प्रयागराज महाकुंभ की पेशवाई में कला का जादू: गोलू के 'दीपक-गोलू झांकी' ग्रुप की कहानी
प्रयागराज महाकुंभ में झांकी की रंगीन दुनिया और गोलू के 'दीपक-गोलू झांकी' ग्रुप के कलाकारों के संघर्ष, कला और परंपरा को जानें। इस आर्टिकल में जानें कैसे कला, प्रशिक्षण और डिमांड से जुड़े गोलू के अनुभव और पेशवाई में बदलाव हो रहे हैं।
प्रयागराज महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी से होने जा रही है, और इस बार भी लाखों लोग इस अद्भुत धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन का हिस्सा बनने के लिए पहुंचेंगे। महाकुंभ के दौरान पेशवाई या छावनी प्रवेश का आयोजन एक पारंपरिक परंपरा है, जिसमें विभिन्न अखाड़े अपने-अपने रूप में प्रवेश करते हैं। यह परंपरा अब एक नई दिशा में बढ़ चुकी है, जहां पेशवाई को और भी भव्य और आकर्षक बनाने के लिए विशेष प्रकार की झांकियां तैयार की जाती हैं। इन झांकियों में कलाकार भगवान के रूप में और अघोरी, नागा बाबा जैसे पात्रों का रूप धारण करते हैं। इनमें से एक प्रमुख नाम है दीपक-गोलू झांकी ग्रुप, जिसका नेतृत्व गोलू केसरवानी कर रहे हैं।
गोलू केसरवानी: पेशवाई की धड़कन
गोलू केसरवानी और उनके परिवार का यह काम सदियों पुराना है। उनके पिता दीपक केसरवानी ने इस कार्य की शुरुआत की थी, और अब गोलू इसका नेतृत्व करते हैं। गोलू का कहना है, "हमारी टीम में कुल 25 लोग होते हैं। इनमें से आठ लोग अघोरी के रूप में अभिनय करते हैं, जबकि बाकी लोग श्रीराम, कृष्ण, भोलेनाथ और अन्य देवताओं के रूप में प्रस्तुत होते हैं।" गोलू खुद हनुमान का रूप धारण करते हैं और इस समय महाकुंभ में सबसे ज्यादा डिमांड हनुमान के 'बाहुबली' रूप की है।
गोलू का यह कार्य महाकुंभ के परिप्रेक्ष्य में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पेशवाई में झांकी की टीमों को केवल अच्छी एक्टिंग ही नहीं, बल्कि सही तरीके से प्रशिक्षण भी दिया जाता है। उनके ग्रुप में सभी कलाकार काफी मेहनत और लगन से अपनी भूमिका निभाते हैं। हर किरदार के लिए ट्रेनिंग 1 से लेकर 6 महीने तक दी जाती है, ताकि कलाकार पूरी तरह से तैयार हो सकें। गोलू बताते हैं, "हम जब भी झांकी के लिए तैयारी करते हैं, सबसे पहले भगवान का नाम लेते हैं और फिर अपनी कला को प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं।"
पेशवाई की बदलती परंपरा
पहले जहां पेशवाई में केवल ढोल, बैंड और कुछ साधारण गाड़ियां शामिल होती थीं, अब यह कहीं ज्यादा भव्य हो चुकी है। आजकल 10 से ज्यादा डीजे-बैंड, फूलों से सजी गाड़ियां और झांकी ग्रुप के साथ पेशवाई का आयोजन होता है। एक पेशवाई अब 1 से डेढ़ किलोमीटर लंबी हो सकती है। इस बदलाव के कारण अब ज्यादा से ज्यादा कलाकार इस कार्य में शामिल होते हैं, और इसके साथ ही अधिक डिमांड भी पैदा हो गई है।
झांकी में मुख्य रूप से भगवान के रूप में कलाकारों को प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन अघोरी और नागा बाबा के किरदार भी महत्वपूर्ण होते हैं। गोलू और उनकी टीम अघोरी का रूप ऐसे प्रस्तुत करते हैं कि आम आदमी भी विश्वास करने लगता है कि ये सचमुच अघोरी हैं। इसके लिए टीम को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें शरीर पर राख लगाने, और अघोरी की विशेष मुद्रा व भाषाओं का अभ्यास किया जाता है।
कला और ट्रेनिंग: अघोरी और भगवान के रूप में अभिनय
