सिंहस्थ महाकुंभ पर साधु संतों का आक्रोश, अधिकारियों के खिलाफ बहिष्कार की चेतावनी

उज्जैन के सिंहस्थ महाकुंभ में प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा पर साधु संतों का आक्रोश। स्थानीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने बहिष्कार की धमकी दी। पढ़ें पूरी खबर।

सिंहस्थ महाकुंभ पर साधु संतों का आक्रोश, अधिकारियों के खिलाफ बहिष्कार की चेतावनी
सिंहस्थ महाकुंभ पर साधु संतों का आक्रोश

मध्यप्रदेश: धार्मिक नगरी उज्जैन का सिंहस्थ महाकुंभ न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। यह आयोजन हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जिसमें सभी अखाड़ों के साधु संत हिस्सा लेते हैं। इस महाकुंभ में साधु संत न केवल धर्म, आस्था और परंपरा का पालन करते हैं, बल्कि लाखों श्रद्धालुओं के बीच महापर्वों पर स्नान करके इस आयोजन को और भी भव्य बनाते हैं।

लेकिन हाल ही में सिंहस्थ महाकुंभ को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों और साधु संतों के बीच विवाद ने तूल पकड़ लिया है। साधु संतों का आरोप है कि उन्हें सिंहस्थ महाकुंभ से संबंधित बैठकों और निरीक्षणों में नहीं बुलाया जा रहा है, जिससे उनके बीच नाराजगी और आक्रोश बढ़ता जा रहा है। स्थानीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रामेश्वर दास महाराज ने इस मुद्दे को लेकर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यदि प्रशासनिक अधिकारी उन्हें सिंहस्थ की बैठकों और कार्यों में शामिल नहीं करना चाहते तो वे खुद ही सिंहस्थ का आयोजन कर लें। महंत रामेश्वर दास का कहना है कि बिना साधु संतों के सिंहस्थ महाकुंभ की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

सिंहस्थ महाकुंभ की तैयारी और साधु संतों की भूमिका

सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन उज्जैन में एक प्रमुख धार्मिक आयोजन के रूप में होता है। यह आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु, साधु संत और अखाड़े हिस्सा लेते हैं। इस महाकुंभ का उद्देश्य न केवल धार्मिक आस्था की अभिव्यक्ति है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन भी है, जहां लोग एकत्र होकर अपनी आस्थाओं का पालन करते हैं।

महंत रामेश्वर दास के अनुसार, जब से सिंहस्थ महाकुंभ की तैयारी शुरू हुई है, तब से प्रशासनिक अधिकारी अपनी इच्छाओं के अनुसार काम कर रहे हैं। उनका आरोप है कि न तो साधु संतों को बैठकों में बुलाया जा रहा है और न ही निर्माण कार्यों के निरीक्षण के दौरान उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। यह स्थिति उन्हें बहुत निराश करती है, क्योंकि साधु संत इस आयोजन का अभिन्न हिस्सा होते हैं और बिना उनकी उपस्थिति के सिंहस्थ का आयोजन अधूरा माना जाता है।

प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा पर साधु संतों का गुस्सा

महंत रामेश्वर दास ने कहा, "मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हमें पहले आश्वासन दिया था कि सिंहस्थ महाकुंभ की तैयारी में साधु संतों की भागीदारी प्रशासनिक अधिकारियों की तरह ही होगी, लेकिन अब जो हो रहा है, वह गलत है। प्रशासनिक अधिकारी अपनी मर्जी से कार्य कर रहे हैं और साधु संतों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है।" उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर अधिकारी साधु संतों को शामिल किए बिना सिंहस्थ का आयोजन करना चाहते हैं, तो वे खुद इस आयोजन को कर लें।

साधु संतों का आरोप है कि प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ निर्माण कार्यों और सड़कों के निरीक्षण में ही व्यस्त हैं, लेकिन धार्मिक परंपराओं और अनुष्ठानों से जुड़े कार्यों में उनका कोई ध्यान नहीं है। महंत रामेश्वर दास के अनुसार, जब तक साधु संतों को उनके उचित स्थान पर नहीं लिया जाता, तब तक सिंहस्थ की तैयारी में कोई सफलता की उम्मीद नहीं की जा सकती।

इलाहाबाद और प्रयागराज की घटनाओं से अधिकारियों को सीखने की सलाह

स्थानीय अखाड़ा परिषद के महंत भगवान दास ने भी प्रशासन के खिलाफ अपना आक्रोश व्यक्त किया। उनका कहना था कि प्रशासन के अधिकारी सिंहस्थ के कार्यों को अपने मनमाने तरीके से कर रहे हैं। उन्हें यह भी नहीं पता कि कौन सा अखाड़ा कहां स्नान करेगा और किस घाट पर उसकी पेशवाई निकलेगी। महंत भगवान दास ने चेतावनी दी कि अगर प्रशासन की यह उपेक्षा जारी रहती है, तो इससे इलाहाबाद और प्रयागराज जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति हो सकती है। उन्होंने प्रशासन को समझाया कि यदि वे साधु संतों के साथ सहयोग नहीं करेंगे, तो परिणाम भयानक हो सकते हैं।

सिंहस्थ महाकुंभ की अहमियत

सिंहस्थ महाकुंभ सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व का भी आयोजन है। इस आयोजन में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं, और यह एक ऐसा अवसर है जब धर्म, संस्कृति और परंपराएं एक साथ मिलती हैं। ऐसे में साधु संतों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे न केवल धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, बल्कि वे समाज को दिशा भी प्रदान करते हैं।

अखाड़ा परिषद और साधु संतों की भूमिका

अखाड़ा परिषद का नेतृत्व करने वाले साधु संतों का कहना है कि प्रशासन को चाहिए कि वे इस धार्मिक आयोजन के महत्व को समझें और साधु संतों को उनका उचित स्थान दें। इसके बिना सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन अपूर्ण रहेगा। साधु संतों का कहना है कि वे न केवल इस आयोजन का हिस्सा हैं, बल्कि वे इसकी सफलता के लिए जरूरी मार्गदर्शन और दिशा भी प्रदान करते हैं।

आखिरकार क्या होगा सिंहस्थ का भविष्य?

सिंहस्थ महाकुंभ के आयोजन से पहले साधु संतों और प्रशासन के बीच बढ़ते विवाद के कारण आयोजनों की सफलता पर सवाल खड़ा हो गया है। यदि प्रशासन और साधु संतों के बीच यह विवाद सुलझता नहीं है, तो यह आयोजन अपनी पूरी क्षमता से सफल नहीं हो सकेगा। इसलिए यह जरूरी है कि प्रशासन साधु संतों के साथ संवाद स्थापित करे और उनकी भूमिका को मान्यता दे, ताकि सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ सफल हो सके।

प्रशासन और साधु संतु के बीच विवाद की स्थिति

सिंहस्थ महाकुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजन में प्रशासन और साधु संतों के बीच तालमेल बेहद जरूरी है। यदि प्रशासन इस विवाद को सुलझाकर साधु संतों को उनके उचित स्थान पर नहीं लाता है, तो यह आयोजन न केवल धार्मिक रूप से अधूरा रहेगा, बल्कि इसका सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी प्रभावित होगा। इसलिए यह जरूरी है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे के विचारों का सम्मान करें और एक साथ मिलकर इस महाकुंभ को सफल बनाएं।