जबलपुर: जातिवाद के कारण देविका किशोरी को श्रीमद् भागवत कथा से रोका, महिलाओं को व्यास पीठ का अधिकार क्यों नहीं?

मध्य प्रदेश के जबलपुर में पनागर थाना क्षेत्र के रैपुरा गांव में एक महिला कथावाचक देविका किशोरी को जातिवाद के आधार पर श्रीमद् भागवत कथा करने से रोका गया। इस घटना के बाद समाजिक जागरूकता बढ़ी और पुलिस सुरक्षा में उनकी कथा शुरू हुई।

जबलपुर: जातिवाद के कारण देविका किशोरी को श्रीमद् भागवत कथा से रोका, महिलाओं को व्यास पीठ का अधिकार क्यों नहीं?
देविका किशोरी

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के पनागर थाना क्षेत्र के रैपुरा गांव में एक महिला कथावाचक, देविका किशोरी, को जातिवाद के आधार पर श्रीमद् भागवत कथा करने से रोका गया। इस घटना ने न केवल धार्मिक क्षेत्र में जातिवाद के प्रभाव को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि महिलाओं को धार्मिक कार्यों में हिस्सेदारी देने को लेकर अभी भी समाज के एक हिस्से में संकुचित सोच मौजूद है। देविका किशोरी ने इस भेदभाव का डटकर विरोध किया और अपने उद्देश्य के प्रति अपने संघर्ष को जारी रखा।

घटना का पृष्ठभूमि

यह मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के पनागर थाना क्षेत्र के रैपुरा गांव का है, जहां एक महिला कथावाचक, देविका किशोरी (जो असल में देविका पटेल के नाम से जानी जाती हैं), को जातिगत भेदभाव के आधार पर श्रीमद् भागवत कथा करने से रोक दिया गया। उनका आयोजन 24 फरवरी 2025 से शुरू होने वाला था, लेकिन कुछ स्थानीय ग्रामीणों ने उनकी जाति के आधार पर कथावाचन की अनुमति देने से इंकार कर दिया।

देविका किशोरी का संघर्ष और प्रतिक्रिया

देविका किशोरी ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उनका कहना था कि किसी वेद या पुराण में यह नहीं लिखा गया कि सिर्फ ब्राह्मण ही कथा कर सकते हैं। उनका मानना था कि धर्म और भक्ति की कोई जाति नहीं होती, और यह जो लोग सनातन धर्म की बात करते हैं, वही समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे किसी भी प्रकार के दबाव या डर से डरने वाली नहीं हैं और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए हमेशा खड़ी रहेंगी।

देविका किशोरी ने यह भी बताया कि उन्हें कथावाचन की प्रेरणा प्रसिद्ध कथावाचक जया किशोरी से मिली है। वे बचपन में जया किशोरी को टीवी पर कथा करते हुए देखती थीं और इस दौरान उनके मन में यह विचार आया कि क्यों न वह भी प्रभु के भक्ति प्रचार के काम में अपना योगदान दें। इसके साथ ही, देविका ने यह भी साझा किया कि बचपन में जब वे अपने पिता को रामायण पढ़ते हुए देखती थीं, तो उन्होंने अपने पिता से पूछा था कि रामायण कैसे पढ़ी जाती है, और पिता के मार्गदर्शन के कारण ही आज वे इस मुकाम तक पहुंची हैं।

ओबीसी महासंघ और कुर्मी समाज का विरोध

यह घटना जैसे ही सामने आई, ओबीसी महासंघ और कुर्मी समाज ने इस पर विरोध जताया और पनागर थाने में आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। प्रदेश अध्यक्ष इंद्रकुमार पटेल ने इस घटना की निंदा करते हुए कहा कि यह समाज में व्याप्त जातिवाद का एक उदाहरण है और इसे खत्म करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की घटनाओं से समाज में भेदभाव बढ़ता है और समाज को एकजुट करने के बजाय तोड़ने का काम होता है।

ब्राह्मण मंच का बयान

इस मामले पर संपूर्ण ब्राह्मण मंच के अध्यक्ष राम दुबे ने भी अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से महिलाओं को व्यास पीठ पर बैठकर कथा करने का अधिकार नहीं था, लेकिन वर्तमान समय में कई महिला कथावाचक इस कार्य को बखूबी कर रही हैं। उनका कहना था कि ब्राह्मण समाज जातिवाद और महिला विरोधी टिप्पणियों से खुद को अलग करता है। उनका यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि इस भेदभाव का समर्थन नहीं किया जा सकता और समय के साथ समाज को इस दिशा में सुधार लाने की आवश्यकता है।

पुलिस सुरक्षा में शुरू हुई कथा

इस घटना के बाद पनागर थाना प्रभारी अजय सिंह ने बताया कि पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ने देविका किशोरी को सुरक्षा भी प्रदान की है ताकि उनकी कथा निर्बाध रूप से हो सके। 24 फरवरी 2025 को देविका किशोरी की श्रीमद् भागवत कथा पुलिस सुरक्षा के बीच शुरू हो गई। इस कदम से यह संदेश जाता है कि समाज में किसी भी प्रकार का जातिवाद और भेदभाव स्वीकार नहीं किया जाएगा।

समाज में धार्मिक भेदभाव की समस्या

यह घटना केवल एक व्यक्तिगत विवाद का मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में व्याप्त धार्मिक और जातिगत भेदभाव की एक गंभीर समस्या को उजागर करती है। जब किसी व्यक्ति को केवल उसकी जाति या लिंग के कारण धर्म से जुड़ी गतिविधियों में भाग लेने से रोका जाता है, तो यह न केवल उस व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन होता है, बल्कि यह समाज की सोच को भी पीछे ले जाता है।

आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो मानते हैं कि धर्म और भक्ति का कार्य केवल एक विशेष जाति के लोग ही कर सकते हैं। यही सोच समाज को कमजोर बनाती है और एकता के स्थान पर विभाजन की ओर ले जाती है। इस प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के लिए समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

सामाजिक बदलाव के संकेत

देविका किशोरी के इस संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि समाज में कोई बदलाव लाना है तो हमें जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठानी होगी। उनके जैसे व्यक्ति जो धर्म के प्रचार में लगे हैं, वे समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरणा का काम कर रहे हैं। उनके संघर्ष से यह सिखने को मिलता है कि हमें किसी भी प्रकार के दबाव या भेदभाव से डरने की बजाय अपने उद्देश्य के प्रति ईमानदार रहकर काम करना चाहिए।

इस घटना ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि समाज में हर व्यक्ति को बराबरी का अधिकार है, चाहे वह महिला हो या पुरुष, किसी भी जाति या समुदाय से संबंधित हो। हमें अपने समाज में भेदभाव को समाप्त करने और एक दूसरे का सम्मान करने की दिशा में काम करना होगा।

समाज में बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

जबलपुर के रैपुरा गांव में देविका किशोरी के साथ घटित यह घटना न सिर्फ जातिवाद के खिलाफ एक लड़ाई है, बल्कि यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। इसने यह दिखाया है कि समाज में सुधार लाने के लिए हमें अपनी सोच को बदलने की आवश्यकता है और हमें हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान देना चाहिए। पुलिस की सुरक्षा में अब देविका किशोरी की कथा चल रही है, और यह संदेश दे रही है कि हम जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ खड़े हैं।

समाज में भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है, और देविका किशोरी जैसी महिला कथावाचक समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।