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वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025: नए प्रावधान और बदलाव आसान भाषा में समझें

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 में क्या नए प्रावधान हैं? गैर-मुस्लिम सदस्य, शिया-सुन्नी-बोहरा-अगाखानी बोर्ड, हाई कोर्ट अपील जैसे बदलावों को आसान भाषा में जानें।

On: July 30, 2025 7:38 PM
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आज हम बात करने जा रहे हैं वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 की, जो 2 अप्रैल 2025 को लोकसभा में पेश हुआ और 288-232 वोटों से पास भी हो गया। ये बिल पिछले कुछ महीनों से सुर्खियों में रहा है और इसे लेकर काफी बहस छिड़ी हुई है। सरकार का कहना है कि ये बदलाव वक्फ बोर्ड को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए हैं, वहीं विपक्ष इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला बता रहा है। तो चलिए, इसे आसान और सरल भाषा में समझते हैं कि आखिर इस बिल में क्या-क्या नए प्रावधान हैं और इसका मतलब क्या है।

वक्फ बोर्ड क्या है?

पहले थोड़ा बेसिक समझ लें। वक्फ बोर्ड एक ऐसा संगठन है जो मुस्लिम समुदाय की ओर से दी गई संपत्तियों को मैनेज करता है। ये संपत्तियां मस्जिद, कब्रिस्तान या चैरिटी के लिए दान की जाती हैं। वक्फ एक्ट 1995 के तहत ये बोर्ड काम करते हैं और देश में करीब 30 वक्फ बोर्ड हैं। इनके पास 9.4 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है, जिसकी कीमत लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये बताई जाती है। लेकिन लंबे वक्त से इन संपत्तियों के मैनेजमेंट में भ्रष्टाचार, अतिक्रमण और पारदर्शिता की कमी की शिकायतें आ रही थीं। इसी को ठीक करने के लिए सरकार ये नया बिल लेकर आई है।

नए प्रावधान: क्या-क्या बदला गया?

अब आते हैं मुख्य बात पर। इस बिल में करीब 40 बदलाव प्रस्तावित किए गए थे, जिनमें से 14 को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने भी इस पर अपनी 655 पेज की रिपोर्ट दी थी। तो चलिए, एक-एक करके इन बदलावों को क्रमबद्ध तरीके से समझते हैं:

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1. गैर-मुस्लिम सदस्यों की एंट्री

सबसे बड़ा बदलाव ये है कि अब वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना जरूरी होगा। पहले ये नियम था कि बोर्ड में ज्यादातर मुस्लिम ही होंगे, लेकिन अब कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होंगे। सरकार का कहना है कि इससे बोर्ड में पारदर्शिता आएगी और सभी वर्गों की हिस्सेदारी होगी। लेकिन विपक्ष का तर्क है कि ये मुस्लिम धार्मिक मामलों में दखलअंदाजी है। जैसे, हिंदू मंदिरों के बोर्ड में क्या गैर-हिंदू होते हैं? तो ये सवाल उठ रहा है।

2. महिलाओं को ज्यादा जगह

इस बिल में महिलाओं के लिए भी अच्छी खबर है। अब बोर्ड में कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं को शामिल करना अनिवार्य होगा। पहले भी दो महिलाओं का प्रावधान था, लेकिन अब इसे सख्ती से लागू करने की बात है। साथ ही, शिया, सुन्नी और मुस्लिम ओबीसी वर्ग से भी कम से कम एक-एक सदस्य होगा। यानी बोर्ड में अब ज्यादा डायवर्सिटी दिखेगी।

3. शिया, सुन्नी, बोहरा और अगाखानी के लिए अलग बोर्ड

एक बड़ा बदलाव ये है कि शिया और सुन्नी के लिए पहले से ही अलग बोर्ड का प्रावधान था, अगर किसी राज्य में शिया वक्फ संपत्तियां या उनकी आय 15% से ज्यादा हो। अब इस नियम को बरकरार रखते हुए बोहरा और अगाखानी समुदायों के लिए भी अलग वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई है। लेकिन इसके लिए शर्त ये है कि उनके पास अपने राज्य में “कार्यशील वक्फ” (functional waqf) होना चाहिए। सरकार का कहना है कि इससे छोटे मुस्लिम समुदायों को अपनी संपत्तियों को मैनेज करने का हक मिलेगा।

4. जिला कलेक्टर को बड़ी जिम्मेदारी

पहले वक्फ संपत्तियों का सर्वे सर्वे कमिश्नर करते थे। अब ये जिम्मा जिला कलेक्टर या उनके द्वारा नामित डिप्टी कलेक्टर को दिया गया है। अगर कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं, इसका फैसला भी कलेक्टर करेंगे। सरकार का कहना है कि इससे सर्वे में पारदर्शिता आएगी और मनमानी कम होगी। लेकिन कुछ लोग इसे वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता छीनने की कोशिश बता रहे हैं।

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5. हाई कोर्ट में अपील का रास्ता

