1998 में मारे गए दो काले हिरणों का मामला एक बार फिर सलमान खान के लिए चर्चा का विषय बन गया है। हाल ही में एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या और सलमान को मिल रही धमकियों ने इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद को फिर से उजागर किया है। इस मामले में, सलमान खान पर आरोप है कि उन्होंने जोधपुर के पास ‘हम साथ साथ हैं’ फिल्म की शूटिंग के दौरान काले हिरणों का शिकार किया।
इस घटना ने बिश्नोई समुदाय में तीव्र आक्रोश फैलाया, क्योंकि वे काले हिरणों की पूजा करते हैं। इसके बाद, सलमान के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। इस समय गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई ने सलमान से बदला लेने की कसम खाई। यह सवाल उठता है कि क्या काले हिरणों की हत्या लॉरेंस की दुश्मनी का कारण है या यह उसकी छवि निर्माण का एक प्रयास है। लेकिन एक बात स्पष्ट है: बिश्नोई समुदाय का काले हिरणों के साथ गहरा संबंध है, जो 550 साल पुराना है।
बिश्नोई समाज की आस्था और संरक्षण
बिश्नोई समाज की स्थापना गुरु जम्भेश्वर ने 15वीं शताब्दी में की थी, जो अपने 29 सिद्धांतों के लिए प्रसिद्ध है। इनमें वन्यजीवों और वनस्पतियों की सुरक्षा पर जोर दिया गया है। बिश्नोई समुदाय काले हिरण की पूजा करता है, जिसे गुरु जम्भेश्वर का पुनर्जन्म माना जाता है। समुदाय के सदस्य यह मानते हैं कि वे अपने जीवन में जो भी करें, वह इस विश्वास के तहत होना चाहिए।
समुदाय का यह आध्यात्मिक रिश्ता इतना मजबूत है कि वे जानवरों की रक्षा के लिए अपनी जान तक जोखिम में डालने को तैयार हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान के अनिल बिश्नोई ने काले हिरणों की रक्षा के लिए शिकारी से भी सामना किया है।
1730 में, खेजड़ली गांव में पेड़ों की रक्षा के दौरान 362 बिश्नोई मारे गए थे, जब उन्होंने अपने गुरु के आदर्शों का पालन करते हुए पेड़ों के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। यह घटना चिपको आंदोलन का अग्रदूत मानी जाती है।
काले हिरणों के प्रति बिश्नोईयों का गहरा प्रेम
बिश्नोई और काले हिरणों का रिश्ता आध्यात्मिकता से आगे बढ़कर सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संबंध में बंधा हुआ है। बिश्नोई लोग काले हिरणों को अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। काले हिरण और चिंकारा थार के शुष्क इलाकों में मानव बस्तियों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
बिश्नोई महिलाएं अक्सर काले हिरणों को स्तनपान कराती हैं और उन्हें अपने बच्चों की तरह पालती हैं। इस प्रकार, बिश्नोई समुदाय की यह सांस्कृतिक पहचान उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है।
1998 से चल रही यह कानूनी लड़ाई बिश्नोई समाज के आदर्शों और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है। हालांकि, लॉरेंस बिश्नोई ने सलमान खान की हत्या की धमकी दी है, लेकिन यह समुदाय अब भी न्याय के लिए प्रयासरत है।
काले हिरणों के प्रति बिश्नोई समाज की श्रद्धा और संरक्षण का एक लंबा और गहरा इतिहास है। 1998 में हुए एक विवादास्पद मामले ने इस संबंध को और भी उजागर किया। उस साल, अभिनेता सलमान खान पर आरोप लगा था कि उन्होंने जोधपुर के पास अपनी फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ की शूटिंग के दौरान दो काले हिरणों का शिकार किया। यह घटना बिश्नोई समुदाय के लिए बहुत ही संवेदनशील विषय बन गई, क्योंकि वे इन जानवरों को अपनी आस्था का प्रतीक मानते हैं।
इस मामले ने न केवल बिश्नोई समुदाय के रोष को जन्म दिया, बल्कि लॉरेंस बिश्नोई नामक एक गैंगस्टर की दुश्मनी को भी उजागर किया, जिसने सलमान खान से बदला लेने की कसम खाई। इस संदर्भ में यह समझना आवश्यक है कि बिश्नोई समुदाय का काले हिरणों के साथ क्या संबंध है और यह क्यों इतना महत्वपूर्ण है।
बिश्नोई समुदाय का इतिहास और दर्शन
बिश्नोई समुदाय की स्थापना गुरु जम्भेश्वर ने 15वीं शताब्दी में की थी। इस समुदाय के सिद्धांतों का आधार प्रकृति और जीवों के प्रति सम्मान है। गुरु जम्भेश्वर ने अपने अनुयायियों को 29 सिद्धांत दिए, जिनमें से एक प्रमुख सिद्धांत वन्यजीवों और वनस्पतियों की सुरक्षा पर जोर देता है।
बिश्नोई समुदाय के लिए काले हिरण केवल एक जीव नहीं हैं, बल्कि उनके आध्यात्मिक गुरु का प्रतीक हैं। बिश्नोई मानते हैं कि उनके गुरु का पुनर्जन्म काले हिरण के रूप में हुआ था, इसलिए वे इन जानवरों को अपने धार्मिक कर्तव्यों के रूप में देखते हैं।
काले हिरणों की पूजा: एक आस्था का प्रतीक
बिश्नोई समुदाय के सदस्य राम स्वरूप का कहना है कि बिश्नोई कोई धर्म नहीं है, बल्कि यह एक जीवन जीने की पद्धति है जो गुरु जम्भेश्वर के सिद्धांतों पर आधारित है। उन्होंने बताया, “हम जानवरों की रक्षा के लिए अपनी जान तक देने को तैयार हैं। हमारी महिलाएं abandoned काले हिरणों को अपने बच्चों की तरह पालती हैं।”
इस दृष्टिकोण से, काले हिरणों की रक्षा करना बिश्नोईयों के लिए एक आस्था का विषय है। उनके लिए यह सिर्फ एक जानवर नहीं है, बल्कि एक दिव्य अस्तित्व है जिसे उनकी पूजा की जानी चाहिए। यह विश्वास बिश्नोई लोककथाओं में भी परिलक्षित होता है, जिसमें कहा जाता है कि गुरु जम्भेश्वर ने अपने अनुयायियों को काले हिरणों को आदर देने का निर्देश दिया था।
बिश्नोईयों का बलिदान: पेड़ों और वन्यजीवों की रक्षा
बिश्नोई समुदाय ने अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए जान की बाजी लगाने में कभी पीछे नहीं हटे। 1730 में, जोधपुर के खेजड़ली गांव में पेड़ों की रक्षा के दौरान 362 बिश्नोई मारे गए। यह नरसंहार तब हुआ जब जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने अपने महल के निर्माण के लिए पेड़ काटने का आदेश दिया।
अमृता देवी नामक एक साहसी महिला ने अपने समुदाय के सदस्यों के साथ मिलकर पेड़ों की रक्षा के लिए आत्म बलिदान किया। यह घटना चिपको आंदोलन की नींव रखने वाली एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
काले हिरणों और बिश्नोईयों का गहरा संबंध
बिश्नोई और काले हिरणों का संबंध केवल आध्यात्मिक श्रद्धा तक सीमित नहीं है। यह एक गहरा सांस्कृतिक और पर्यावरणीय रिश्ता है। सदियों से, बिश्नोई समुदाय इन जानवरों के साथ सद्भाव में जीता आया है।
काले हिरण और चिंकारा थार के शुष्क भागों में मानव बस्तियों का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। बिश्नोई लोग सूर्यास्त के समय इन जानवरों को खिलाने के लिए विशेष इंतजार करते हैं। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो इस समुदाय की प्रकृति के प्रति गहरी संवेदनशीलता को दर्शाता है।
बिश्नोई महिलाओं का योगदान
बिश्नोई महिलाएं काले हिरणों की देखभाल में विशेष भूमिका निभाती हैं। वे अक्सर उन हिरणों को स्तनपान कराती हैं जो अपने झुंड से अलग हो जाते हैं। इस तरह, हिरणों की देखभाल करना उनके जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है।
यह पारंपरिक दृष्टिकोण इस समुदाय की सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा है। बिश्नोई महिलाओं का यह कार्य केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि उनके सामुदायिक जीवन का एक महत्वपूर्ण तत्व है।
कानूनी संघर्ष: न्याय की तलाश
1998 से जारी यह कानूनी लड़ाई बिश्नोई समाज के दृढ़ संकल्प को दर्शाती है। भले ही कई कानूनी बाधाएं आई हों, लेकिन समुदाय ने सलमान खान के खिलाफ न्याय के लिए संघर्ष जारी रखा है।
लॉरेंस बिश्नोई, जो अब एक गैंगस्टर के रूप में पहचाने जाते हैं, ने इस मामले को अपने व्यक्तिगत प्रतिशोध से जोड़ा है। हालांकि, बिश्नोई समाज ने इस मुद्दे को न्याय के रूप में देखने का प्रयास किया है।
यह 550 साल पुराना रिश्ता आज भी जीवित है
बिश्नोई समाज का काले हिरणों के प्रति प्रेम और सम्मान केवल एक पारंपरिक मान्यता नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह 550 साल पुराना रिश्ता आज भी जीवित है और बिश्नोई समुदाय के लिए एक प्रेरणा स्रोत है।
काले हिरणों की रक्षा के लिए यह समुदाय न केवल अपने सिद्धांतों का पालन कर रहा है, बल्कि यह हमारे समाज को भी एक महत्वपूर्ण संदेश दे रहा है: प्रकृति और जीवों का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।
Recent Comments