आज के डिजिटल युग में साइबर क्राइम तेजी से बढ़ रहा है, और अपराधी नए-नए तरीकों से लोगों को ठगने में सफल हो रहे हैं। इनमें से एक नया ट्रेंड है “डिजिटल अरेस्ट”, जो विशेष रूप से शिक्षित वर्ग के लोगों को निशाना बना रहा है। इस लेख में हम डिजिटल अरेस्ट की प्रकृति, इसके पीछे के तरीकों, इससे बचाव के उपायों और भारतीय संविधान में इसके संदर्भ में चर्चा करेंगे।
महिला पत्रकार डिजिटल अरेस्ट होने से बाल-बाल बचीं
हाल के दिनों में साइबर क्राइम के नए तरीके तेजी से सामने आ रहे हैं। हाल ही में, एक प्रमुख राष्ट्रीय चैनल की महिला पत्रकार, जो एंटरटेनमेंट बीट पर काम करती हैं, को एक फर्जी कोरियर सर्विस से फोन आया। इस कॉल ने केवल दो घंटे में ही उनकी मानसिक स्थिति को बिगाड़ दिया। फोन करने वाले ने उन्हें डरा दिया और उन्हें विश्वास दिलाया कि उनकी पहचान से जुड़ा कोई गंभीर मामला है।
इस कठिन स्थिति में, महिला पत्रकार ने खुद को संभाला और अपने रिश्तेदारों की मदद से तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। इस दौरान उनके मन में कई गंभीर और चौंकाने वाले सवाल उठे, जिनका उत्तर ढूंढना उनके लिए बहुत मुश्किल था। आप पूरा मामला यूट्यूब पर देख सकते हैं। इसी चैनल के डिजिटल प्लेटफॉर्म के एक अन्य पत्रकार के साथ भी ऐसा ही घटनाक्रम हुआ, लेकिन उनकी समझदारी और सजगता ने उन्हें डिजिटल अरेस्ट की इस साजिश से बचा लिया।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव
मुझे भी कई साल पहले इसी तरह की एक घटना का सामना करना पड़ा। जब डिजिटल युग की शुरुआत हो रही थी और स्मार्टफोन हमारे हाथ में आ रहे थे, तब मुझे एक फोन आया। फोन करने वाली महिला ने खुद को दिल्ली की क्राइम ब्रांच का अधिकारी बताते हुए कहा कि किसी वकील ने मेरे खिलाफ मामला दर्ज करवाया है। उसने मेरा पूरा पता और मेरे क्षेत्र के संबंधित थाने का नाम भी बता दिया।
यह सब सुनकर मैं बहुत डर गया। मैंने पूछा, “अब मुझे क्या करना होगा?” महिला ने कहा कि मैं उस वकील से संपर्क कर सकता हूं जिसने कंप्लेंट दर्ज करवाई है। इस बात से मैं और भी घबरा गया और दो दिन तक घर से बाहर भी नहीं निकला।
फिर मैंने अपने एक परिचित पुलिसकर्मी को यह सब बताया। उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि यदि मेरे खिलाफ कोई मामला दर्ज होता है, तो सबसे पहले वह संबंधित थाने की मदद लेंगे। उन्होंने कहा, “चिंता मत करो, यह सब किसी का मजाक हो सकता है या फिर यह कोई ठग है जो तुमसे पैसे निकालना चाहता है। ऐसे अनजान लोगों का फोन मत उठाओ और अपनी व्यक्तिगत जानकारी न दो।”
उनकी सलाह सुनकर मैंने राहत की सांस ली, और फिर उस कॉल का जवाब नहीं दिया। आजकल ऐसे मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, इसलिए मैंने सोचा कि पाठकों की जानकारी के लिए यह अनुभव साझा करना जरूरी है।
डिजिटल अरेस्ट: एक नई ठगी का तरीका
डिजिटल अरेस्ट एक नया और खतरनाक तरीका है, जिसे साइबर ठगों ने विकसित किया है। इसमें आरोप लगाया जाता है कि किसी के पार्सल या कोरियर में ड्रग्स हैं, या उनके बैंक खाते में धोखाधड़ी से लेन-देन हुआ है, यहां तक कि मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप भी लगाए जाते हैं। ठग अक्सर पुलिस, CBI, ED, कस्टम, इनकम टैक्स या नारकोटिक्स अधिकारियों की यूनिफार्म पहनकर लोगों से वीडियो कॉल करते हैं। वे झूठे आरोप लगाकर पीड़ित को मानसिक रूप से तोड़ने और डराने के लिए हर संभव तरीका अपनाते हैं।
ये ठग खुद को केंद्रीय जांचकर्ता बताकर संपर्क करते हैं और बताते हैं कि व्यक्ति मनी लॉन्ड्रिंग मामले में संदिग्ध है। कई बार तो एक ऑनलाइन कोर्ट की सुनवाई भी आयोजित की जाती है, जिसमें एक व्यक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश का रूप धारण कर पेश होता है। इस दौरान उन्हें बताया जाता है कि जांट के हिस्से के रूप में अपनी सारी रकम एक खाते में जमा कर दें। पुलिस के अनुसार, इस तरह के मामलों में आरोपियों से लगभग 5.25 करोड़ रुपये की जब्ती की गई है, जो भारत में अब तक की सबसे बड़ी बरामदगी मानी जा रही है।
फ्रॉड से बचने के उपाय
भारत में कोई भी सरकारी विभाग वीडियो कॉल के जरिए गिरफ्तारी की धमकी या जुर्माना मांगने का काम नहीं करता। यदि कोई मामला दर्ज हुआ है, तो फोन पर पूछताछ नहीं होती। वीडियो कॉल के जरिए गिरफ्तारी का वॉरंट देने का कोई प्रावधान नहीं है। यदि मामले की गंभीरता है, तो भी कोई सरकारी अधिकारी वीडियो कॉल से रिश्वत नहीं मांग सकता। ऐसे कॉल आने पर ठगों के साथ लंबी बातचीत से बचना चाहिए और तुरंत कॉल डिसकनेक्ट कर देना चाहिए।
आपको अपने फोन, लैपटॉप या अन्य डिवाइस के सॉफ्टवेयर को हमेशा अपडेट रखना चाहिए। किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक करने से बचें। यदि आप साइबर ठगी का शिकार होते हैं, तो स्थानीय पुलिस को 112 पर सूचित करें। आप हेल्पलाइन नंबर 1930 पर भी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं या www.cybercrime.gov.in पर ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं।
इन सावधानियों से आप खुद को और अपने प्रियजनों को साइबर ठगी से सुरक्षित रख सकते हैं।
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