- High Court ने Mahakal Temple Garbh Griha में प्रवेश का अधिकार कलेक्टर को सौंपा
- आम श्रद्धालु अब भी बैरिकेड से ही महाकालेश्वर के दर्शन करेंगे, Garbh Griha में एंट्री नहीं मिलेगी
- नेताओं और उद्योगपतियों के गर्भगृह प्रवेश पर सवाल, नियम टूटे तो भी प्रशासन खामोश
मध्य प्रदेश के उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद आखिरकार इंदौर हाई कोर्ट तक पहुंचा। यहां सवाल यही था कि Mahakal Temple Garbh Griha में आखिर किसे प्रवेश मिलना चाहिए और किसे नहीं। आम श्रद्धालु घंटों लाइन में लगने के बाद भी सिर्फ बैरिकेड से बाबा महाकाल के दर्शन करते हैं, जबकि रसूखदार नेता, उद्योगपति और वीआईपी लोग गर्भगृह तक पहुंच जाते हैं। इसी भेदभाव को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी।
याचिका का मुद्दा: आम श्रद्धालु और वीआईपी में फर्क क्यों?
18 अगस्त को अभिभाषक दर्पण अवस्थि ने इंदौर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। उनका तर्क था कि जब नेताओं, अभिनेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों को गर्भगृह में प्रवेश मिलता है तो आम श्रद्धालुओं को यह हक क्यों नहीं दिया जाता। उन्होंने कोर्ट से मांग की कि सभी को बराबरी से बाबा महाकाल के चरणों तक पहुंचने का अधिकार मिलना चाहिए।
हाई कोर्ट का फैसला
मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने साफ कहा कि महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश से जुड़े फैसले का अधिकार उज्जैन कलेक्टर को सौंपा गया है। यानी अब यह कलेक्टर पर निर्भर करेगा कि गर्भगृह में किसे प्रवेश दिया जाए और किसे नहीं। कोर्ट ने मंदिर की पुरानी व्यवस्था को बरकरार रखते हुए यही तय किया कि आम श्रद्धालु अभी भी गर्भगृह तक नहीं जा पाएंगे और उन्हें बैरिकेड से ही दर्शन करना होगा।
4 जुलाई 2023 से लगी रोक
दरअसल, महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में आम श्रद्धालुओं के प्रवेश पर 4 जुलाई 2023 से ही रोक लगी हुई है। लेकिन इसके बावजूद कई बार वीआईपी और रसूखदार लोग नियम तोड़कर गर्भगृह तक पहुंचते रहे।
नियम टूटे, प्रशासन खामोश
खास बात यह है कि कई बार विधायक, बड़े नेता और उद्योगपति गर्भगृह में जाते नजर आए। उदाहरण के लिए, विधायक गोलू शुक्ला के बेटे रुद्राक्ष शुक्ला, भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय, विधायक रमेश मेंदोला और अनिल जैन कालूहेड़ा, एडिशनल एसपी जयंत राठौर, उद्योगपति नीलकंठ कल्याणी तक गर्भगृह में पहुंचे। यहां तक कि कांवड़ यात्रा के दौरान भी कई बार लोग जबरन गर्भगृह में प्रवेश कर गए। इन घटनाओं पर कार्रवाई करने के बजाय प्रशासन ने खामोशी ही साध ली।
श्रद्धालुओं की निराशा
आम श्रद्धालुओं का कहना है कि वे घंटों लाइन में लगने के बाद सिर्फ दूर से बाबा के दर्शन कर पाते हैं। वहीं रसूखदार लोग आसानी से गर्भगृह तक पहुंच जाते हैं। इससे भक्तों में असमानता और निराशा का भाव पैदा होता है। हाई कोर्ट के इस फैसले से अब साफ हो गया है कि फिलहाल आम श्रद्धालुओं को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलेगी।
कलेक्टर के हाथ में जिम्मेदारी
अब सारी जिम्मेदारी उज्जैन कलेक्टर पर है। वही तय करेंगे कि गर्भगृह में किसे अनुमति दी जाए। हालांकि, इस फैसले के बाद भी यह बहस जारी रहेगी कि क्या धर्मस्थलों पर आम और खास के लिए अलग-अलग नियम होना सही है।
आम श्रद्धालुओं की एंट्री पर विराम
हाई कोर्ट का यह फैसला एक तरह से प्रशासन के हाथ में पूरी ताकत सौंप देता है। Mahakal Temple Garbh Griha में आम श्रद्धालुओं की एंट्री अभी भी रोक दी गई है और उन्हें केवल बैरिकेड से ही दर्शन करने होंगे। अब यह देखना होगा कि उज्जैन कलेक्टर भविष्य में इस फैसले को लेकर क्या दिशा तय करते हैं।