भोपाल में प्रताड़ित पतियों की कहानी: वैवाहिक प्रताड़ना को 'वैवाहिक आतंकवाद' का नाम

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में वैवाहिक प्रताड़ना से जूझ रहे पतियों ने अपनी दर्दनाक कहानियां साझा की। लीगल वॉच ने इसे 'वैवाहिक आतंकवाद' का नाम दिया। जानिए झूठे केस और कोर्ट के चक्कर झेल रहे पुरुषों की आपबीती।

भोपाल में प्रताड़ित पतियों की कहानी: वैवाहिक प्रताड़ना को 'वैवाहिक आतंकवाद' का नाम
सांकेतिक तस्वीर

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हाल ही में एक अनोखा और भावनात्मक आयोजन हुआ, जहां वैवाहिक प्रताड़ना से जूझ रहे पतियों ने एक मंच पर आकर अपनी आपबीती साझा की। इस आयोजन को लीगल वॉच नामक संस्था ने आयोजित किया था, जो ऐसी पीड़ित पुरुषों की मदद के लिए काम करती है। संस्था ने इस समस्या को 'वैवाहिक आतंकवाद' का नाम दिया है, जो समाज में पुरुषों के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा और झूठे मुकदमों की गंभीरता को दर्शाता है। इस लेख में हम इन पतियों की कहानियों, उनके संघर्षों और इस मुद्दे पर लीगल वॉच की मांगों को विस्तार से जानेंगे।

वैवाहिक प्रताड़ना: पुरुष भी हैं शिकार

लीगल वॉच की प्रमुख चांदना अरोरा ने बताया कि समाज में पुरुषों को हमेशा एक विशेष नजरिए से देखा जाता है, जिसके कारण उनकी पीड़ा को गंभीरता से नहीं लिया जाता। उन्होंने कहा, "हमारी संस्था को रोजाना ऐसे मामले मिलते हैं, जहां अच्छी नौकरियों में कार्यरत पुरुष अपनी पत्नियों और उनके परिवार वालों द्वारा मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किए जा रहे हैं। कई बार तो संगठित रैकेट्स इन पुरुषों के खिलाफ झूठे केस दर्ज करवाते हैं, जिनमें मोटी रकम की उगाही की मांग की जाती है।"

चांदना ने यह भी बताया कि ज्यादातर पीड़ित पुरुष सरकारी नौकरियों या प्रतिष्ठित प्राइवेट नौकरियों में हैं। उनके खिलाफ झूठे केस, जैसे मारपीट, दहेज उत्पीड़न या मेंटेनेंस की मांग, दर्ज किए जाते हैं। इन मामलों में पुरुषों को न केवल कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं, बल्कि सामाजिक और मानसिक तनाव भी झेलना पड़ता है।

आफताब अली की कहानी: झूठे केस और कोर्ट के चक्कर

भोपाल के रहने वाले आफताब अली ने अपनी दर्दनाक कहानी साझा की। उनकी शादी 2009 में हुई थी, लेकिन 2017 से उनकी पत्नी ने उन पर झूठे केस दर्ज करवाने शुरू कर दिए। आफताब ने बताया, "मेरी पत्नी ने गुजरात के गोधरा और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में मेरे खिलाफ केस दर्ज करवाए। एक केस में आरोप था कि मैंने मारपीट कर पत्नी को घर से निकाल दिया, जबकि उस दिन मैं भोपाल में था। फिर मेंटेनेंस का केस भी दायर किया गया।"

आफताब ने आगे बताया, "मेरी पत्नी की बस यही शर्त थी कि मैं अपने परिवार से पूरी तरह अलग हो जाऊं। मैंने जब ये बात नहीं मानी, तो उन्होंने तलाक दे दिया। अब मैं गुजरात और उत्तर प्रदेश के बीच कोर्ट की तारीखों के लिए इधर-उधर भटक रहा हूं। मैं नेत्रहीन हूं, बिना सहारे के एक कदम भी नहीं चल सकता, लेकिन फिर भी मुझ पर मारपीट के इल्ज़ाम लगा दिए गए। पुलिस ने बिना किसी जांच के मेरे खिलाफ FIR लिख दी।"

वाल्मीक अहीरे का संघर्ष: मां को वृद्धाश्रम भेजने का दबाव

वाल्मीक अहीरे की कहानी भी कम दुखद नहीं है। उनकी पत्नी ने शादी के बाद से ही उन पर अत्याचार शुरू कर दिए। वाल्मीक ने बताया, "मेरी पत्नी लगातार मेरी मां को वृद्धाश्रम भेजने की मांग करती थी। मैंने अपने परिवार को बचाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन पत्नी ने मुझ पर झूठे आरोप लगाए। अब मैं पिछले छह साल से कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहा हूं।"

एस यादव और उमेश सालोनिया की पीड़ा

एस यादव ने बताया कि उनकी पत्नी ने उन पर झूठे केस दर्ज करवाए और अब 50 हजार रुपये महीने की मेंटेनेंस और उनके द्वारा मेहनत से बनाए गए मकान की मांग कर रही है। उमेश सालोनिया की कहानी भी ऐसी ही है। उनकी पत्नी का शादी के बाद भी किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध था। उमेश ने परिवार को बचाने की कोशिश की, लेकिन पत्नी ने अपने परिवार के साथ मिलकर उन पर झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया। अब उमेश 10 लाख रुपये और जेवर की मांग का सामना कर रहे हैं।

लीगल वॉच की मांग: राष्ट्रीय पुरुष आयोग का गठन

चांदना अरोरा ने इस गंभीर मुद्दे पर अपनी मांग रखते हुए कहा, "पुरुषों को भी न्याय मिलना चाहिए। झूठे मुकदमों की सुनवाई जल्द होनी चाहिए ताकि पीड़ितों को राहत मिले। हमारी मांग है कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर एक राष्ट्रीय पुरुष आयोग का गठन हो, जो पुरुषों की समस्याओं को सुन सके और उन्हें न्याय दिला सके।"

समाज में बदलाव की जरूरत

यह आयोजन न केवल प्रताड़ित पतियों की पीड़ा को सामने लाया, बल्कि समाज में पुरुषों के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा और अन्याय पर भी सवाल उठाए। पुरुषों को भी अपनी बात रखने का हक है, और उनकी समस्याओं को गंभीरता से लेना जरूरी है। लीगल वॉच जैसी संस्थाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही हैं, लेकिन समाज और कानूनी व्यवस्था को भी इस मुद्दे पर संवेदनशील होने की जरूरत है।