- बुरहानपुर जिला अस्पताल में अवैध रेफरल का कारोबार: सरकारी डॉक्टरों की मिलीभगत से निजी अस्पतालों को फायदा
- संसाधनों की कमी और डॉक्टरों की अनुपलब्धता: सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए गरीबों की बढ़ती दिक्कतें
- कमीशन की प्रथा और गुटबाजी का असर: बुरहानपुर के स्वास्थ्य क्षेत्र में भ्रष्टाचार और प्रशासन की निष्क्रियता
बुरहानपुर जिले के सरकारी जिला अस्पताल में मरीजों को निजी अस्पतालों में अवैध रूप से रेफर करने का गंभीर मामला सामने आया है। इस संदर्भ में मिली जानकारी के अनुसार, सरकारी अस्पताल के डॉक्टर निजी अस्पतालों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में अस्पताल आने वाले मरीजों को तुरंत निजी अस्पतालों की ओर भेजा जाता है, जिसके बदले में डॉक्टरों को प्रति मरीज 5000 रुपये मिलते हैं। इस रकम में से 3000 रुपये डॉक्टर को, 1000 रुपये वार्डबॉय को और 1000 रुपये एम्बुलेंस चालक को दिए जाते हैं।
विस्तार से जानिए रेफर के इस गोरख धंधे को
इस अवैध गोरखधंधे की जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं। सूत्रों के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग के कई उच्च अधिकारी और कर्मचारी भी इसमें शामिल हैं। जिला अस्पताल में डॉक्टरों और आवश्यक संसाधनों की कमी के कारण, निजी अस्पताल इस स्थिति का फायदा उठा रहे हैं। इससे मरीजों को लाखों रुपये के बिल चुकाने पड़ते हैं। जो लोग बिल चुकाने में असमर्थ होते हैं, उनके लिए बंधक बनाने की घटनाएं भी सामने आई हैं। इसके बावजूद, शासन और प्रशासन इस पर कार्रवाई करने के बजाय खुद इस गोरखधंधे का हिस्सा बन चुके हैं।
भाजपा की गुड बाजी के चलते विकास के मुद्दे हाशिए पर
बुरहानपुर जिले के सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल, विधायक अर्चना चिटनीस और नेपानगर विधायक मंजू दादू सभी भाजपा के हैं। इसके बावजूद, जिला अस्पताल की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। डॉक्टरों की कमी और संसाधनों की अनुपलब्धता के कारण गरीब मरीजों को इलाज कराने में कठिनाई हो रही है। आयुष्मान कार्ड के माध्यम से निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधा तो है, लेकिन इसके लिए ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ती है। छोटे-मोटे इलाज इस कार्ड के दायरे में नहीं आते।
भाजपा में गुटबाजी के चलते विकास के मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं। जनप्रतिनिधियों के आपसी संघर्ष का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है, और शहर विकास की बाट जोह रहा है। यह एक गंभीर मामला है, जिस पर जनप्रतिनिधियों को ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकारी डॉक्टरों द्वारा निजी अस्पतालों में मरीजों को रेफर करना न केवल एक नैतिक समस्या है, बल्कि यह स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है।
सुझाव
- सुविधाओं में सुधार: सरकार को शासकीय अस्पतालों में आवश्यक सुविधाओं को सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए।
- डॉक्टरों की जिम्मेदारी: सरकारी डॉक्टरों को अपने पद की गरिमा और मरीजों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
- पारदर्शिता: निजी अस्पतालों में रेफर करने के लिए पारदर्शी और नैतिक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।
समस्या के मुख्य कारण
- डॉक्टरों की कमी: जिले में पर्याप्त डॉक्टर नहीं हैं, जिसस मरीजों को इलाज में दिक्कत हो रही है।
- संसाधनों की कमी: अस्पतालों में आवश्यक दवाएं और उपकरणों की कमी है।
- कमीशन का खेल: निजी अस्पताल डॉक्टरों को कमीशन देकर मरीजों को रेफर कर रहे हैं, जो अनैतिक और मरीजों के लिए हानिकारक है।
समाधान
- डॉक्टरों की नियुक्ति: सरकार को जिले में अधिक डॉक्टरों की नियुक्ति करनी चाहिए।
- आवश्यक संसाधन: अस्पतालों में आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
- कमीशन की प्रथा पर रोक: निजी अस्पतालों में कमीशन की प्रथा पर रोक लगानी चाहिए और अनैतिक गतिविधियों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
- कार्रवाई की संभावनाएंभ्रष्टाचार निरोधक कानून: इस प्रकार के मामलों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
- चिकित्सा परिषद की शिकायत: डॉक्टर के खिलाफ चिकित्सा परिषद में शिकायत दर्ज की जा सकती है, जिससे डॉक्टर की लाइसेंस रद्द की जा सकती है।
- विभागीय जांच: स्वास्थ्य विभाग द्वारा जांच की जा सकती है, और यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो डॉक्टर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
- निजी अस्पताल की जांच: निजी अस्पताल की भूमिका की भी जांच की जा सकती है, और यदि वे भी इस भ्रष्टाचार में शामिल पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस मामले पर ध्यान देना चाहिए
बुरहानपुर जिले के सरकारी अस्पताल में चल रहे अवैध रेफरल गोरखधंधे की गंभीरता को नकारा नहीं किया जा सकता। यह समस्या केवल स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता को कमजोर नहीं कर रही, बल्कि गरीब मरीजों के लिए इलाज कराना भी मुश्किल बना रही है। सरकारी डॉक्टरों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे मरीजों की भलाई को पहले रखें, न कि निजी अस्पतालों के लाभ के लिए काम करें।
इस मुद्दे पर उचित कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि मरीजों को उनकी आवश्यकता के अनुसार स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। स्वास्थ्य विभाग और शासन को चाहिए कि वे आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करें और डॉक्टरों की कमी को दूर करें। जनप्रतिनिधियों को भी इस गंभीर स्थिति का सामना करते हुए विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। अगर आज हम इस गोरखधंधे पर ध्यान नहीं देते, तो कल इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि हम मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें और स्वस्थ समाज की दिशा में कदम बढ़ाएं।
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