- धुले जिले के सीमावर्ती घाटों पर खुलेआम चल रहा है अवैध शराब, गुटखा और सट्टा-जुआ का कारोबार
- प्रशासन की चुप्पी पर ग्रामीणों का गुस्सा, आदिवासी युवाओं पर बुरा असर
- बंधनघाट और झाकराई बाड़ी में तस्करी रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई की मांग
Illegal activities in Maharashtra: धुले जिले के आदिवासी और पहाड़ी इलाकों में अवैध धंधे इतनी गहराई तक जड़ जमा चुके हैं कि अब ग्रामीण खुलेआम प्रशासन की नाकामी पर सवाल उठाने लगे हैं। महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा से सटे बंधनघाट और झाकराई बाड़ी इलाके इस समय अवैध कारोबारियों का सुरक्षित अड्डा बन चुके हैं।
सीमा से लगे पहाड़ी रास्तों से तस्करी
ये दोनों घाट आदिवासी और घने जंगलों से घिरे हैं। खास बात यह है कि यहां पुलिस का कोई भी ठिकाना या चौकी मौजूद नहीं है। सिर्फ फॉरेस्ट गार्ड तैनात रहते हैं, जिनकी जिम्मेदारी सिर्फ जंगल तक सीमित है। इसी वजह से शराब, गुटखा और अवैध जुए का धंधा बिना किसी रोक-टोक के चल रहा है।
ग्रामीणों का कहना है कि चारपहिया वाहनों से बड़ी मात्रा में अवैध शराब और गुटखा आसानी से महाराष्ट्र में सप्लाई किया जा रहा है। ये माल धुले जिले से नंदुरबार और आगे कई हिस्सों में पहुंचता है। बताया जा रहा है कि एक पूरा सिंडीकेट (Syndicate) इन रास्तों से करोड़ों का धंधा चला रहा है।
सट्टा-जुआ का गढ़ बनते गांव
यहां न सिर्फ तस्करी हो रही है बल्कि सट्टा और जुए के अड्डे भी जोर-शोर से चल रहे हैं। हैरानी की बात है कि इन इलाकों में पुलिस प्रशासन को भनक तक नहीं है। सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन जानबूझकर आंखें मूंदे हुए है या फिर इस अवैध नेटवर्क में कहीं ऊपर तक सांठगांठ है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि हर शाम इन घाटों में जुआ-सट्टे के ठिकाने सजते हैं। आस-पास खेती के अलावा कोई घर नहीं है, इसलिए धंधा चलाने वालों को पकड़ना आसान नहीं है।
आदिवासी युवाओं पर पड़ रहा असर
इन अवैध धंधों का सबसे बुरा असर यहां के आदिवासी युवाओं पर हो रहा है। गुटखा और शराब की आसान उपलब्धता उन्हें लत की ओर धकेल रही है। कई युवा जुए और सट्टे में फंसकर कर्जदार हो गए हैं। ग्रामीणों को डर है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो पूरी एक पीढ़ी बर्बादी की ओर चली जाएगी।
सरकार हमेशा आदिवासी इलाकों के विकास की बात करती है, लेकिन हकीकत यह है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसी बुनियादी सुविधाएं अब भी यहां के लोगों तक नहीं पहुंच पाई हैं।
सिंडीकेट का अड्डा बना साकरी तालुका
नंदुरबार जिले के साकरी तालुका से जुड़े रास्तों पर भी यही हाल है। तस्करों का सिंडीकेट यहां से माल निकालकर गुजरात और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों तक सप्लाई कर रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि लाखों का खेल रोजाना चल रहा है और अधिकारी जानबूझकर अनदेखी कर रहे हैं।
प्रशासन की नाकामी या सांठगांठ?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर पुलिस और प्रशासन इन इलाकों को पूरी तरह नजरअंदाज क्यों कर रहा है? क्या यह सिर्फ नाकामी है या फिर मिलीभगत? अगर सीमावर्ती इलाके में पुलिस की चौकियां होतीं तो शायद हालात इतने बिगड़े ही नहीं होते।
ग्रामीणों की मांग – तुरंत कार्रवाई
ग्रामीण लगातार मांग कर रहे हैं कि सरकार और पुलिस प्रशासन तुरंत कार्रवाई करे। सीमावर्ती घाटों पर सट्टा-जुआ, शराब और गुटखा की तस्करी पर नकेल कसना बेहद जरूरी है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो यह इलाका अपराधियों का गढ़ बन जाएगा और आदिवासी समाज पर इसका घातक असर पड़ेगा।
अब प्रशासन को दिखानी होगी सख्ती
धुले जिले के सीमावर्ती इलाकों में जिस तरह Illegal activities in Maharashtra धड़ल्ले से चल रही हैं, उससे साफ है कि प्रशासन को अब सख्ती दिखानी होगी। अवैध शराब, गुटखा और जुए के सिंडीकेट पर लगाम लगाना जरूरी है, वरना आने वाले समय में इसका खामियाजा पूरे आदिवासी समाज को भुगतना पड़ेगा।