मध्य प्रदेश सरकार का आरक्षित वर्ग की शिक्षिका को नौकरी से हटाने का फैसला हाईकोर्ट में चुनौतीपूर्ण - श्रीमती आरती मौर्य
मध्य प्रदेश सरकार ने आरक्षित वर्ग की शिक्षिका श्रीमती आरती मौर्य को 21 महीने बाद नौकरी से हटा दिया, क्योंकि उनका आरक्षण प्रमाणपत्र उत्तर प्रदेश का था। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा रही है। पढ़ें पूरी खबर।
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मध्य प्रदेश सरकार के एक विवादास्पद फैसले ने एक बार फिर से आरक्षित वर्ग की महिलाओं के अधिकारों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। श्रीमती आरती मौर्य, जो उत्तर प्रदेश से ब्याह कर मध्य प्रदेश स्थित अपने ससुराल में आई थीं, को शिक्षिका के रूप में नौकरी देने के 21 महीने बाद सिर्फ इसलिए हटा दिया गया क्योंकि उनका आरक्षित वर्ग का प्रमाणपत्र मध्य प्रदेश का नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश का था। इस फैसले को अब हाईकोर्ट में चुनौती दी जा रही है।
केस की पृष्ठभूमि
श्रीमती आरती मौर्य, जो उत्तर प्रदेश के आरक्षित वर्ग से संबंध रखती हैं, ने मध्य प्रदेश में शिक्षिका के रूप में नौकरी शुरू की थी। उन्होंने अपने आरक्षित वर्ग के प्रमाणपत्र के आधार पर यह नौकरी प्राप्त की थी। हालांकि, 21 महीने बाद मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें नौकरी से हटा दिया, यह कहते हुए कि उनका आरक्षण प्रमाणपत्र मध्य प्रदेश का नहीं है।
मध्य प्रदेश सरकार का तर्क
मध्य प्रदेश सरकार का तर्क है कि आरक्षित वर्ग के लाभ केवल उन्हीं लोगों को मिल सकते हैं जिनके पास मध्य प्रदेश का आरक्षण प्रमाणपत्र हो। चूंकि श्रीमती आरती का प्रमाणपत्र उत्तर प्रदेश का था, इसलिए उन्हें नौकरी से हटा दिया गया।
हाईकोर्ट में चुनौती
श्रीमती आरती मौर्य ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है। उनकी ओर से इंदौर की अधिवक्ता श्रीमती दीक्षा अग्रवाल जोकि हाईकोर्ट अधिवक्ता मनोज अग्रवाल की बहु भी है पैरवी करेंगी। श्रीमती अग्रवाल ने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार का यह फैसला पूरी तरह से गैरकानूनी है और इससे दूसरे प्रदेशों की आरक्षित वर्ग की बेटियों को मध्य प्रदेश में विवाह करने से हिचकिचाएंगी।
केस का कानूनी पहलू
श्रीमती अग्रवाल ने कहा कि आरक्षण का लाभ लेने के लिए प्रमाणपत्र का राज्य विशेष से होना आवश्यक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के फैसले से महिलाओं के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और यह संविधान के मूल अधिकारों के विरुद्ध है।
सामाजिक प्रभाव
यह मामला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस तरह के फैसले से महिलाओं को दूसरे राज्यों में विवाह करने से हिचकिचाने का डर हो सकता है। यह महिलाओं के अधिकारों और समानता के सिद्धांतों के खिलाफ है।
श्रीमती आरती मौर्य का यह मामला न केवल उनके व्यक्तिगत अधिकारों के लिए बल्कि सभी आरक्षित वर्ग की महिलाओं के अधिकारों के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है। हाईकोर्ट का फैसला इस मामले में महत्वपूर्ण होगा और यह तय करेगा कि क्या आरक्षण का लाभ राज्य विशेष के प्रमाणपत्र पर निर्भर कर सकता है या नहीं।