Monday, November 18, 2024
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बांधवगढ़ में जंगली हाथियों की मौत पर बवाल: कृषि, वन और पशु चिकित्सा विभाग की क्या है राय?

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में जंगली हाथियों की मौत को लेकर कृषि, वन और पशु चिकित्सा विभागों की राय में भारी विवाद उठ गया है। जानिए इन विभागों के बीच मतभेद, और इस मामले में उठाए गए सवालों का पूरा सच।

मध्य प्रदेश के उमरिया जिले स्थित विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बीते दिनों जंगली हाथियों की रहस्यमय मौत ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले में कृषि विभाग, वन विभाग और पशु चिकित्सा विभाग की राय अलग-अलग है, और ये विभाग इस मौत का कारण और परिस्थिति को लेकर अपनी-अपनी थ्योरी प्रस्तुत कर रहे हैं। हालांकि, यह मामला अब एक गंभीर विवाद का रूप ले चुका है। बवाल इस बात को लेकर है कि इन विभागों के बयान आपस में मेल नहीं खाते, और इससे बांधवगढ़ के प्रबंधन पर भी सवाल उठ रहे हैं।

जंगली हाथियों की मौत का कारण तो अब तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो सका है, लेकिन जिस तरह से विभिन्न विभागों के बयान आ रहे हैं, उनसे यह मामला और भी जटिल हो गया है। कुछ विभागों का मानना है कि हाथियों की मौत कोदो खाने से हुई, जबकि कुछ का कहना है कि यह मामला कहीं और से जुड़ा हुआ हो सकता है।

मामला क्या पूरा मामला है?

हाल ही में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 10 जंगली हाथियों की मौत की खबर सामने आई थी। इन हाथियों की मौत के पीछे एक अहम कारण कोदो की फसल को माना जा रहा था, जो किसानों के खेतों में उगाई जा रही थी। हालांकि, स्थानीय किसानों और विशेषज्ञों ने इस पर संदेह जताया है। उनका कहना है कि यदि कोदो खाने से हाथी मर सकते, तो दूसरे जानवरों को नुकसान क्यों नहीं हुआ, जो यह फसल भी खाते हैं?

अब इस मामले को लेकर कृषि विभाग, वन विभाग और पशु चिकित्सा विभाग अलग-अलग राय रख रहे हैं, जो इस पूरे मामले को और जटिल बना रहा है। इन विभागों के बयानों ने जांच रिपोर्ट पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं, जिससे यह मामला अब एक गंभीर विवाद का रूप ले चुका है।

वन विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट पर संशय

बांधवगढ़ में हुई जंगली हाथियों की मौत पर वन विभाग ने जो रिपोर्ट दी है, उसमें कोदो के कारण हाथियों की मौत होने का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हाथियों ने कोदो की फसल खाई, जिसमें फंगस के कारण एसिड का निर्माण हुआ, जिससे उनका स्वास्थ्य प्रभावित हुआ और अंततः मौत हो गई। हालांकि, इस रिपोर्ट पर स्थानीय किसानों और विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यदि कोदो खाने से हाथी मर सकते हैं, तो फिर मवेशियों और इंसानों को इससे कोई नुकसान क्यों नहीं हुआ?

कृषि विभाग की राय

कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी इस मामले पर अपना बयान जारी किया है। उप संचालक कृषि संग्राम सिंह मराबी ने बताया कि कोदो की फसल को लेकर अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल पाए हैं। उनका कहना है कि यदि फसल में फंगस लगी भी थी, तो उसका पता नहीं चल पाया है, क्योंकि न तो किसानों ने और न ही वन विभाग ने इस बात का कोई उल्लेख किया है कि फसल में फंगस लगी थी या नहीं। उनका मानना है कि अगर फसल में फंगस लगी होती, तो उस पर अधिक ध्यान दिया जाता और रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया जाता।

संग्राम सिंह मराबी ने यह भी कहा कि कृषि विभाग का काम केवल फसल की देखभाल करना है, और किसी जंगली जानवर की मौत का कारण कृषि विभाग से संबंधित नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि फसल में कभी भी फंगस नहीं लगती जब वह खड़ी होती है, इसलिए यह मानना गलत होगा कि कोदो खाने से हाथियों की मौत हुई है।

