कितना जरूरी है। गांव के सरपंच ने कहा, "हमने प्रशासन से अनुरोध किया है कि ऐसे मेलों में बुजुर्गों के लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए।"
समाज और प्रशासन की भूमिका: सबक और सुझाव
- आपदा प्रबंधन में सुधार: भीड़ नियंत्रण और एमरजेंसी एक्जिट रूट्स की व्यवस्था जरूरी।
- बुजुर्गों के लिए विशेष शिविर: स्वास्थ्य सेवाएं, ट्रैकिंग सिस्टम और सहायता डेस्क बनाए जाएं।
- सामान सुरक्षा: श्रद्धालुओं के लिए लॉकर या डिजिटल वॉलेट की सुविधा।
- परिवार संपर्क: लैंडलाइन या हेल्पलाइन नंबरों की जानकारी सभी को दी जाए।
बलिकरण सिंह और गंगा देवी की यह कहानी साबित करती है कि आस्था और दृढ़ संकल्प के आगे हर मुश्किल हार जाती है। लेकिन यह घटना प्रशासन और समाज के लिए एक चेतावनी भी है कि महाकुंभ जैसे आयोजनों में सुरक्षा और सुविधाओं को और मजबूत करने की जरूरत है। आखिर में, दंपति के चेहरे पर मुस्कान और गांव वालों का प्यार ही इस संघर्ष की सबसे बड़ी जीत है।