अक्षय कुमार के गाने 'महाकाल चलो' पर महाकाल मंदिर के पुजारी की आपत्ति – जानें पूरा विवाद!
अक्षय कुमार का गाना 'महाकाल चलो' धार्मिक विवादों का कारण बना। जानें महाकाल मंदिर के पुजारी महेश शर्मा की आपत्ति और इसके पीछे का कारण।
अक्षय कुमार का नया गाना "महाकाल चलो" हाल ही में रिलीज़ हुआ है और इसे लेकर सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। जहां कुछ लोग गाने की धुन और अभिनय की तारीफ कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग गाने में दिखाए गए दृश्य पर आपत्ति जता रहे हैं। खासकर, उज्जैन (अवंतिका) के महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने गाने में दिखाई गई कुछ छवियों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि गाने में महाकाल के शिवलिंग के साथ दिखाए गए दृश्य धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं और इससे सनातन धर्म की प्रतिष्ठा को भी नुकसान हो सकता है।
गाने की शुरुआत में दिखाए गए दृश्य पर आपत्ति
अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष व महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने गाने के शुरुआत में महाकाल के दर्शन की बात की है, जो पूरी तरह से स्वागत योग्य है। उनका कहना है कि "महाकाल चलो" का शब्द उच्चारित करना एक सकारात्मक बात है, जो महाकाल के प्रति श्रद्धा को बढ़ावा देता है। हालांकि, उनका विरोध गाने के कुछ दृश्यों को लेकर है, जिनमें अक्षय कुमार अभिषेक और भस्म चढ़ाते समय शिवलिंग से लिपटे हुए दिखाई दे रहे हैं।
पुजारी महेश शर्मा के अनुसार, इस गाने में दिखाया गया दृश्य गलत है क्योंकि जब शिवलिंग पर अभिषेक किया जाता है, तो उसे ध्यान से और पवित्र तरीके से किया जाता है। जिसमें पंचामृत और बहुत सी पवित्र वस्तुओं का समावेश किया जाता है। इस दौरान किसी व्यक्ति का शिवलिंग से लिपटना न केवल अनुचित है, बल्कि यह धार्मिक परंपराओं के खिलाफ भी है। वे बताते हैं कि इस प्रकार का प्रदर्शन ना केवल धार्मिक नगरी ( अवंतिका ) उज्जैन की परंपराओं को ठेस पहुंचाता है, बल्कि यह श्रद्धालुओं के मन में गलत संदेश भी उत्पन्न कर सकता है।
भस्म चढ़ाने का महत्व और गाने में किया गया गलत प्रदर्शन
पुजारी महेश शर्मा ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि गाने में यह दिखाया गया है कि अक्षय कुमार पर भस्म चढ़ाई जा रही है। उनका कहना है कि धार्मिक नगरी उज्जैन ( अवंतिका ) में दुनिया का मात्र एक बाबा महाकाल का शिवलिंग है जहां साक्षात महाकाल विराजमान है जहां भस्म चढ़ाई जाती है, दुनिया में और कहीं भस्म चढ़ाने का विधान नहीं है। और इस पर किसी भी व्यक्ति का शिवलिंग से लिपटना अनुचित है। पंडित महेश शर्मा के मुताबिक, गाने में भस्म चढ़ाने का जो दृश्य दिखाया गया है, वह पूरी तरह से गलत है।
महाकाल मंदिर में भस्म चढ़ाने की प्रक्रिया बहुत पवित्र और प्राचीन परंपरा मानी जाती है, और यह केवल उज्जैन (अवंतिका) के महाकाल के शिवलिंग पर ही चढ़ाई जाती है। गाने में इस प्रक्रिया को गलत तरीके से दिखाना धार्मिक दृष्टिकोण से अपमानजनक है। उनका कहना है कि शिवलिंग पर अभिषेक के दौरान, पंचामृत चढ़ाना एक पारंपरिक और धार्मिक कार्य है, स्टूडियो में कहीं भी शिवलिंग बनाकर इस प्रक्रिया को गाने में दिखाना जिस प्रकार से किया गया है, वह पूरी तरह से गलत है।
धार्मिक भावनाओं की अनदेखी और गाने पर रोक लगाने की मांग
पुजारी महेश शर्मा ने गाने के निर्माता और अक्षय कुमार कहना है की है कि ऐसे गानों पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के दृश्य सनातन धर्म की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पहले भी इस प्रकार की घटनाएं हो चुकी हैं, जब धार्मिक प्रतीकों का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया था, और उन्होंने तब भी इसका विरोध किया था। और न्यायालय गए थे, ठीक उसी प्रकार इस गाने से आपत्तिजनक दृश्य को हटाया नहीं जाता है तो फिर न्यायालय जाएंगे।
