ग्वालियर अस्पताल के डॉक्टर पर आरोप: झूठा शपथ पत्र से बंगला आवंटन और किराए पर देना, जानें पूरा मामला
ग्वालियर जिला अस्पताल के सीएमएचओ और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सचिन श्रीवास्तव पर झूठे शपथ पत्र के जरिए बंगला आवंटन और उसे किराए पर देने के गंभीर आरोप। जानिए पूरी खबर और कार्रवाई की मांग।

मध्य प्रदेश के ग्वालियर के जिला अस्पताल में पदस्थ सीएमएचओ (Chief Medical and Health Officer) और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सचिन श्रीवास्तव पर गंभीर आरोप लगे हैं। आरोप है कि उन्होंने प्रशासन को झूठा शपथ पत्र देकर एक सरकारी बंगला आवंटित करवाया और बाद में उस बंगले को किराए पर दे दिया। इन आरोपों ने प्रशासन और अस्पताल के अधिकारियों के बीच गंभीर सवाल उठाए हैं, खासकर जब यह आरोप किसी ऐसे व्यक्ति पर लगे हैं, जो बच्चों के इलाज में अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जाना जाता है।
शपथ पत्र में झूठ का खुलासा
सूत्रों के मुताबिक, डॉ. सचिन श्रीवास्तव ने एक शपथ पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि उनके पास नगर निगम सीमा क्षेत्र में कोई मकान या बंगला नहीं है और ना ही उनके किसी रिश्तेदार के पास ऐसा कोई संपत्ति है। लेकिन जांच में यह पता चला कि डॉ. श्रीवास्तव के पास पहले से ही ग्वालियर नगर निगम सीमा में एक आलीशान कोठी मौजूद है। इसके अलावा यह भी सूत्रों से जानकारी मिली कि उनके और भी कई अन्य मकान और बंगले हैं, जो उन्होंने प्रशासन को नहीं बताए।
इतना ही नहीं, डॉ. श्रीवास्तव ने सरकारी बंगला आवंटित होने के बाद उसे किराए पर भी दे दिया, जो सरकारी संपत्ति के दुरुपयोग की श्रेणी में आता है। यह पूरी घटना प्रशासन की लापरवाही को उजागर करती है, जो इतनी बड़ी गलती को नज़रअंदाज कर रही है।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
यह मामला प्रशासन की लापरवाही पर भी सवाल उठाता है। एक ऐसे व्यक्ति को सरकारी बंगला क्यों आवंटित किया गया, जिसके पास पहले से ही संपत्ति मौजूद थी? क्या प्रशासन ने पूरी जांच की थी या यह एक तात्कालिक निर्णय था? प्रशासन का यह कदम नागरिकों में सरकारी अधिकारियों के प्रति विश्वास को कमजोर करता है।
इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे कुछ लोग सरकारी लाभों का गलत इस्तेमाल करते हैं, और कैसे प्रशासन इनकी पारदर्शिता की जांच करने में असफल रहता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी? क्या प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर दोषियों पर कार्रवाई करेगा?
बच्चों के इलाज में पारदर्शिता
डॉ. सचिन श्रीवास्तव शिशु रोग विशेषज्ञ हैं, जो बच्चों के इलाज में निपुण माने जाते हैं। लेकिन अब इस मामले ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या वह बच्चों के इलाज में भी उतनी ही पारदर्शिता रखते होंगे, जितनी उनकी संपत्ति और सरकारी बंगले के आवंटन में नहीं दिखी? क्या ऐसे डॉक्टर अपने पेशे में भी पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता दिखाते हैं?
यहां तक कि इस पूरे मामले ने यह मुद्दा भी उठाया है कि क्या सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों और अधिकारियों के बीच संपत्ति और लाभ के मामले में ऐसी लापरवाही को नजरअंदाज किया जा सकता है? ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि नागरिकों को विश्वास हो कि सरकारी अधिकारियों और डॉक्टरों का काम उनके पेशेवर कर्तव्यों में पारदर्शिता और ईमानदारी से किया जाता है।
बेनामी संपत्तियों का सवाल
सूत्रों का कहना है कि डॉ. सचिन श्रीवास्तव के पास सिर्फ एक कोठी नहीं है, बल्कि उनके नाम पर कई बेनामी संपत्तियां भी हो सकती हैं। यह पूरे मामले को और गंभीर बना देता है। बेनामी संपत्तियां न केवल कानूनी रूप से गलत हैं, बल्कि यह भ्रष्टाचार और घोटाले की ओर इशारा करती हैं। इस प्रकार की संपत्तियों के मामले में सख्त जांच और कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकारी अधिकारी और डॉक्टर भ्रष्टाचार में लिप्त न हों।
सख्त कार्रवाई की आवश्यकता
यह घटना ग्वालियर के प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के लिए एक चेतावनी हो सकती है। डॉ. सचिन श्रीवास्तव के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि यह संदेश जाए कि सरकारी संपत्तियों का दुरुपयोग और झूठे शपथ पत्र देने के मामले में किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। इसके अलावा, बच्चों के इलाज में पारदर्शिता और ईमानदारी के मुद्दे को भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए, ताकि नागरिकों का विश्वास बनाए रखा जा सके।
सख्त कार्रवाई की आवश्यकता
ग्वालियर के जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ. सचिन श्रीवास्तव पर लगे आरोपों ने यह साबित कर दिया है कि कभी-कभी कुछ लोग सरकारी लाभों का गलत इस्तेमाल करते हैं। यह पूरे मामले में प्रशासन की लापरवाही और लापरवाहियों को उजागर करता है। अब यह समय है कि प्रशासन इस मामले में सख्त कदम उठाए और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करे। साथ ही, इस घटना ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या बच्चों के इलाज में पारदर्शिता और ईमानदारी के मुद्दे पर भी इतनी ही गंभीरता से विचार किया जा रहा है?
अब यह जरूरी हो गया है कि इस मामले में पूरी जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में किसी अन्य सरकारी अधिकारी या डॉक्टर को इस प्रकार के झूठे शपथ पत्र देने की हिम्मत न हो।