पशु चिकित्सा विभाग का दृष्टिकोण

पशु चिकित्सा विभाग के उप संचालक डॉ. के के पाण्डेय का भी इस मामले में बयान आया है। उनका कहना है कि वन विभाग ने जो कारण बताया है, यानी कोदो खाने से फंगल इंफेक्शन का होना और एसिड का निर्माण होना, वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सही हो सकता है। डॉ. पाण्डेय का कहना था कि यदि कोदो की फसल में फंगस लगी हो और अगर हाथियों ने वह खाई हो, तो एसिड का निर्माण होने की संभावना है, जिससे फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोदो में कोई फंगस नहीं था, तो हाथियों की मौत का कारण कुछ और हो सकता है।

जब उनसे पूछा गया कि किसान कहते हैं कि गाय-बैल भी कोदो खाते हैं, तो उनकी मौत क्यों नहीं होती, तो डॉ. पाण्डेय ने कहा कि गाय और बैल जिस प्रकार से कोदो खाते हैं, और कितनी मात्रा में खाते हैं, यह महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार, गाय और बैल थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कोदो खाते हैं, लेकिन हाथी बड़ी मात्रा में इसे खाते हैं, जिससे उनका शरीर प्रभावित हो सकता है।

किसानों का क्या कहना है?

किसान इस मामले में अपनी राय रखते हुए कह रहे हैं कि कोदो खाने से हाथी मरने की बात पूरी तरह से गलत है। किसान झल्लू चौधरी का कहना है कि हाथी जब खितौली के इलाके में मरे, तो उन्होंने कभी नहीं सुना था कि कोदो खाने से हाथी मरते हैं। वह कहते हैं, “हम तो रोज़ मवेशियों को कोदो खाने से रोकते हैं, फिर भी कोई मवेशी नहीं मरा। अगर कोदो खाने से हाथी मर सकते, तो हमारे मवेशी भी मरने चाहिए थे।”

दूसरे किसान, सुरजन सिंह का भी मानना है कि कोदो खाने से हाथी की मौत नहीं हो सकती। उनका कहना है, “अगर हाथी अधिक मात्रा में खा लें तो हो सकता है, लेकिन यह कोई सामान्य बात नहीं है।”

वहीं महिला किसान सुकवरिया बाई का कहना है, “यह तो झूठी बात है। गाय, बैल और इंसान भी कोदो खाते हैं, फिर क्यों कोई नहीं मरता? यह सब किसानों को डराने के लिए किया जा रहा है। अगर हाथी मर रहे हैं तो इसका मतलब कुछ और ही है।”

प्रधानमंत्री के ‘मोटे अनाज’ को बढ़ावा देने के खिलाफ कदम?

इस मामले में एक और गंभीर आरोप भी उठाया जा रहा है। कृषि विभाग के उप संचालक संग्राम सिंह मराबी के बयान के बाद कुछ जानकारों का कहना है कि अगर कोदो की फसल में फंगस नहीं लगी थी और इसे जलवा दिया गया, तो यह प्रधानमंत्री के ‘मोटे अनाज’ को बढ़ावा देने के अभियान के खिलाफ हो सकता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या कुछ लोग अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए फसल को जलवा रहे हैं, ताकि किसी भी प्रकार के साक्ष्य को नष्ट किया जा सके?

बांधवगढ़ में जंगली हाथियों की मौत पर जारी विवाद के बीच कृषि, वन और पशु चिकित्सा विभागों के बयान पर अलग-अलग राय सामने आ रही हैं। जहां वन विभाग और पशु चिकित्सा विभाग ने कोदो के सेवन को हाथियों की मौत का कारण बताया है, वहीं कृषि विभाग इस कारण को लेकर संशय व्यक्त कर रहा है। किसान और विशेषज्ञ भी इस घटना की वास्तविकता पर सवाल उठा रहे हैं। इन सभी मतों के बीच, यह मामला अब गहरे जांच की आवश्यकता को महसूस कराता है। इस घटना की पूरी सचाई सामने आने तक, बांधवगढ़ में चल रही हलचल बनी रहेगी।

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