ग्वालियर आरटीओ मामला: सौरभ शर्मा की सुरक्षा को लेकर कोर्ट में सुनवाई, वकील ने उठाए गंभीर सवाल
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में आरटीओ पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा की गिरफ्तारी और सुरक्षा को लेकर उठे सवाल। वकील का दावा – सरकारी संरक्षण के बावजूद जोखिम, चंबल में कस्टोडियल मौतों का इतिहास। जानें भोपाल कोर्ट में याचिका और जब्त संपत्ति के रहस्य।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में पूर्व आरटीओ आरक्षक **सौरभ शर्मा** की गिरफ्तारी और उनकी सुरक्षा को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। उनके वकील राकेश पाराशर ने भोपाल जिला न्यायालय में एक आवेदन दाखिल कर सरकार और प्रशासन पर सौरभ को जानबूझकर असुरक्षित स्थिति में रखने का आरोप लगाया है। इस मामले में कई गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जिनमें चंबल इलाके में कस्टोडियल मौतों का इतिहास, भोपाल के जंगल से जब्त सोने-नकदी का रहस्य, और दुबई व इंदौर में मिली संपत्ति से सौरभ के संबंधों का खंडन शामिल है।
कोर्ट के आदेश के बावजूद सुरक्षा में ढिलाई?
वकील राकेश पाराशर के अनुसार, लोकायुक्त ने कोर्ट के निर्देश पर सौरभ शर्मा को "सरकारी दामाद" का दर्जा देकर सुरक्षा प्रदान करने का आश्वासन दिया था। यह शब्दावली प्रशासनिक संरक्षण की ओर इशारा करती है, जिसके तहत सौरभ को हिरासत के दौरान हर तरह के खतरे से बचाने की गारंटी दी गई थी। हालांकि, वकील का आरोप है कि प्रशासन इस आश्वासन को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रहा है। सौरभ को बिना पर्याप्त सुरक्षा के अदालतों और मेडिकल जांच के लिए ले जाया जा रहा है, जो उनकी जान के लिए खतरनाक हो सकता है।
चंबल का डरावना इतिहास: कस्टोडियल डेथ की घटनाएं
इस मामले को और गंभीर बनाता है चंबल क्षेत्र का वह इतिहास, जहां कस्टोडियल डेथ (हिरासत में मौत) की घटनाएं आम रही हैं। वकील ने उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन अतीक अहमद की हिरासत में हुई हत्या का उदाहरण देते हुए कहा कि सौरभ शर्मा के साथ भी ऐसी ही कोई दुर्घटना हो सकती है। चंबल के इलाके में पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौतों के कई मामले दर्ज हो चुके हैं, जिसके चलते यह मांग और प्रासंगिक हो जाती है कि सौरभ को तत्काल सुरक्षा कवच प्रदान किया जाए।
भोपाल के जंगल से जब्त सोना-नकदी: क्या है कनेक्शन?
इसके समानांतर, भोपाल के एक जंगल से सोने और नकदी की बड़ी मात्रा बरामद होने का मामला भी सुर्खियों में है। वकील पाराशर ने स्पष्ट किया कि इस "ओपन रिकवरी" प्रक्रिया से सौरभ शर्मा का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन जानबूझकर इस मामले को सौरभ से जोड़कर उनकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहा है। कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों के अनुसार, न तो जब्त सोने पर सौरभ का अधिकार है और न ही नकदी के साथ उनका कोई संबंध है।
दुबई और इंदौर में संपत्ति के आरोपों का खंडन
प्रशासन की ओर से यह भी आरोप लगाया गया था कि सौरभ शर्मा के नाम पर दुबई और इंदौर में अवैध संपत्तियां हैं। इस पर वकील ने सफाई देते हुए कहा कि सौरभ के पास न तो दुबई में कोई अचल संपत्ति है और न ही इंदौर में उनका कोई बैंक खाता या जमीन-जायदाद है। उन्होंने इन आरोपों को "मीडिया ट्रायल" और "प्रशासनिक षड्यंत्र" बताया, जिसका उद्देश्य सौरभ के खिलाफ जनमत तैयार करना है।
भोपाल कोर्ट में याचिका: क्या हैं मांगें?
वकील राकेश पाराशर ने भोपाल जिला न्यायालय में जो याचिका दाखिल की है, उसमें मुख्य रूप से तीन मांगें शामिल हैं:
- 1. सौरभ शर्मा को तत्काल **विशेष सुरक्षा बल** प्रदान किया जाए।
- 2. हिरासत के दौरान उनकी मेडिकल जांच और कोर्ट यात्रा के समय सुरक्षा प्रोटोकॉल सख्ती से लागू किया जाए।
- 3. चंबल क्षेत्र में कस्टोडियल डेथ की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए सौरभ के केस की सीबीआई या एनआईए द्वारा जांच की जाए।
न्यायिक हस्तक्षेप की उम्मीद
इस मामले में न्यायालय का फैसला काफी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह सीधे तौर पर हिरासत में रखे गए व्यक्ति के अधिकारों से जुड़ा है। भारतीय कानून के अनुसार, किसी भी अभियुक्त को सुरक्षा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है, चाहे उस पर कितने भी गंभीर आरोप क्यों न हों। वकील का तर्क है कि सौरभ की सुरक्षा न सुनिश्चित करना न केवल उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि न्याय प्रक्रिया पर भी सवाल खड़ा करता है।
जनता और मीडिया की प्रतिक्रिया
इस मामले ने सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया में भी खूब सुर्खियां बटोरी हैं। एक तरफ, कुछ लोग सौरभ शर्मा को भ्रष्टाचार का प्रतीक बता रहे हैं, तो दूसरी ओर, उनके समर्थक प्रशासन पर "फेक एनकाउंटर" की संभावना जता रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला पुलिस-प्रशासनिक सुधार की जरूरत को फिर से उजागर करता है, खासकर चंबल जैसे संवेदनशील इलाकों में।
निष्कर्ष: सुरक्षा और न्याय की लड़ाई
सौरभ शर्मा का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय कानून व्यवस्था की जवाबदेही और पारदर्शिता पर सवाल उठाता है। अदालत का यह फैसला इस बात का संकेत होगा कि क्या हिरासत में लिए गए लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करने में प्रशासन गंभीर है। साथ ही, भोपाल के जंगल से जब्त संपत्ति और दुबई में अवैध संपत्ति के आरोपों की निष्पक्ष जांच भी इस केस की विश्वसनीयता तय करेगी।