मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अवैध जिला बदर आदेश को खारिज किया, सरकार पर 50 हजार रुपये का जुर्माना
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता अंतराम अवासे का जिला बदर आदेश अवैध घोषित किया और सरकार पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने अधिकारियों को राजनैतिक दबाव से बचने की सलाह दी।

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में एक बड़ा न्यायिक मोड़ आया जब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता और जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेता अंतराम अवासे पर लागू किया गया जिला बदर आदेश अवैध घोषित कर दिया। कोर्ट ने इसे गलत तरीके से जारी किए गए आदेशों का हिस्सा माना और आदेश देने वाले अधिकारियों को कड़ी निंदा की। इसके साथ ही सरकार पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसे सरकार जिला कलेक्टर से वसूलने का आदेश जारी कर सकती है।
यह मामला राज्य के प्रशासन द्वारा दिए गए गलत और राजनीतिक दबाव में आए आदेशों को लेकर सामने आया। अक्तूबर 2022 से अप्रैल 2023 तक बुरहानपुर जिले में बड़े पैमाने पर जंगलों की अवैध कटाई को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता अंतराम अवासे ने प्रशासन को सूचित किया था और इसकी निंदा की थी। इसके बाद उन्हें जिला बदर आदेश का सामना करना पड़ा। हालांकि, कोर्ट ने इस आदेश को पूरी तरह से खारिज कर दिया और राज्य के अधिकारियों के आचरण पर कड़ी टिप्पणी की।
जिला बदर आदेश और उसकी बुनियाद
अंतराम अवासे के खिलाफ बुरहानपुर जिला कलेक्टर द्वारा 23 जनवरी 2024 को जारी किया गया जिला बदर आदेश, वास्तव में प्रशासन और अधिकारियों की मिलीभगत के खिलाफ उठाए गए सवालों के परिणामस्वरूप आया। अवासे ने आरोप लगाया था कि बुरहानपुर जिले में जंगलों की अवैध कटाई में प्रशासन की भूमिका है और आदिवासी समुदाय की आवाज़ दबाने की कोशिश की जा रही है।
अंतराम अवासे के समर्थन में 1000 से ज्यादा आदिवासियों ने आंदोलन किया था, जिसका परिणाम था कि उनके खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए गए। इन आरोपों के कोई ठोस प्रमाण नहीं थे, फिर भी जिला कलेक्टर ने उन्हें जिला बदर करने का आदेश दे दिया। इस आदेश के खिलाफ अपील करने पर संभाग आयुक्त इंदौर ने भी वही आदेश कायम रखा। लेकिन अब हाई कोर्ट ने दोनों अधिकारियों के आदेशों को गलत और अवैध ठहराया।
हाई कोर्ट का निर्णय और उस पर टिप्पणियां
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जिला मजिस्ट्रेट और संभाग आयुक्त ने बिना किसी विवेक के यह आदेश जारी किए थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि आदेश देने वाले अधिकारियों ने केवल औपचारिक रूप से आदेश पारित किया और कोई गंभीर जांच नहीं की। कोर्ट ने अंतराम अवासे को प्रताड़ित करने के लिए सरकार पर जुर्माना भी लगाया और कहा कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस जुर्माने की राशि जिला कलेक्टर से वसूल करे।
इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि जिला बदर आदेश का इस्तेमाल अब एक राजनैतिक औजार बन चुका है, जिसे अधिकारियों द्वारा राजनीतिक दबाव के तहत जारी किया जा रहा है। कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि राज्य सरकार के मुख्य सचिव को सभी जिला कलेक्टरों की बैठक बुलाकर उन्हें यह स्पष्ट निर्देश दिए जाएं कि वे किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव में आकर इस तरह के अनुचित आदेश न दें।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अंतराम अवासे के खिलाफ जिन आरोपों को आधार बनाकर जिला बदर किया गया था, उनके कोई ठोस प्रमाण नहीं थे। इन आरोपों में कहा गया था कि वे आदतन अपराधी हैं और उनके कारण क्षेत्र में आतंक का माहौल है। हालांकि, जब अदालत ने सरकार से गवाही के लिए नाम मांगे तो सरकार कोई भी सबूत पेश नहीं कर सकी। कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि केवल एफआईआर दर्ज होने से किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
दूसरी तरफ सरकार और कलेक्टर के बचाव की कोशिश
जब सरकार ने अंतराम अवासे पर आदिवासियों को भड़काने का आरोप लगाया, तो कोर्ट ने राज्य से पूछा कि वह कौन से आदिवासी थे, जिन्हें अंतराम ने भड़काया था। इसके जवाब में सरकार कोई ठोस प्रमाण पेश नहीं कर सकी। इसी तरह, जब अवासे पर जंगलों की कटाई में मदद करने का आरोप लगाया गया, तो जज ने सवाल उठाया कि राज्य के अधिकारी खुद कितना जंगल कटवाते हैं?
कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार और प्रशासन का दायित्व केवल संविधान के प्रति होना चाहिए, न कि राजनीतिक दबाव के प्रति। यह टिप्पणी अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बताता है कि प्रशासन को संवैधानिक मूल्यों और न्याय के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए, न कि राजनीतिक लाभ के लिए गलत आदेश देने चाहिए।
आदिवासी संगठन का रुख और संघर्ष
जागृत आदिवासी दलित संगठन ने हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए इसे न्याय की जीत बताया। संगठन ने कहा कि बुरहानपुर प्रशासन ने अवैध वन कटाई और वन अधिकार कानून के पालन में निष्क्रियता के खिलाफ आवाज़ उठाने के कारण अंतराम अवासे और उनके साथियों को प्रताड़ित किया था। इसके बावजूद, आदिवासी समुदाय ने अपनी लड़ाई जारी रखी और न्याय के लिए संघर्ष किया।
संगठन ने यह भी कहा कि इस निर्णय से आदिवासी समुदाय को प्रेरणा मिलेगी और उनका हौसला और भी बुलंद होगा। संगठन का कहना है कि यह फैसला उनके आंदोलन की शक्ति को और मजबूती देगा, और वे आगे भी अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते रहेंगे।
न्याय और संविधान की ओर एक महत्वपूर्ण कदम
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल अंतराम अवासे के लिए एक न्यायिक जीत है, बल्कि यह प्रशासन और अधिकारियों के लिए एक कड़ा संदेश भी है। यह निर्णय साबित करता है कि राज्य सरकार और प्रशासन को किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव से बाहर आकर न्याय और संविधान के अनुसार काम करना चाहिए। जिला बदर जैसे अत्यधिक कदमों का दुरुपयोग रोकने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जो भविष्य में गलत आदेशों और अनुचित कार्यवाहियों को सीमित करेगा।
इस फैसले ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ केवल आरोपों के आधार पर कोई भी कठोर कदम नहीं उठाया जा सकता, जब तक उसके खिलाफ ठोस प्रमाण न हो। यह फैसला सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिकारों की रक्षा करने वालों के लिए एक प्रेरणा है कि वे न्याय की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते रहें, भले ही वे किस स्थिति में हों।