- बुरहानपुर की बेटियां अपने खर्चे पर टूर्नामेंट खेलने मजबूर
- सावित्रीबाई फुले कन्या शाला की प्रिंसिपल पर उठे सवाल
- इंदौर जाने पर अभिभावक देंगे अनुमति या नहीं, बना बड़ा सवाल
मध्य प्रदेश: खेल मैदान में बेटियां अपनी मेहनत और हौसले से जिले का नाम रोशन कर रही हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि उन्हें प्रोत्साहन और सहयोग देने के बजाय उनका ही स्कूल जिम्मेदारी से हाथ खींच लेता है। ताजा मामला सामने आया है सावित्रीबाई फुले कन्या शाला बुरहानपुर का, जहां आठ छात्राओं की वॉलीबॉल टीम ने शाहपुर में शानदार प्रदर्शन कर दो टीमों को हराकर इंदौर जिला स्तरीय प्रतियोगिता में जगह बनाई।
लेकिन, इन बेटियों को यह सफलता अपने ही खर्चे पर हासिल करनी पड़ी। स्कूल प्रबंधन और प्रिंसिपल ने न तो उनके लिए कोई साधन उपलब्ध करवाया और न ही जिम्मेदारी निभाई। बच्चियों को खुद पैसे खर्च कर शाहपुर जाना पड़ा।
टूर्नामेंट में भी नहीं मिली सुविधा
खिलाड़ियों ने बताया कि शाहपुर में आयोजित वॉलीबॉल टूर्नामेंट में भी उन्हें कोई सुविधा नहीं दी गई। नाश्ता, भोजन और पानी तक अपने पैसों से करना पड़ा। जिस उम्र में बच्चों को पूरा सहयोग और मार्गदर्शन मिलना चाहिए, उस उम्र में ये बेटियां बेसिक सुविधाओं के लिए परेशान होती नजर आईं।
यही नहीं, कुछ दिन पहले आयोजित ताइक्वांडो प्रतियोगिता में भी ऐसी ही लापरवाही देखने को मिली थी। वहां भी खिलाड़ियों को भोजन-पानी नहीं मिला और चोटिल होने पर इलाज तक की व्यवस्था नहीं करवाई गई।
सवालों के घेरे में स्कूल प्रबंधन
सावित्रीबाई फुले कन्या शाला बुरहानपुर एक मात्र बालिकाओं का स्कूल है। ऐसे में स्कूल प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि जब कोई टीम स्कूल के नाम पर मैच खेलने जाती है, तो उनके साथ कम से कम एक शिक्षक या जिम्मेदार व्यक्ति मौजूद हो। अगर किसी बच्ची के साथ कोई अनहोनी हो जाती, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेता?
स्कूल जब इन जीतों की वाहवाही लूटता है तो फिर जिम्मेदारी निभाने से पीछे क्यों हटता है? यही सवाल अब अभिभावकों और स्थानीय लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
प्रिंसिपल का पल्ला झाड़ना
जब इस पूरे मामले पर स्कूल की प्रिंसिपल नीना गुप्ता से फोन पर बात की गई तो शुरुआत में उन्होंने ऐसे किसी मामले से इनकार किया। लेकिन जब उन्हें विस्तार से जानकारी दी गई तो उन्होंने कहा – “ठीक है, गलती हुई होगी, मैं पता करती हूं।”
प्रिंसिपल का यह बयान खुद उनकी जिम्मेदारी पर सवाल उठाता है। अगर वे टीचर नहीं भी हैं, तो प्रिंसिपल होने के नाते बच्चों की सुरक्षा और सुविधाओं का ध्यान रखना उनकी ही प्राथमिक जिम्मेदारी है।
पहले भी विवादों में रहा है स्कूल
यह पहला मौका नहीं है जब सावित्रीबाई फुले कन्या शाला विवादों में आई हो। पहले भी प्रबंधन की लापरवाही और मनमानी सामने आती रही है। इस बार मामला खिलाड़ियों की सुरक्षा और सुविधाओं का है, जिसे नजरअंदाज करना किसी भी हाल में उचित नहीं कहा जा सकता।
क्या अब इंदौर जाएंगी बेटियां?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अभिभावक अपनी बच्चियों को इंदौर जिला स्तरीय टूर्नामेंट में भेजने की अनुमति देंगे?
बच्चियां तो खेलने और जीतने को तैयार हैं, लेकिन जब स्कूल ही अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटे तो माता-पिता अपने बच्चों को जोखिम में क्यों डालें?
फिलहाल प्रिंसिपल नीना गुप्ता मामले की जांच कराने की बात कह रही हैं, लेकिन यह देखना होगा कि जांच का नतीजा क्या आता है। हकीकत यही है कि स्कूल की लापरवाही के बावजूद बेटियां जीत रही हैं और जिले का नाम रोशन कर रही हैं।