डी.एस. अहिरे ने छोड़ी काँग्रेस, अजित पवार की राष्ट्रवादी में शामिल
माजी खासदार और विधायक डी.एस. अहिरे ने काँग्रेस को अलविदा कहकर अजित पवार की राष्ट्रवादी काँग्रेस में प्रवेश किया। जानिए उनके इस फैसले के पीछे की वजह और साक्री में उनके योगदान।

- काँग्रेस छोड़ी: डी.एस. अहिरे ने टिकट कटने से नाराज होकर अजित पवार की NCP जॉइन की
- सियासी सफर: खासदार, विधायक; आदिवासी क्षेत्रों में पुल, 42 गाँव बनाए
- विकास का वादा: साक्री में NCP को मजबूत कर विकास करेंगे
धुळे: महाराष्ट्र की सियासत में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। साक्री के माजी विधायक और खासदार डी.एस. अहिरे ने काँग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया है और अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी (NCP) में शामिल हो गए हैं। इस कदम के साथ ही अहिरे ने पश्चिमी आदिवासी पट्टी में विकास का नया दौर शुरू करने का ऐलान किया है। लेकिन आखिर क्या वजह रही कि अहिरे ने काँग्रेस का दामन छोड़कर अजित दादा का साथ चुना? आइए, इसकी पूरी कहानी समझते हैं।
काँग्रेस से क्यों लिया किनारा?
डी.एस. अहिरे ने खुलासा किया कि 2024 के विधानसभा चुनाव में साक्री सीट के लिए काँग्रेस का टिकट उन्हें फाइनल हो चुका था। लेकिन धुळे जिले के बीजेपी के दो बड़े नेताओं ने काँग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को प्रभावित कर उनका टिकट कटवा दिया। इतना ही नहीं, काँग्रेस के मौजूदा सांसद गोवाल पाडवी ने भी उनके नाम की सिफारिश नहीं की। अहिरे ने बताया कि इसके बावजूद उन्होंने 2024 की लोकसभा और विधानसभा चुनाव में काँग्रेस उम्मीदवारों का जमकर प्रचार किया। लेकिन बार-बार उपेक्षा और पार्टी के कुछ नेताओं की ओर से उनके खिलाफ साजिश ने उन्हें काँग्रेस छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
“मैं काँग्रेस का सच्चा सिपाही था, लेकिन कुछ नेताओं ने मेरे खिलाफ काम किया। अब मेरा काँग्रेस में मन नहीं लगता। अजित दादा के साथ मैंने पहले भी काम किया है और उनकी कार्यशैली से प्रभावित हूँ। अब उनके साथ मिलकर आदिवासी इलाकों में विकास की नई गाथा लिखूंगा,” अहिरे ने कहा।
डी.एस. अहिरे का सियासी सफर
डी.एस. अहिरे का राजनीतिक और प्रशासनिक करियर बेहद शानदार रहा है। 1993 से 1997 तक उन्होंने प्रशासनिक सेवा में उपजिल्हाधिकारी और प्रांत अधिकारी के तौर पर काम किया। 1998 में उन्होंने नौकरी छोड़कर काँग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। हालांकि, सरकार गिरने के कारण वह सिर्फ 13 महीने खासदार रहे। इसके बाद उन्होंने साक्री से विधानसभा चुनाव लड़ा और 19,000 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। 2014 से 2019 तक उन्होंने फिर विधायक के तौर पर साक्री का प्रतिनिधित्व किया, जहाँ उन्होंने मंजुला गावित को 3,500 वोटों से हराया था।
इसके अलावा, 2001 से 2003 तक वह नाशिक माढा बोर्ड के चेयरमैन रहे और 2003-04 में राज्य नियोजन मंडल के सदस्य के रूप में काम किया। उनकी पत्नी कुसुमताई अहिरे 2019 से 2023 तक कुडाशी ग्रामपंचायत की सरपंच रहीं, जबकि उनके बेटे धीरज अहिरे ने 2019 से 2025 तक जिला परिषद पर कब्जा जमाया। इस तरह अहिरे परिवार ने पश्चिमी आदिवासी पट्टी में अपनी मजबूत पकड़ बनाई।
आदिवासी इलाकों में किए बड़े काम
डी.एस. अहिरे ने अपने प्रशासनिक अनुभव का इस्तेमाल कर साक्री और आसपास के आदिवासी इलाकों में कई उल्लेखनीय काम किए। उन्होंने पांझरा, कान और जामखेडी नदियों पर कई पुल बनवाए, जिससे गाँवों को आपस में जोड़ा गया। इसके अलावा, बड़े गाँवों को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर 42 स्वतंत्र महसूल गाँव बनाए गए, जिससे प्रशासनिक कामकाज आसान हुआ।
अजित पवार के साथ नया अध्याय
अहिरे ने बताया कि उनकी सियासी शुरुआत शरदचंद्र पवार के मार्गदर्शन में हुई थी। अजित पवार के साथ दस साल तक विधानसभा में काम करने का अनुभव उनके लिए प्रेरणादायक रहा। अब वह अजित दादा की अगुवाई में राष्ट्रवादी काँग्रेस को आदिवासी इलाकों में मजबूत करने की योजना बना रहे हैं। “मेरा मकसद साक्री और पश्चिमी पट्टी में विकास को गति देना है। अजित दादा के नेतृत्व में हम यहाँ बदलाव लाएंगे,” उन्होंने कहा।
साक्री की सियासत में नया मोड़
डी.एस. अहिरे का काँग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी में जाना धुळे और साक्री की सियासत में बड़ा बदलाव ला सकता है। उनकी लोकप्रियता और आदिवासी समुदाय में गहरी पैठ को देखते हुए अजित पवार की पार्टी को इस क्षेत्र में मजबूती मिलने की उम्मीद है। अहिरे का कहना है कि वह अब विकास के नए प्रोजेक्ट्स पर काम करेंगे और क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे।
डी.एस. अहिरे का यह कदम न सिर्फ काँग्रेस के लिए झटका है, बल्कि साक्री की राजनीति में नया मोड़ लाने वाला है। अजित पवार की राष्ट्रवादी काँग्रेस के साथ उनकी नई पारी क्या रंग लाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा।