- जगदीश पाटिल ने लागू किया U-आकार की व्यवस्था
- सभी बच्चों को समान अवसर और शिक्षक का ध्यान
- प्रभारी मंत्री ने सम्मानित किया और शिक्षा में प्रेरणा
क्या आपने कभी सोचा है कि क्लासरूम में बैठने का तरीका भी बच्चों की पढ़ाई पर गहरा असर डाल सकता है? जी हाँ, मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में एक ऐसा ही अनूठा प्रयोग किया गया है, जिसने शिक्षा के क्षेत्र में एक नई उम्मीद जगाई है. यहाँ के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को पारंपरिक बेंच-डेस्क के बजाय U-आकार की बैठने की व्यवस्था (U-Shaped Seating Arrangement) में पढ़ाया जा रहा है, और इसके नतीजे वाकई चौंकाने वाले हैं.
यह कहानी है शासकीय हाई स्कूल डोंगरगांव के प्रभारी प्राचार्य जगदीश पाटिल की. उन्होंने सिर्फ एक फिल्म से प्रेरणा लेकर अपने स्कूल में ऐसा बदलाव किया, जिसने न सिर्फ बच्चों को समान अवसर दिए बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाया.
एक फिल्म जिसने बदली सोच
इस अनोखे प्रयोग की शुरुआत एक मलयालम फिल्म, ‘स्थानांर्थी श्री कुट्टन’ से हुई. यह फिल्म दो बच्चों की कहानी है, जो पढ़ाई में कमजोर होने के कारण हमेशा क्लास में पीछे बैठते थे. पीछे बैठने की वजह से वे अक्सर शिक्षकों की नजर से दूर रहते थे, और इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ता था. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक बच्चा, श्री कुट्टन, इसी समस्या को दूर करने के लिए क्लास में एक चुनाव लड़ता है और सभी के लिए U-आकार की बैठने की व्यवस्था लागू करता है. इस बदलाव से सभी बच्चों को समान रूप से ब्लैकबोर्ड दिखाई देने लगता है और शिक्षक भी हर बच्चे पर आसानी से ध्यान दे पाते हैं.
जगदीश पाटिल ने जब इस फिल्म के बारे में पढ़ा, तो वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत यूट्यूब पर इसे खोजा और पूरी फिल्म देखी. फिल्म देखने के बाद उन्हें यकीन हो गया कि यह तरीका उनके स्कूल के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है.

U-आकार की व्यवस्था क्यों है इतनी खास?
प्राचार्य जगदीश पाटिल बताते हैं कि पारंपरिक क्लासरूम में अक्सर बच्चे बेंच पर लाइन से बैठते हैं. इस व्यवस्था में कुछ बच्चों को आगे बैठने का मौका मिलता है, जबकि कुछ बच्चे हमेशा पीछे ही रह जाते हैं. पीछे बैठने वाले बच्चे अक्सर सोचते हैं कि ‘काश हमें भी आगे बैठने का मौका मिलता.’ वहीं, कुछ कमजोर या शर्मीले बच्चे जानबूझकर पीछे बैठते हैं ताकि शिक्षक उन पर ज्यादा ध्यान न दें.
लेकिन U-आकार की व्यवस्था में ऐसा नहीं होता. इस व्यवस्था में सभी बच्चे एक बड़े ‘U’ के आकार में बैठते हैं. इसके कई फायदे हैं:
- समान अवसर: हर बच्चे को समान रूप से ब्लैकबोर्ड और शिक्षक दिखाई देते हैं. कोई भी बच्चा खुद को ‘पीछे’ बैठा हुआ महसूस नहीं करता.
- शिक्षकों की नजर: शिक्षक हर बच्चे पर आसानी से नजर रख पाते हैं. वे देख सकते हैं कि कौन सा बच्चा ध्यान दे रहा है और किसे मदद की जरूरत है.
- आत्मविश्वास में वृद्धि: जब हर बच्चे पर शिक्षक का ध्यान जाता है, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है. वे सवाल पूछने और जवाब देने में झिझकते नहीं हैं.
- समस्याओं का समाधान: छोटे कद के बच्चों को अक्सर पीछे से ब्लैकबोर्ड देखने में परेशानी होती है. इस व्यवस्था से यह समस्या पूरी तरह खत्म हो जाती है.
जगदीश पाटिल का कहना है कि इस व्यवस्था से छात्रों के समग्र विकास में मदद मिलती है और आने वाले समय में स्कूल के रिजल्ट में भी सुधार की पूरी संभावना है.

एक स्कूल से हुई शुरुआत, अब फैल रहा है नवाचार
सबसे पहले, जगदीश पाटिल ने इस व्यवस्था को कक्षा 10वीं के विद्यार्थियों के लिए लागू किया. जब कक्षा 9वीं के बच्चों ने इसे देखा, तो उन्होंने भी अपने सर से इसी तरह की व्यवस्था की मांग की. बच्चों के उत्साह को देखते हुए, उन्होंने सभी कक्षाओं में इस व्यवस्था को लागू कर दिया. आज, शासकीय हाई स्कूल डोंगरगांव के 90 विद्यार्थी इस अनोखी व्यवस्था का लाभ उठा रहे हैं.
यह नवाचार इतना सफल रहा कि जिले के अन्य स्कूलों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया है. प्राचार्य पाटिल के इस उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें 15 अगस्त को मध्य प्रदेश के जल संसाधन और बुरहानपुर जिले के प्रभारी मंत्री तुलसीराम सिलावट द्वारा सम्मानित भी किया गया.
केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पहले से ही यह व्यवस्था लागू है, और अब मध्य प्रदेश का बुरहानपुर भी इस लिस्ट में शामिल हो गया है. यह एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे एक छोटा सा विचार भी शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला सकता है.
यह कहानी सिर्फ एक स्कूल की नहीं, बल्कि एक ऐसे बदलाव की है, जो शिक्षा को और अधिक समावेशी और प्रभावी बना सकता है.
क्या आपके स्कूल में भी ऐसी कोई अनोखी व्यवस्था है? हमें कमेंट में बताएं!