पहले वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होता था और उसकी अपील कहीं नहीं हो सकती थी। अब नए बिल में ये बदलाव किया गया है कि ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ 90 दिनों के अंदर हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है। इससे पुराने फैसलों को चुनौती देने का मौका मिलेगा, खासकर उन मामलों में जहां हिंदू या दूसरे समुदाय अपनी जमीन वापस लेना चाहते हैं। ये प्रावधान काफी अहम माना जा रहा है।

6. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन जरूरी

अब सभी वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन एक सेंट्रल ऑनलाइन पोर्टल पर करना होगा। इसके लिए 6 महीने की छूट दी गई है। यानी हर संपत्ति का डिजिटल रिकॉर्ड होगा, जिससे उसकी जानकारी आसानी से मिल सकेगी। सरकार का कहना है कि इससे अतिक्रमण और गलत इस्तेमाल रुकेगा।

7. ‘वक्फ बाय यूजर’ खत्म

पहले ‘वक्फ बाय यूजर’ का कॉन्सेप्ट था, यानी अगर कोई जमीन लंबे वक्त से मस्जिद या कब्रिस्तान के लिए इस्तेमाल हो रही थी, तो उसे वक्फ मान लिया जाता था। अब इसे खत्म कर दिया गया है। बिना दान के कोई संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी। यानी अब सिर्फ दावा करने से काम नहीं चलेगा, पक्के सबूत चाहिए होंगे।

8. मनमानी पर लगाम

पहले वक्फ बोर्ड के पास धारा 40 के तहत ये पावर थी कि वो किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता था, अगर उसे लगता था कि वो वक्फ की है। अब इस धारा को हटा दिया गया है। यानी बिना सत्यापन के कोई जमीन वक्फ की नहीं मानी जाएगी। इससे तमिलनाडु जैसे मामलों में राहत मिल सकती है, जहां पूरा गांव वक्फ की संपत्ति बता दिया गया था।

9. ऑडिट का नया नियम

अगर कोई वक्फ संस्था सालाना 1 लाख रुपये से ज्यादा कमाती है, तो उसका ऑडिट राज्य सरकार के ऑडिटर से कराना होगा। इससे वक्फ की कमाई और खर्च का हिसाब-किताब साफ रहेगा।

10. बोर्ड की संरचना में बदलाव

पहले बोर्ड में कुछ सदस्य मुस्लिम सांसदों, विधायकों और बार काउंसिल मेंबर में से चुने जाते थे। अब राज्य सरकार इनमें से हर ग्रुप से एक-एक सदस्य को नामित करेगी, और उनका मुस्लिम होना जरूरी नहीं होगा। यानी सरकार का बोर्ड पर कंट्रोल बढ़ेगा।

11. ट्रिब्यूनल का ढांचा बदला

अब वक्फ ट्रिब्यूनल दो सदस्यों का होगा, जिसमें एक को मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र का ज्ञान होना चाहिए। पहले ये ढांचा थोड़ा अलग था, और अब इसे और साफ-सुथरा बनाने की कोशिश की गई है।

ये बदलाव क्यों जरूरी थे?

सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता की कमी थी। कई बार बोर्ड ने मनमाने तरीके से जमीनों पर दावा किया, जिससे विवाद बढ़े। मिसाल के तौर पर, तमिलनाडु के थिरुचेंथुरई गांव में किसानों की जमीन वक्फ की बताई गई, जिससे वो कर्ज तक नहीं चुका पाए। ऐसे मामले रोकने के लिए ये बदलाव लाए गए हैं। साथ ही, मुस्लिम महिलाओं और पिछड़े वर्गों को बोर्ड में हिस्सेदारी देने की मांग भी लंबे वक्त से थी।

विपक्ष का विरोध क्यों?

विपक्ष, खासकर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी, इसे मुस्लिम स्वायत्तता पर हमला बता रहे हैं। उनका कहना है कि गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करना धार्मिक आजादी के खिलाफ है। वो ये भी कहते हैं कि सरकार वक्फ की संपत्तियां छीनना चाहती है। दूसरी ओर, कांग्रेस और RJD इसे धार्मिक मामलों में दखल बता रहे हैं। उनका सवाल है कि क्या सरकार हिंदू ट्रस्ट में ऐसा करेगी?

आम लोगों पर असर

अगर आप आम इंसान हैं, तो ये बिल आपकी जिंदगी को सीधे तौर पर कैसे प्रभावित करेगा? अगर आपकी जमीन पर वक्फ ने गलत दावा किया था, तो अब आपके पास हाई कोर्ट जाने का रास्ता होगा। वहीं, अगर आप मुस्लिम समुदाय से हैं और वक्फ की संपत्तियों से फायदा लेते हैं, तो शायद आपको बोर्ड के कामकाज में सुधार दिखे। लेकिन ये सब लागू होने में वक्त लगेगा।

आगे क्या?

अब ये बिल राज्यसभा में जाएगा। वहां भी बहस होगी और अगर पास हो गया, तो ये कानून बन जाएगा। सरकार का दावा है कि ये संविधान के दायरे में है और किसी के हक पर डाका नहीं डालेगा। लेकिन विपक्ष इसे कोर्ट में चुनौती दे सकता है।

तो दोस्तों, ये थी वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 की पूरी कहानी। आपको क्या लगता है? ये बदलाव सही हैं या गलत? अपनी राय जरूर बताएं!

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