शारदीय नवरात्र हिंदू धर्म में शक्ति उपासकों के लिए विशेष महत्व रखता है इस वर्ष शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर से प्रारंभ हो रही है मान्यताओं की अगर बात की जाए तो अति प्राचीन काल से शारदीय नवरात्र में माता के विभिन्न स्वरूपों का पूजन और आराधना का महत्व बताया गया है और दश महाविद्या की भी आराधना करने का तंत्र शास्त्र में उल्लेख प्राप्त होता है रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान श्री राम ने भी शारदीय नवरात्र में माता के विभिन्न स्वरूपों की आराधना की जिसके फल स्वरुप उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की थी वही भगवान श्री कृष्ण ने के परामर्श पर पांडवों ने भी शारदीय नवरात्र के दौरान शक्ति के स्वरूपों की आराधना की जिसके फल स्वरुप पांडवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त की
शारदीय नवरात्रि के दौरान माता के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है
शारदीय नवरात्रि के दौरान माता के जो स्वरूपों की आराधना करने का विशेष महत्व होता है जीवन में आर्थिक संकट, परेशानियों को दूर करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विधान भी मिलता है वही दुर्गा सप्तशती के श्लोक के आगे और पीछे संपूठ लगाकर पाठ नौ दिनों तक करने पर दशांत हवन, तर्पण, मार्जन और अंत में बलिदान करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होकर वह माता के आशीष को प्राप्त करता है सर्वप्रथम पूजा घर में लाल कपड़ा बिछाकर माता के फोटो या फिर मूर्ति को विधि विधान से पूजा कर अखंड दीपक जलाना चाहिए
प्रथम दिन माता शैलपुत्री की आराधना की जाती है
पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा का विधान मिलता है माता वृषभ के वहां पर विराजमान है और माता के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प धारण किया है जिसका मन में विचार कर माता का ध्यान करना चाहिए
मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है
माता ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की और इस घोर तपस्या के कारण ही माता को ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है कहते हैं कि माता की आराधना करने से साधक को सर्व सिद्धियां प्राप्त होती हैं नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की उपासना करने का विधान है लेकिन साधक को चाहिए कि जीवन में कठिन समय में भी अपने मन को विचलित नहीं होने देना चाहिए तभी माता की पूर्ण कृपा प्राप्त की जा सकती है
मंत्र
दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला-कमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की आराधना की जाती है
माता चंद्रघंटा के विग्रह को स्थापित कर विधि विधान के साथ सच्चे मन और पवित्र होकर पूजन और आराधना करनी चाहिए जिसके चलते साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है और माता की कृपा से साधक की सारी कठिनाइयां दूर होकर साधक को एक दिव्य अनुभव होता है जिसमें अलौकिक वस्तुओं के दर्शन, दिव्या सुगंधियों का अनुभव होकर कई तरह की ध्वनियां सुनाई देती है माता के माथे पर घंटे के समान अर्धचंद्र सुशोभित है इसीलिए माता को चंद्रघंटा नाम से जाना जाता है
मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
चौथे दिन माता कुष्मांडा की आराधना की जाती है
अपनी मंद और हल्की मुस्कान के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने से माता को कुष्मांडा नाम से जाना जाता है जब चारों तरफ सृष्टि नहीं थी और अंधकार ही अंधकार फैला हुआ था तब माता ने ब्रह्मांड की रचना की और इसीलिए माता को सृष्टि की आदिस्वरूपा आदिशक्ति कहा जाता है नवरात्र के चौथे दिन पवित्र मन से विधि विधान के साथ माता की पूजा आराधना करनी चाहिए माता बहुत ही अल्प सेवा में ही प्रसन्न हो जाती है और साधक के रोग और शोकों का नाश कर उसे आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, और बल प्रदान करती है
मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे॥
पांचवे दिन स्कंद माता की आराधना की जाती है
स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण साधक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है मन को एकाग्र कर पवित्र मन से जो भी साधक माता की आराधना करता है उसे भवसागर को पार करने में कठिनाई नहीं होती माता की पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ हो जाता है
मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
छठवें दिन माता कात्यायनी की आराधना की जाती है
