- पिंपळनेर में यूरिया महंगे दामों पर बिक्री
- आदिवासी किसानों की खुली लूट, घंटों लाइन
- पुलिस बंदोबस्त में भी काला बाजार जारी
महाराष्ट्र के धुले जिले के पिंपळनेर के पश्चिम आदिवासी इलाके में यूरिया खाद को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। किसानों का आरोप है कि सरकार ने जो दर तय किए हैं, उसके मुकाबले दुकानदार उनसे ज्यादा पैसे वसूल रहे हैं। गरीब आदिवासी किसान घंटों लाइन में खड़े रहते हैं, लेकिन उन्हें समय पर खाद नहीं मिलता। उल्टा दुकानदार उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें ठग रहे हैं।
स्थानीय किसानों का कहना है कि वार्सा फाटा इलाके में खाद की दुकानें हैं और खाद उपलब्ध भी है, लेकिन दुकानदार प्रति बोरी 30 से 50 रुपये ज्यादा वसूल रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब पुलिस बंदोबस्त के बीच हो रहा है। ऐसे में किसान सवाल उठा रहे हैं कि सिस्टम में ही गड़बड़ी है और इसी वजह से यह धंधा फल-फूल रहा है।
पुलिस बंदोबस्त में भी काला बाजार
किसानों का आरोप है कि पिंपळनेर इलाके में पुलिस की मौजूदगी में हजारों बोरी यूरिया महंगे दामों पर बेची गईं। किसानों का कहना है कि “साहबों की मेहरबानी” से यह सब मुमकिन हो पा रहा है। सवाल उठता है कि आखिर खाद विक्रेताओं को इतनी हिम्मत मिल कहां से रही है।
किसानों पर अतिरिक्त खाद खरीदने का दबाव
कई किसानों ने बताया कि दुकानदार उन्हें जबरन अन्य खाद और बीज खरीदने पर मजबूर करते हैं। किसानों से कहा जाता है – “अगर यूरिया चाहिए तो जिंक, सुफला, डीएपी और सब्जियों के बीज भी साथ लेना पड़ेगा।” जबकि सरकार के किसी नियम में ऐसी कोई शर्त नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि किसानों की खुलकर लूट की जा रही है।
आदिवासी किसानों का गुस्सा
भोले-भाले आदिवासी किसान घंटों लाइन में खड़े रहते हैं, विनती करते हैं, लेकिन दुकानदार उन्हें खाद नहीं देते। ऊपर से धमकी देते हैं – “तालुका कृषि अधिकारी और जिला कृषि अधिकारी हमारे जान-पहचान के हैं, तुम चाहो तो कुछ भी कर लो।”
एक किसान ने गुस्से में कहा,
“आज तुम पैसे खूब कमाओगे, लेकिन गरीब किसानों की बद्दुआ कभी ना कभी तुम्हें जरूर लगेगी। पाप का बोझ अकेले तुम्हें ही उठाना पड़ेगा।”
गुजरात में और भी महंगा यूरिया
धुले जिले के किसानों ने आरोप लगाया है कि गुजरात में यूरिया की एक बोरी 330 से 500 रुपये तक बेची जा रही है। ऐसे हालात में किसान आर्थिक संकट में फंस गए हैं। सरकार ने भले ही यूरिया के दाम तय किए हों, लेकिन असलियत में किसानों को उससे कहीं ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है।
अफसरों का दबदबा खत्म?
किसानों का कहना है कि तालुका और जिला कृषि अधिकारियों का कोई दबदबा अब दुकानदारों पर नहीं रह गया है। “सभी अफसर हमारे जान-पहचान के हैं” कहकर खाद विक्रेता दबंगई दिखाते हैं। यही कारण है कि गरीब किसानों को लगातार परेशान किया जा रहा है।
आरटीआई से होगी पोल खोल
कुछ किसानों ने तय किया है कि वे जानकारी के अधिकार (RTI) के तहत खाद वितरण की जांच की मांग करेंगे। आरोप है कि जिन लोगों के पास खेत तक नहीं हैं, उनके नाम पर भी खाद वितरण दिखाया गया है। इससे साफ जाहिर होता है कि गड़बड़ी बड़े पैमाने पर हुई है।
किसानों की मांग – कार्रवाई हो
पश्चिम पट्टे के आदिवासी किसानों ने मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की तुरंत जांच हो और दोषी खाद विक्रेताओं पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। किसानों का कहना है कि अगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो उन्हें आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।