उनका मानना है कि गाने में भगवान शिव का प्रदर्शन इस तरीके से नहीं किया जाना चाहिए। यदि ऐसे दृश्य दिखाए जाते हैं, तो इससे न केवल धार्मिक नगरी उज्जैन (अवंतिका) की प्रतिष्ठा को नुकसान होगा, बल्कि यह आने वाली पीढ़ी पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। गाने में दिखाए गए दृश्यों को लेकर विवाद और विरोध उठने के बाद, उन्होंने इस पर कड़ा रुख अपनाया है और गाने के निर्माताओं से इस पर पुनर्विचार करने के साथ ही कड़ी चेतावनी भी दी है।
फिल्म इंडस्ट्री में धार्मिक मुद्दों पर बढ़ते विवाद
यह पहला अवसर नहीं है जब फिल्म इंडस्ट्री में धार्मिक भावनाओं को लेकर विवाद उठे हैं। इससे पहले भी कई फिल्मों और गानों को लेकर धार्मिक समुदायों से विरोध उठ चुका है। फिल्मों में दिखाए गए धार्मिक प्रतीकों और परंपराओं के प्रति अनादर के आरोप अक्सर लगते रहे हैं। इस विवाद ने एक बार फिर से यह सवाल उठाया है कि फिल्म इंडस्ट्री को धार्मिक प्रतीकों और मान्यताओं का सम्मान करते हुए अपनी कला प्रस्तुत करनी चाहिए।
अक्षय कुमार जैसे बड़े अभिनेता का गाना, जो व्यापक दर्शकों तक पहुंचता है, उन्हें इस तरह के संवेदनशील मुद्दों का ध्यान रखते हुए अपने काम में सतर्क रहना चाहिए। फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को यह समझना चाहिए कि उनके काम का समाज पर गहरा असर पड़ता है, और इससे समाज में धार्मिक संवेदनाओं का उल्लंघन हो सकता है।
गाने के संदेश पर विचार
"महाकाल चलो" गाने का उद्देश्य भक्तों को महाकाल की ओर प्रेरित करना और उनके प्रति श्रद्धा जागृत करना था। इस गाने की धुन और इसके शब्दों में एक आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस होती है, जो भक्तों को महाकाल के दरबार में जाने के लिए प्रेरित करती है। हालांकि, गाने में कुछ दृश्यों को लेकर उठे विवाद ने इसके वास्तविक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कुछ प्रश्न खड़े किए हैं। क्या गाने का एक सकारात्मक संदेश देने के दौरान धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन करना उचित है? यह सवाल समाज में कई लोगों के मन में उठ रहा है।
अक्षय कुमार और फिल्म निर्माता इसे एक कला का हिस्सा मानते हुए इसे प्रस्तुत कर रहे होंगे, लेकिन महेश शर्मा जैसे धार्मिक नेताओं का कहना है कि ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और समझदारी की जरूरत होती है। धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने से न केवल फिल्म के संदेश को नुकसान होता है, बल्कि इससे एक बड़ा सामाजिक विवाद भी उत्पन्न हो सकता है।
धार्मिक संवेदनशीलता और महाकाल मंदिर की परंपराओं का सम्मान
अक्षय कुमार का गाना "महाकाल चलो" अपने संगीत और धुन के कारण लोकप्रिय हो सकता है, लेकिन इसके कुछ दृश्यों ने धार्मिक समुदाय में विवाद को जन्म दिया है। महाकाल मंदिर के पुजारी महेश शर्मा की आपत्ति वाजिब है, और यह साबित करता है कि धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का सम्मान करना कितना जरूरी है। फिल्म इंडस्ट्री को ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर विचार करते हुए अपने काम को पेश करना चाहिए ताकि समाज में किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे।
धार्मिक नगरी उज्जैन की पवित्रता और महाकाल मंदिर की परंपराओं का सम्मान करते हुए, इस तरह के विवादों से बचने की आवश्यकता है। गाने के निर्माता और कलाकारों को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और भविष्य में ऐसे दृश्य दिखाने से बचना चाहिए, जो धार्मिक समुदायों के बीच गलत संदेश फैला सकते हैं।