कात्य गोत्र के विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने पुत्री प्राप्ति के लिए भगवती पराम्बा की कठिन तपस्या की थी जिसके फल स्वरुप माता ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया इसीलिए माता को कात्यायनी कहा जाता है माता की भक्ति भाव और श्रद्धा के साथ आराधना करने से माता की कृपा से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती हैं और साधक के रोग, शोक, सभी प्रकार के भय नष्ट हो जाते हैं और जन्म जन्मों के पाप नष्ट होकर साधक माता की कृपा से परम पद को प्राप्त कर लेता है
मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥
सातवें दिन माता कालरात्रि की आराधना की जाती है
जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह कल है और इनका रूप भी अत्यंत भयानक है जिनके बाल बिखरे हुए हैं गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला से सुशोभित है अंधकारमय स्थितियों का नाश करने वाली यह काल से भी रक्षा करने वाली है इसीलिए माता की सातवीं शक्ति को कालरात्रि कहा जाता है इनकी आराधना से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के द्वार खुल जाते हैं और उनके नाम मात्र से ब्रह्मांड की सारी आसुरी शक्तियां दूर भागने लगती है माता की भक्ति भाव से और श्रद्धा के साथ की गई आराधना से माता की कृपा प्राप्त होकर साधक हर तरह के भय से मुक्त होकर निर्भय हो जाता है
मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
आठवें दिन माता महागौरी की आराधना की जाती है
भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने कठोर तपस्या की जिसके चलते उनका स्वरूप काला पड़ गया और फिर माता की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता के शरीर को पवित्र गंगाजल से धोकर फिर से कांतिमय में बना दिया माता का स्वरूप फिर से गौर वर्ण हो गया इसीलिए माता को महागौरी के नाम से जाना जाता है माता की भक्ति भाव से की गई आराधना से साधक को अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती है कहते हैं कि जो भी सुहागन स्त्री पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से माता की आराधना करती है तो माता स्वयं उसके सुहाग की रक्षा करती है
एक कथा के अनुसार भूखा शेर भोजन की तलाश में विचरण करते हुए वहां पहुंच गया जहां माता घोर तपस्या कर रही थी माता को देख शेर की भूख और बढ़ गई लेकिन शेर ने माता के तपस्या पूर्ण होकर उठने तक वहीं बैठकर इंतजार किया इन सब के बीच शेर भूख के मारे और कमजोर हो गया और जब माता अपनी तपस्या कर उठी तो देखा की शेर भी उनके तपस्या पूर्ण होने के इंतजार में वहां बैठा है और वह बहुत कमजोर हो गया है जिस पर करुणामय आई माता को शेर पर दया आ गई और उन्होंने उसे अपना वाहन बना लिया क्योंकि माता की तपस्या के पूर्ण होने के इंतजार में शेर ने भी तब किया जिसका लाभ उसे माता ने अपना वाहन बना कर दिया
मंत्र
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव-प्रमोद-दा॥
नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है
इस दिन शास्त्रीय विधि विधान के साथ माता सिद्धिदात्री की सच्चे मन और भक्ति भाव से आराधना करने से सभी देवियों की आराधना का फल प्राप्त होता है और सभी देविया भी भक्तों पर प्रसन्न होकर उसे आशीष प्रदान करती है माता सिद्धिदात्री साधक को सभी प्रकार की आठ सिद्धियां प्रदान करती है मान्यता है कि भगवान शिव ने भी माता सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों को प्राप्त किया है जिसके चलते उनका आधा शरीर देवी का हुआ और वह अर्धनारीश्वर कहलाए मान्यता है कि सच्चे मन से भक्ति भाव के साथ माता सिद्धिदात्री की शास्त्रीय विधि विधान से आराधना करने पर भक्तों को माता सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती है और वह साधक की अलौकिक और सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति करती है
मंत्र
सिद्धगन्धर्व-यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
इसी तरह से आप भी आने वाली शारदीय नवरात्र में भक्ति भाव के साथ माता के 9 स्वरूपों का पूजन और आराधना कर सकते हैं जिससे व्यक्ति के सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होकर आर्थिक परेशानियों से मुक्ति पाकर सुख, समृद्धि, धन, यश वैभव को प्राप्त कर सकते हैं
आने वाले समय में हम दश महाविद्याओं पर भी विशेष आर्टिकल का प्रकाशन पाठकों के ज्ञान और जानकारी के लिए करने जा रहे हैं जिसमें अगर आपको किसी विशेष प्रकार की जानकारी चाहिए हो तो हमें अवश्य कमेंट बॉक्स में बताएं
Disclaimer
यह आलेख पाठकों के जानकारी मात्र और सूचनार्थ के लिए प्रकाशित किया गया है किसी भी प्रकार की साधना या पूजा विधान के लिए आप किसी विद्वान पंडित के द्वारा या फिर अपने गुरु के मार्गदर्शन में ही करें
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