उज्जैन की नगर पूजा: माता को चढ़ता है मदिरा का भोग, 27 किमी तक बहती है शराब की धार
उज्जैन की अनोखी नगर पूजा में माता को लगाया जाता है मदिरा का भोग। 27 किमी तक बहती है शराब की धार। जानें इस परंपरा का इतिहास, महत्व और खासियत।

मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी, उज्जैन, अपनी अनूठी परंपराओं के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। यहां की परंपराएं न सिर्फ आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि इतिहास और संस्कृति की गहरी छाप भी लिए हुए हैं। ऐसी ही एक परंपरा है चैत्र नवरात्रि के दौरान महाअष्टमी पर होने वाली नगर पूजा जिसमें माता को मदिरा का भोग लगाया जाता है और 27 किलोमीटर के दायरे में शराब की धार चढ़ाई जाती है। यह पूजा सुख-समृद्धि और महामारी से सुरक्षा की कामना के साथ की जाती है। इस अनोखी परंपरा का निर्वहन आज भी उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ किया जाता है, जैसा कि इसके शुरूआती दिनों में होता था। आइए, इस परंपरा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नगर पूजा की शुरुआत और इतिहास
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज बताते हैं कि उज्जैन में होने वाली यह नगर पूजा विश्व में कहीं और नहीं देखी जा सकती। इसकी शुरुआत राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में हुई थी। तब से हर साल श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी इस परंपरा को जीवित रखे हुए है। यह पूजा चैत्र माह की अष्टमी तिथि को शुरू होती है और साल में दो बार नवरात्रि के दौरान आयोजित की जाती है। उनका कहना है कि यह परंपरा सिर्फ उज्जैन की पहचान है और इसके पीछे गहरी आस्था जुड़ी हुई है।
कैसे होती है नगर पूजा?
नगर पूजा की शुरुआत सुबह 8 बजे 24 खंबा माता मंदिर से होती है। यहां माता महामाया और माता महालाया का पूजन-अर्चन किया जाता है। इस दौरान माता को मदिरा का भोग लगाया जाता है। इसके बाद 27 किलोमीटर के दायरे में आने वाले सभी माता और भैरव मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। यह यात्रा रात 8 बजे हांडी फोड़ भैरव मंदिर पर समाप्त होती है। कुल 12 घंटे तक चलने वाली इस पूजा में करीब 40 मंदिर शामिल होते हैं।
पूजा के दौरान कोटवार शराब की हांडी लेकर आगे-आगे चलते हैं, जबकि उनके पीछे शासकीय दल पूजा की सामग्री लेकर चलता है। ढोल-नगाड़ों की थाप और हर्षोल्लास के साथ यह यात्रा आगे बढ़ती है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और प्रशासनिक अधिकारी भी इस आयोजन में विशेष रूप से मौजूद रहते हैं।
क्यों है यह परंपरा खास?
नगर पूजा का मुख्य उद्देश्य उज्जैन नगर की सुख-समृद्धि और रोग-महामारी से सुरक्षा है। मान्यता है कि इस पूजा से माता की कृपा बनी रहती है और शहर किसी भी संकट से बचा रहता है। यही वजह है कि इसे साल में दो बार इतने उत्साह के साथ मनाया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा उनकी आस्था का आधार है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग उज्जैन आते हैं।
परंपरा में शराब का महत्व
आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि इस पूजा में शराब का इस्तेमाल क्यों किया जाता है। दरअसल, यह परंपरा तांत्रिक पूजा से जुड़ी हुई है। भैरव और माता के कुछ रूपों को मदिरा का भोग प्रिय माना जाता है। इसलिए 27 किलोमीटर तक मंदिरों में शराब की धार चढ़ाई जाती है। यह नजारा अपने आप में अनोखा होता है और उज्जैन की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है।
प्रशासन और अखाड़ा परिषद की भूमिका
इस आयोजन में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के साथ-साथ जिला प्रशासन भी सक्रिय रूप से भाग लेता है। अधिकारी बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं और पूजा को सुचारू रूप से संपन्न कराने में मदद करते हैं। यह परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।
उज्जैन की अन्य परंपराएं
नगर पूजा के अलावा उज्जैन में होली के दौरान सिंहपूरी क्षेत्र में कंडों की होली भी प्रसिद्ध है। ये परंपराएं उज्जैन को एक अनोखी पहचान देती हैं। महाकाल की नगरी होने के कारण यहां हर त्योहार और रिवाज का विशेष महत्व है।
परंपरा का सार और निमंत्रण
उज्जैन की नगर पूजा एक ऐसी परंपरा है जो इतिहास, आस्था और संस्कृति का संगम है। माता को मदिरा का भोग और 27 किलोमीटर तक बहती शराब की धार इसे विश्व में अनोखा बनाती है। यह पूजा न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि उज्जैन की सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाती है। अगर आप भी इस अनोखे आयोजन का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो चैत्र नवरात्रि के दौरान उज्जैन की यात्रा जरूर करें।