गोलू और उनकी टीम के कलाकार केवल बाहरी रूप से ही नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से भी किरदार में ढलने की पूरी कोशिश करते हैं। इस वजह से उन्हें लंबे समय तक ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है। गोलू बताते हैं, "हमारे पास ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट है, जहां हर कलाकार को 1 से 6 महीने तक ट्रेनिंग दी जाती है। जब वह तैयार हो जाते हैं, तब उनका वीडियो बनाकर इसे टीम के अन्य सदस्य और कुछ बाहरी लोगों से दिखाया जाता है।" यह सुनिश्चित करने के बाद कि कलाकार पूरी तरह से तैयार है, उसे कार्यक्रम में प्रस्तुत किया जाता है।
गोलू का कहना है, "आधुनिक समय में अब यह काम एक प्रतिस्पर्धा बन चुका है। इसलिए हम हर बार कुछ नया करने की कोशिश करते हैं।" उनका यह विश्वास है कि उनकी टीम की बेहतरीन एक्टिंग और परफॉर्मेंस ही उन्हें सफलता दिलाती है।
अघोरी की कला और खतरनाक प्रदर्शन
अघोरी की एक्टिंग करना कोई आसान काम नहीं है। दिनभर राख में लिपटे रहना, शरीर को जलाने की एक्टिंग करना और आग के साथ खेलने के दौरान कई जोखिम होते हैं। गोलू का कहना है, "कुछ लोग मुंह में पेट्रोल और डीजल भरकर आग से खेलते हैं, लेकिन हम इस तरह के खतरनाक प्रदर्शन से दूर रहते हैं। यह किसी भी तरह से सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। हमने सुना है कि इससे कई हादसे हो चुके हैं।"
गोलू और उनकी टीम के कलाकार अपने प्रदर्शन में आग से खेलने की बजाय सांस्कृतिक और धार्मिक कहानियों को बेहतर तरीके से पेश करते हैं। यही कारण है कि उनकी झांकी को सोशल मीडिया पर खूब सराहा जा रहा है। उनका मानना है कि कला को प्रदर्शन करने के लिए सुरक्षा और सही दिशा जरूरी है।
पेशवाई में कलाकारों की मेहनत और दाम
महाकुंभ में झांकी निकालने के लिए गोलू और उनकी टीम को अच्छे दाम मिलते हैं। वे बताते हैं, "हमारी टीम को एक प्रोग्राम के लिए 30,000 से 35,000 रुपये मिलते हैं। अगर आधी टीम जाती है तो चार्ज भी आधा हो जाता है। इसके अलावा, प्रोग्राम स्थल तक पहुंचने का खर्च भी हम ही उठाते हैं। कार्यक्रम खत्म होने के बाद, सभी को उनका हिस्सा मिलता है।"
गोलू की टीम में शनि भगवान का किरदार निभाने वाले एक कलाकार हैं, जो अपने नाम के आगे महाकाल लगाते हैं। वह 1500 रुपये प्रति प्रोग्राम के हिसाब से कमाई करते हैं। शनि बताते हैं, "मैं एलएलबी कर रहा हूं, लेकिन जब तक महाकाल की कृपा है, मैं यह काम करता रहूंगा।"
एकता में बंधी टीम: हिंदू-मुस्लिम कलाकारों की साझेदारी
गोलू की टीम में हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रकार के कलाकार शामिल हैं। गोलू खुद इसे एकता का प्रतीक मानते हैं। वह बताते हैं, "हमारी टीम में 5 मुस्लिम कलाकार हैं, जिनमें से कुछ काली और कुछ कृष्ण का रूप धारण करते हैं। हम सब अच्छे दोस्त हैं और साथ मिलकर काम करते हैं। हमारी प्राथमिकता केवल कला और भगवान की पूजा है।"
गोलू के पिता: दीपक केसरवानी की विरासत
गोलू के पिता दीपक केसरवानी ने इस कला की शुरुआत 26 साल पहले की थी। वह बताते हैं, "हमने सबसे पहले बजरंगबली का रोल करना शुरू किया था, और प्रयागराज में यह काम कोई नहीं करता था। हम सिंदूर लगाकर इसका प्रदर्शन करते थे।" दीपक का मानना है कि उनके बेटे गोलू ने इस काम में नई जान डाली है और अब यह काम एक बड़े स्तर पर किया जाता है।
दीपक बताते हैं, "गोलू जब हनुमान बना था, तो वह आधे कार्यक्रम के बाद भाग गया था, लेकिन भगवान से प्रार्थना करने के बाद वह वापस आ गया और अच्छे से काम करने लगा।"
प्रयागराज महाकुंभ: कला और परंपरा का संगम
प्रयागराज महाकुंभ में झांकी और पेशवाई का आयोजन अब केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन चुका है। गोलू और उनकी टीम का काम इस बदलाव का एक हिस्सा है, जिसमें कला, प्रदर्शन और परंपरा का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। इन कलाकारों की मेहनत और कला की दिशा से यह साबित होता है कि सही प्रशिक्षण और कड़ी मेहनत से कोई भी काम साकार हो सकता है।